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कविता/माँ/संजय सुमन

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कविता/माँ/संजय सुमन

कोरे कागज पर आज “माँ” लिखे बैठा हूँ
जीवन की तमाम दास्तान लिखे बैठा हूँ,
रोज़ लड़ता हूँ मुक़द्दर से बेहतरी के लिए,
दुआओं को उसके सलाम लिखे बैठा हूँ
मैं हूँ जिसके जिगर का टुकड़ा हमेशा से,
सांसो में बस उसका ही नाम लिखे बैठा हूँ
क्या बिगाड़ेगा कोई तूफान अब मेरा वजूद,
उसके आँचल से महफूज़ जान लिए बैठा हूँ
तेरी थपकियों में जहाँ हर सुख मिला है मुझे
उस गोदी को ही अपना जहान लिखे बैठा हूँ

संजय सुमन
रुपौहली, परबत्ता, खगड़िया

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