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Covid-19। कोरोना से जंग, नानी के संग

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कोरोना से जंग-नानी के संग

कोरोना के कहर से पूरी दुनिया त्रस्त है। बिहार सहित देश के कई राज्यों में लाॅकडाउन है और विश्वविद्यालय में भी कामकाज प्रभावित हुआ है। ऐसे में हम अपने-अपने तरह से इस लाॅकडाउन के समय का सदुपयोग कर रहे हैं और कोरोना से लड़ने की तरकिबें ढूंढने में लगे हैं।इस समय अपनी दिवंगत नानी सिया देवी, माधवपुर (खगड़िया) की बातें मेरे लिए काफी उपयोगी साबित हो रही हैं। इनमें से कुछ प्रमुख बातें निम्नवत हैं-

1. एक स्वतंत्रता सेनानी की सहधर्मिणी के रूप में नानी के लिए देश-प्रेम सर्वोपरि था। उन्होंने अपने हाथों पर ‘जय हिंद’ गुदबा रखा था और यही उनके दिलों पर भी अंकित था। आज कोरोना से जंग में देश-प्रेम की सबसे अधिक जरूरत है।

2. नानी हमेशा कहती थीं कि इलाज से परहेज अच्छा होता है। अतः हमें संयम, सूचिता एवं सादगी का जीवन जीना चाहिए, ताकि कोरोना या कोई अन्य महामारी हो ही नहीं। हमें प्रकृति-पर्यावरण की ओर लौटना होगा। हम संयम, सुचिता एवं सादगी पर आधारित पारंपरिक  जीवनशैली को अपनाकर ऐसी महामारियों से बच सकते हैं और स्वस्थ एवं दीघार्यू जीवन का आनंद ले सकते हैं।
3. कोरोना से लड़ने के लिए हमें आपस में भौतिक दूरी रखनी है- सामाजिक एवं भावनात्मक दूरी नहीं रखनी है। पहले घर में जब किसी को चेचक (माता) होता था, तो उन्हें घर के एक कमरे में ‘आइसोलेट’ कर दिया जाता था। उसके पास नीम की पत्तियां एवं हल्दी के टुकड़े रखे जाते थे और धूमना-गूगल आदि जलाकर वायरस को मारने का प्रयास किया जाता  था। नानी किसी को भी रोगी से मिलने नहीं देती थीं, लेकिन रोगी के प्रति भावनात्मक लगाव में कोई कमी नहीं करती थीं। हम कोरोना से दूर रहें, लेकिन कोरोना पीड़ितों से घृणा नहीं करें।
4. नानी का यह दृढ़ विश्वास था कि स्वच्छता ही देवत्व है। हम हमेशा आंतरिक एवं बाह्य स्वच्छता का ध्यान रखें। अपने घर, आस-पड़ोस, शरीर, कपड़े आदि को स्वच्छ रखें। जूता-चप्पल घर के बाहर खोलें और पैर-हाथ धोकर कमरे में प्रवेश करें। रसोई घर मे किसी भी कीमत पर जूता-चप्पल पहनकर नहीं घुसें। खाने के पहले और बाद हाथों को राख से साफ करें। शौचालय और स्नानघर की साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखें।
5. नानी का मानना था कि हम दिखावटी व्यायाम नहीं करें, बल्कि उत्पादक शारीरिक श्रम करें। जाँता-चक्की में दाल पिसें, ऊंखल में चावल-चूड़ा कूंटें एवं मथानी से घी निकालें। घर में  साग-सब्जियाँ एवं आवश्यक फलों का उत्पादन करें। सूत काटें और पेंटिंग या चित्र आदि बनाएँ। आज जिनको ऐसी आदतें होंगी, उनका लाॅकडाउन का समय आसानी से कट रहा होगा।

6. नानी हमेशा कहती थीं कि आपात दिनों के लिए खाद्य पदार्थ तैयार कर रखें। बड़ी, झूड़ी एवं सुखौता आदि बनाएँ, जो सब्जियों का विकल्प हो सकते हैं। साथ ही अचार, अमौठ आदि हमारा स्वाद बढ़ा सकते हैं। साथ ही घर में पकवान, पेड़ा, तिलबा आदि बनाएँ बाजार की चीजें कम खाएँ।

आज लाॅकडाउन में नानी की बातें मुझे काफी सकुन दे रही हैं। आपको भी आपकी नानी-दादी ने ऐसी कई बातें बताई होंगी। संभव है कि तब उस समय हमें उनकी बातें पुरातनपंथी लगी हों। लेकिन आज फिर से उन्हें याद कीजिए। वे बातें आपके दिलों को सकुन देंगी और परिवार एवं समाज को राहत भी। कुछ याद आया क्या ?
-डाॅ. सुधांशु शेखर,असिस्टेंट प्रोफेसर (दर्शनशास्त्र) एवं जनसंपर्क पदाधिकारी, बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा (बिहार)

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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