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कोरोना काल में बढ़ी गरीबी एवं बेरोजगारी

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कोरोना काल में बढ़ी गरीबी एवं बेरोजगारी
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गरीबी एवं बेरोजगारी हमारे देश की पुरानी समस्या है। हमारा देश आजादी के समय से ही गरीबी के कुचक्र एवं बेरोजगारी की जंजीर में फंसा हुआ है। कोरोना काल में यह समस्या और भी बढ़ गई है।

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यह बात अर्थशास्त्र विभाग आर. डी. कॉलेज, शेखपुरा में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नवलता ने कहीं। वे बीएनएमयू संवाद व्याख्यानमाला में कोरोना विस्तार के बीच गरीबी एवं बेरोजगारी विषय पर व्याख्यान दे रही थीं।

उन्होंने कहा कि भारत की कुल आबादी की लगभग 37 करोड़ लोग गरीबी और सात करोड़ लोग बेरोजगार से पीड़ित हैं।

उन्होंने कहा कि कोविड-19 स्वास्थ्य के लिए एक महामारी है। साथ ही इसने गरीबी एवं बेरोजगारी रुपी महामारी को भी बढ़ावा दिया है। आज बेरोजगारी एवं गरीबी रूपी महामारी के निदान को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि विश्व आज सरकार को कोरोना, गरीबी एवं रोजगार तीनों महामारियों लड़ने की आवश्यकता है। क्योंकि निजी निवेशकों के द्वारा इस मंदी के समय निवेश की उम्मीद नहीं की जा सकती है। कोविड-19 के पहले से ही निजी निवेशक निवेश में रुचि नहीं दिखा रहे हैं, क्योंकि उनकी वस्तुओं की मांग में कमी थी। निजी निवेश लाभ से प्रेरित होती है, तो इस मंदी में अनेक तरफ से निवेश एवं रोजगार की आसान नहीं की जा सकती है।

उन्होंने कहा कि सरकार को इस तरह कठोर कदम उठाने होंगे। सरकार राहत पैकेज एवं सीधे नकद के द्वारा कोशिश कर रही है, परंतु यह कोशिश भी प्रर्याप्त साबित नहीं हो पा रही है।

उन्होंने कहा कि आर्थिक संकट के समय मिडिल क्लास भी कमजोर असहाय होता है। उसका एक हिस्सा छोटी सैलरी पर काम करता है। यह हिस्सा अर्थव्यवस्था में गरीब आदमी की तरफ शिफ्ट हो जाता है। कोविड-19 में यही हो रहा है।

उन्होंने कहा कि जो मिडिल क्लास छोटे-छोटे फॉर्म में कम सैलरी पर काम पर काम कर रहे थे, वे परेशान हैं। उनकी या तो नौकरी छूट गई या फिर वह बिना वेतन के घर बैठा दिए गए हैं।इसलिए मिडिल क्लास की भी आर्थिक परिस्थितियों को प्रमुखता से ध्यान देना चाहिए।सरकार के द्वारा जारी होने वाले राहत पैकेजों में यह क्लास शामिल नहीं होता है।

उन्होंने कहा कि बिहार गरीब राज्यों की श्रेणी में पहले से ही है। यह कुल आबादी के सिर्फ 12% लोग नौकरी पेशा वाले हैं। बाकी 55 से 57% लोग स्वरोजगार में लगे हैं या कृषि कार्य में लगे हैं। बिहार दो संकटों से जूझ रहा है। एक तरफ कोविड-19 विस्फोटक बनती जा रही हैं और दूसरी तरफ बाढ़ की विभीषिका है‌।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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