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कविता/ कोरोना का प्रकोप

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यूँ तो पहले भी सबसे दूर हुए थे।
न ऐसे असहाय और मज़बूर हुए थे।
बीमार होने से पहले ही लाचार हो गए।
अपने हालात से बेबस बेज़ार हो गए।
कैदी परिंदो के दर्द, दिल ने जान लिया।
आजादी के मतलब को हमने पहचान लिया।
ये कैसा दर्द उठा है, जिसे बाँट नहीं सकते।
बेपरवाही पर गले लग कर डाँट नहीं सकते।
साथ रह कर सेवा का सौभाग्य कहीं खो गया।
प्रकृति के एक थप्पड़ में क्या से क्या हो गया।
क्या ईश्वर क्या ख़ुदा अब सारी बंदगी बेकार है।
समाज के बिना ही हो रहा अंतिम-संस्कार है।
सभ्यता जब माँ प्रकृति की सुंदरता बिगाड़ेगी।
माँ अपने बिगड़े बच्चों को यूँ ही थप्पड़ मारेगी ।। कवि का संक्षिप्त परिचय-
नाम- संजय सुमन
पिता- स्व. केशरी नन्दन मिश्र
माता- स्व. श्यामा देवी
योग्यता- स्नातकोत्तर (समाजशास्त्र),         ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा (बिहार)
पेशा- स्वरोजगार एवम अध्यापन
पता- ग्राम – रुपौहाली, पो.-परबत्ता, जिला- खगड़िया , राज्य-बिहार
पिन-851216
कविता में रुचि का कारण- “कविताएँ भावनाओं को जीवंत रखती हैं।”

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