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Poem। कविता / बेरोजगार पूछता है/इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी

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आज देश का युवा,
सड़कों पर भटक रहा है।
हाथों में उपाधियों का पुलिंदा
झोले में कंधे पर ढो रहा है।
जिंदगी के सवालों से जूझता,
राजनीति के वादों से उलझता,
बेरोजगार आशा-निराशा में डूबता,
डूबते हुए तिनका खोजते हुए।
कभी-कभी हार कर खत्म होता,
बेरोजगार पूछता है आगे का राश्ता।
धुन्ध में रोशनी खोजता हुआ,
बेरोजगार चल पड़ता है राह खोजने।
हौसलों की डोर थामे,
आंखों में नौकरी के ख़्वाब,
सरकारी विज्ञप्तियों में,
अपने चयन के सपने में डूबा।
वह अनवरत भूख प्यास से जूझता
दर-दर भटकता छीजती-सी आशा
एक अरसे से अंधेरी सुरंग में,
थके हुए कदमों से घिसटती आशा।
टूटता-सा देश का नौजवान,
शिक्षा और उपाधि किस काम की,
भूखे पेट, संस्कार और मूल्यों की बात,
कौन सी दिशा, कौन सा विकास,
बेरोजगार पूछता है कैसे हो विश्वास ?

इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी, प्रोफेसर एवं अध्यक्ष दर्शनशास्त्र विभाग हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड

 

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