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कविता/ एक ही आकाश तले/ गीता जैन

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क्यूँ जीवन
व्यवस्था में
व्यवहार में
आचार में
विचार में
आस्थाओं मे
मूल्यों में
विभक्त है।
अभिव्यक्ति की
सोपानों में
सामाजिक
निर्वाहन में
है सिर्फ …
निहिर जीवित रहने का भाव।
परन्तु सासों के खेल में
जीवन की दौड़ में
विभक्त है मानव।
इसमें-उसमें
तेरे में-मेरे में
छोटे में-बड़े में
समझने में-समझाने में
कहने में-सुनने में
परन्तु विवेक खो जता है।
बन जाता है मानव
पन्डित, शास्त्री, आचार्य
तर्क में वितर्क में
ख़ासकर कुतर्क में
और फ़ासले बनते हैं।
अपनों में, परायों में
सभाओं में, गोष्ठियों में
कथाओं में, कहानियों में
यूँ स्वयंभू मानता मानव सभ्यता का
पर
सभ्यता है कहाँ ? (कोई बताए)
जहाँ बसता हो सभ्य मानव
महानगरों में, नगरो में
क़स्बों में, गाँवों में
नुक्कड़ में, चौपालो में
खेतों में, मचानों में
विस्तृत समाज की कल्पना “एक” है। क्रमबद्ध विकास
जो दिखता है-
खेतों से, खलिहानों से
बाग़ों से, चौपालों से
गाँवों, क़स्बों, नगरों के बीच मिटती दिवारों से
नहीं रूकता यह विकास महानगरों में
सिलसिला आगे
देशों में, विदेशों में
राष्ट्रों में, महाराष्ट्रों में
द्वीपों में, महाद्वीपों में
मंगल-शनि की आगोशों में।
पर
एक सार्वभौमिक सत्य है।
शाश्वत सत्य है।
बिखरे मानव जहाँ-तहाँ
पर एक ही आकाश के तले।
गीता जैन
राजनीति विज्ञान में एम. ए. एवं पत्रकारिता मे स्नातकोत्तर डिप्लोमा, बेसिक-एडवांस कोर्स पर्वतारोहण, पारिवारिक जीवन की प्राथमिकता, सामाजिक मूल्यों की संरक्षा करते हुए स्वान्तः सुखाय साहित्य साधना का लक्ष्य।
जागरुक संवेदनशील नागरिक की भांति सामाजिक वातावरण में व्याप्त विसंगतियों की महसूस करती एवं अभिव्यक्त करती हूँ।
परिवर्तन सार्थक व सबल हो इस
विचार में आस्था व विश्वास के लिए मानसिक जागरूकता ज़रूरी है विचारों की सार्थकता के लिए मानवीय मूल्यों की धरोहर पर विश्वास आवश्यक है। कुछ ऐसे ही मुद्दे उद्वेलित कर कविता का रूप ले लेते हैं।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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