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Poem। कविता/आभासी प्रेम/भाग-1/आशीष कुमार ‘माधव’

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हाँ, ये सच है…
कोई नहीं था,
आपके और हमारे बीच।
ना कोई इन्सान, ना कोई जानवर,
और ना ही हवा…
जो अक्सर बादलों के बीच भटकती रहती है।
कोई पौधा भी नहीं था,
धरती की गहराईयों से रसायन लेता हुआ…
सिर्फ और सिर्फ,
एक-दूसरे को दिया गया वक़्त ही था,
इन सब का साक्षी।
हाँ, ये सच है,
हमारे अंदर का प्रत्येक रेशा,
कोई पक्ष्याभ, कोई पुष्पवृत्त नहीं,
जो ताउम्र याद किया जाए…
पता नहीं क़ोई आकस्मिक आवेग था,
जो आभासी बनकर आया,
जरूरत और खालीपन के मध्य,
रूमानी ख्वाब बनकर।
बहुत कठिन है- तथ्यों का चुनाव
भूदृश्यों का पत्तों मे बदलना,
और अस्थिर यादों को
स्थिर तारीखों मे समेटना,
जबकि सारे प्रेम के सभी रूपों में
वैवाहिक प्रेम को चुना था हमने।
हाँ, ये सच है,
जब जीवन का अस्तित्व नहीं था,
तब गीत और शब्द रचे गए थे,
मेरे हृदय द्वारा, मेरे रक्त द्वारा,
मेरी भावनाओं के ज्वार के द्वारा…
हाँ, एक उम्मीद बनी,
अपनेपन के अहसासों के द्वारा।
गढता चला गया स्वप्न का सजीला स्वरूप,
जिनमें जीवन की सोन्धी खुशबू
समाहित होती गई, ऐसे कि-
मानों किसी बंज़र ज़मीन को मिला हो जल का स्पर्श।
लहजे़ का लड़कपन, सच्चाई से पूरित पनीली आँखें, कँपकँपाते अधर,
गेसुओं के साए में ओझल सा यौवन,
उलझते चला गया संबंधों की जाल में,
हाँ, ये सच है,
कोई नहीं था, आपके और हमारे बीच…
और मुझे शक्ति दी गई थी,
आवाज़ भी दी गई थी,
अधिकार की पूर्णता के साथ,
जिसमें प्रेममय होने का अवसर मिला,
जिसे आपने ही तो दिया था,
जिसमें जीवन की खोज थी मुझे।
हाँ, ये सच है,
कोई नहीं था, आपके और हमारे बीच।।

आशीष कुमार झा ‘माधव’
प्रधानाचार्य, सरस्वती विद्या मंदिर,
रोसङा, समस्तीपुर (बिहार)

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