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Covid-19। कोरोना का शिक्षा एवं समाज पर प्रभाव विषयक सेमिनार/ वेबिनार का आयोजन

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आज से ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में दस सेमिनार/वेबिनार की श्रृंखला की शुरुआत हो गई है। शुक्रवार को इसमें देश के कई गणमान्य लोगों ने शिरकत किया। महाविद्यालय परिवार की ओर से सबों के प्रति आभार व्यक्त किया गया है।
बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा की अंगीभूत इकाई ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में 21 अगस्त, 2020 शुक्रवार को दर्शन परिषद्, बिहार के तत्वावधान में कोरोना संक्रमण का शिक्षा एवं समाज पर प्रभाव विषयक सेमिनार/ वेबिनार में बोल रहे थे। यह आयोजन आयोजित किया गया। बीएनएमयू, मधेपुरा के कुलपति डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने कहा कि नोवेल कोरोना वायरस के कारण फैली महामारी से वर्तमान विश्व संत्रस्त है। इसका शिक्षा एवं समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।कुलपति ने कहा कि उच्च शिक्षा का नया वर्चुअल रूपांतरण हुआ है। भारत जैसे समाज में हमें गरीब, उपेक्षित और दूरस्थ क्षेत्रों में बसे समाजिक समूहों में इंटरनेट रखने, इस्तेमाल करने एवं सतत कनेक्टिविटी बनाए रखने पर जोर देना होगा।

शिक्षकों के एक बड़े वर्ग को भी डिजिटल माध्यमों के नवाचारी उपयोगों में खुद को दक्ष बनाना होगा।

उन्होंने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में जो संकट है, हम उससे सीख लें। हम अपनी जड़ों की ओर लौटें। भारतीय सभ्यता-संस्कृति की ओर लौटें। प्रकृति की ओर लौटें। यही हमारे सुरक्षित भविष्य का एक मात्र मार्ग है। इसके अलावा कोई दूसरा मार्ग नहीं है। नान्याः पंथा:।
पूर्व सांसद एवं संस्थापक कुलपति प्रोफेसर डाॅ. रमेन्द्र कुमार ने कहा कि भारतीय दर्शन में वसुधैव कुटुंबकम् की भावना है। हम अपरिग्रह में विश्वास करते हैं। भारतीय दर्शन में ही सभी समस्याओं का समाधान है। भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अध्यक्ष डाॅ. रमेशचन्द्र सिन्हा ने कहा कोरोना वायरस ने किसी को नहीं छोड़ा है। इसने विश्व को आक्रांत कर दिया है। लेकिन हम इसकी दवा बनाने में कामयाब होंगे।सिंघानिया विश्वविद्यालय, जोधपुर, राजस्थान के कुलपति प्रोफेसर डा सोहनराज तातेड़ ने कहा कि प्रकृति हमारी मां है‌। हमारा जीवन इस पर निर्भर है। आज हमने प्रकृति मां से दूरी बना लिया है। कोरोना संक्रमण इसका परिणाम है। इस अवसर पर मुंगेर विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डॉ. कुसुम कुमारी ने हमें कोरोना को स्वीकार करना होगा। आज दुनिया पूर्व कोरोना एवं उत्तर कोरोना में बंट गया है। उन्होंने कहा कि हमें सनातन सभ्यता-संस्कृति एवं जीवन-दृष्टि को अपनाना होगा। एकात्मकता एवं समग्रता की जीवन दृष्टि को अपनाना होगा। समाज को भयमुक्त करना होगा। दर्शनशास्त्र विभाग, हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर-गढवाल की अध्यक्ष डाॅ. इंदू पांडेय खंडूड़ी ने कहा कि मानव सभ्यता पर पहले भी कई संकट आए हैं। कोरोना संकट पहले के संकटों से थोड़ा भिन्न है। उन्होंने कहा कि कोरोना ने जीवन एवं जीविका के बीच संघर्ष खड़ा कर दिया है। हमें इस चुनौती को स्वीकार करना है और जीवन-रक्षा के उपायों को अपनाते हुए विभिन्न गतिविधियों को जारी रखना होगा। सबकुछ ठप कर देना विकल्प नहीं है। संकटकाल में प्रयास जारी रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोरोना काल ने लोगों मनुष्य एवं मनुष्य के बीच संदेह पैदा करना सीखा दिया है। कोलकोता की डाॅ. गीता दूबे ने कहा कि संकट के समय हम प्रण करते हैं। लेकिन बाद में उसे भूल जाते हैं। पटना विश्वविद्यालय, पटना के प्रोफेसर एन. पी.तिवारी ने कहा कि कोई अशुभ या दुख के भी सकारात्मक पहलू होते हैं। ये हमारे दूरगामी हित के लिए ही आते हैं। विपरित परिस्थितियाँ कुछ सीख लेकर आते हैं। दर्शन परिषद्, बिहार के अध्यक्ष डाॅ. बी. एन. ओझा ने कहा कि हमारी संस्कृति में पहले से ही स्वच्चता की बात है। हमने अपने हमारे पूर्वजों की मान्यताओं को ढ़कोसला माना और पश्चिम का अंधानुकरण किया। आज हमें अपनी आंखों पर जमीं धूल को हटाना होगा। महामंत्री डाॅ. श्यामल किशोर ने कहा कि हमें कोराना के साथ जीना सीखना होगा। शिक्षा एवं समाज में परिवर्तन लाना होगा। शिक्षा संकाय, टीएमबीयू, भागलपुर के अध्यक्ष डाॅ. राकेश कुमार ने विशेष रूप से कोरोना का शिक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों को रेखांकित किया। गाँधी विचार विभाग, टीएमबीयू, भागलपुर के अध्यक्ष डाॅ. विजय कुमार ने कहा कि कोरोना संकट भोगवादी आधुनिक सभ्यता की देन है। प्रोफेसर भोलानाथ दत्त, बेंगलूरू ने कोरोना संक्रमण के शिक्षा एवं समाज पर पड़ने वाले प्रभावों को रेखांकित किया।अमृत कुमार झा, दरभंगा ने इस वैश्विक महामारी के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन लर्निंग से बच्चों में सर्वांगीण विकास के बीज बोना बेहद ही कठिन है और इसीलिए भविष्य की प्रणाली को देखते हुए ब्लेंडेड लर्निंग और फ्लिप क्लासरूम पर जोर देना समय की मांग है।

बीएनएमयू के सामाजिक विज्ञान संकाय अध्यक्ष डाॅ. आर के. पी. रमण ने विषय के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा के कई नकारात्मक प्रभाव हैं। फिर भी यही एक विकल्प है। हमें निराश नहीं होना है। यह संकट दूर होगा। मानविकी संकायाध्यक्ष डाॅ. उषा सिन्हा ने कहा कि कोरोना ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है।कहा जा रहा है कि यदि प्राकृतिक संसाधनों का इसी तरह तेजी से दोहन होता रहा, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या बचेगा ? लेकिन आज प्रश्न बदल गया है-आने वाली पीढ़ी को बचाया कैसे जाए ? कुलसचिव डाॅ. कपिलदेव प्रसाद ने सेमिनार श्रृंखला की सराहना की। एनएसएस समन्वयक डाॅ. अभय कुमार ने कहा कि एक साथ कई विद्वानों को सुनना एक अविस्मरणीय अनुभव रहा।

इस अवसर पर डाॅ. राजीव रंजन, डाॅ. मिथिलेश कुमार अरिमर्दन,डाॅ. बुद्धप्रिय, डाॅ. संजीव कुमार झा, डाॅ. आनंद मोहन झा, रंजन यादव, सारंग तनय, विवेकानंद, मणीष कुमार, सौरभ कुमार चौहान, गौरब कुमार आदि उपस्थित थे। वेबीनार में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, नई दिल्ली आदि राज्यों से प्रतिभागियो ने भाग लिया।

अध्यक्षता प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव ने किया। संचालन जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने किया। धन्यवाद ज्ञापन सिंडीकेट सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान ने किया।

इसके पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलित कर की गई। अतिथियों ने महाविद्यालय के संस्थापक कीर्ति नारायण मंडल के चित्र पर पुष्पांजलि किया। खुशबु शुक्ला ने संस्कृत वंदना प्रस्तुत किया।

सेमिनार/वेबिनार का विवरण निम्नवत है-
1. 21 अगस्त, 2020 : कोरोना का शिक्षा एवं समाज पर प्रभाव
2. 24 अगस्त, 2020 : कोरोना का अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण पर प्रभाव

3. 28 अगस्त, 2020 : कोरोना का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

4. 03 सितंबर, 2020 : राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विविध आयाम

5. 07 सितम्बर, 2020 भारतीय शिक्षा व्यवस्था : कल, आज और कल

6. 11 सितंबर 2020 पोषण, स्वास्थ्य एवं साक्षरता

7.16 सितंबर, 2020 : शिक्षा, समाज एवं शांति

8. 21 सितंबर, 2020 : भाषा, साहित्य एवं संस्कृति

9. 24 सितंबर, 2020 : पोषण, पर्यावरण एवं पंचायत

10. 28 सितंबर, 2020 : सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र- निर्माण

कृपया, निम्न लिंक पर click कर नि:शुल्क पंजीयन कराएँ.

https://forms.gle/eg9NcSf2Re1s91cN7

आयोजन सचिव ने बताया कि फीडबैक लिंक अभी नहीं बना है। हम आप सबों को मेल से लिंक भेज देंगे। साथ ही वाट्सप एवं फेसबुक पर भी लिंक दिया जाएगा। आप सबों को सर्टिफिकेट दिया जाएगा। कृपया, सहयोग करें और विश्वास बनाए रखें।

रिपोर्ट
गौरब कुमार सिंह

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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