जीवन ——
रात की ठिठुरन
भोर की ऊष्मा
यही है ना जीवन !
हृदय की गति
साँसों की
आवा – जाहि
कंवारी दुल्हन के स्वप्न
बूढ़े आँखों की प्रतिक्षा
तरुण उन्माद
एक मौन सम्वाद
या फिर यूँ ही कटते
दिन और रात!
धमनियों में
रक्त का प्रवाह
स्मृतियों का
गिरना, फिसलना
खुद से ही बचना
और सम्भलना
गुलाब के बिस्तर पर
पाषाण का तकिया
या फिर मैं, तुम
और मेरा, तुम्हारा
या फिर किसी का नही !
पूजा शकुंतला शुक्ला, कंपनी सचिव,
भारतीय कंपनी सचिव संस्थान, राँची, झारखंड