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कर्पूरी ठाकुर (101वीं) जन्म जयंती के अवसर पर कर्पूरीग्राम (समस्तीपुर,बिहार) में आयोजित समारोह में सहभागी बनने का अवसर मिला।

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कर्पूरी ठाकुर (101वीं) जन्म जयंती के अवसर पर कर्पूरीग्राम (समस्तीपुर,बिहार) में आयोजित समारोह में सहभागी बनने का अवसर मिला।

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महामहिम उपराष्ट्रपति, आदरणीय जगदीप धनखड़ जी, डॉ. श्रीमती सुदेश धनखड़ जी, महामहिम राज्यपाल, (बिहार), श्री आरिफ़ मोहम्मद खान जी, माननीय केंद्रीय मंत्री, श्री शिवराज सिंह चौहान जी, माननीय केंद्रीय गृह राज्य मंत्री, श्री नित्यानंद राय जी, माननीय केंद्रीय राज्य मंत्री, भाई राम नाथ ठाकुर जी, माननीय केंद्रीय राज्य मंत्री, श्री भागीरथ चौधरी जी समेत अनेक गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही. इस अवसर पर बड़ी संख्या में मौजूद भीड़ भी इस अवसर का सहभागी बनी.

कर्पूरी जी की स्मृतियों को पुनः नमन. कर्पूरी जी की गांव की मिट्टी को नमन, जहां कर्पूरी जी जैसे ‘भारत रत्न’ जन्मे.

कुछ लोग जीते जी अपने कर्म, आदर्श, सिद्धांत से जीवन में ही बड़ी छाप छोड़ते हैं और आदर्श बन जाते हैं. पर, उनके न रहने के बाद उनका बड़ा व्यक्तित्व जब समाज और गहराई से समझता है, उसके महत्व-मर्म को जानता है, तो वह और बड़ा प्रेरक होता है. यही कर्पूरी जी के साथ है. उनका दुर्लभ व्यक्तित्व ऐसा ही था.

आज व आने वाले समय में कर्पूरी जी के जीवन की कौन सी प्रेरक चीजें, देश-दुनिया-समाज व हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं, पाथेय हैं?

कर्पूरी जी में गांधी की सादगी, विनम्रता-अपरिग्रह, जीवंत रूप में रहा. वह आजीवन जेपी की करुणा, संवेदनशीलता, शुचिता का पालन करते रहे. डॉ. लोहिया का समता दर्शन, भारतीय भाषा-भूषा, भवन, कथनी-करनी में एका के प्रति उनकी ताउम्र प्रतिबद्धता रही. राजनीति में परिवारवाद की संस्कृति को इरादतन रोका. जीते-जी अपने परिवार से किसी अन्य को राजनीति में नहीं आने दिया.वह गृहस्थ संन्यासी रहे. अनासक्त, धवल ईमानदारी, वैचारिक प्रतिबद्धता, अध्येता, समाज के अंतिम आदमी के लिए करुणा-समर्पित जीवन. ऐसे महान गुण ही उनकी राजनीति व जीवन के शक्तिस्रोत थे. उनके व्यक्तित्व के प्रतिबिंब.

उनकी विरासत क्या है?

कवि शंकर प्रलामी की कविता का एक अंश-

‘यकीन करेगा कोई कि
तुम
दो बार बिहार के सीएम
एक बार डिप्युटी सीएम रहे…
1952 से मर जाने तक विधानसभा का कोई चुनाव नहीं हारे….
विपक्ष के नेता रहे. एम पी भी रहे. संसोपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे…..
और मरने के समय
तुम्हारा अपना एक पास-बुक नहीं था
नहीं थी एक गज कोई जमीन या एक झोपड़ी
या मोटर गाड़ी,
जिसे तुम अपना कहते !
तुम्हारे पास वही एक झुग्गी नुमा फूस की छत थी
अपने पैतृक गांव पितौझिया में…’

आज उनके गये लगभग 37 वर्ष हुए. पर, उनके न रहने पर, उनकी राजनीति की विरासत है, आज का यह भव्य आयोजन. उनकी नीतियों की अखिल भारतीय स्वीकृति व सम्मान. उनके न रहने के 36 वर्षों बाद मौजूदा केंद्र सरकार द्वारा ‘भारत रत्न’ का सम्मान. उनके यश-प्रताप का पुनर्जन्म. 1940 से 1988 तक राजनीति में रहे. सामाजिक व आर्थिक समता के लिए. लोहिया-जेपी के समाजवादी आंदोलन का हिस्सा बन कर, सामाजिक न्याय के लिए. जातिविहीन समाज बनाने के लिए, सामाजिक समता, सामाजिक विकास और राज्य-देश निर्माण के लिए आजीवन समर्पित राजनीति.

गांधी जी के आवाहन पर ’42 के आंदोलन में पढ़ाई छोड़ कर शिरकत. जयप्रकाश जी- लोहिया जी के समाजवादी-समतावादी दर्शन के प्रति आजीवन प्रतिबद्धता.
जनता पार्टी राज में बिहार में सत्ता में आते ही समाज के वंचित और पिछड़े समुदाय को सत्ता में हिस्सेदारी, प्रतिनिधित्व देने की दृष्टि भरी साहसिक पहल. उन दिनों के देश-बिहार का समाज कैसा था? मंडल कमीशन आने के बहुत पहले, तब सामाजिक परिवर्तन का यह साहसिक कदम उठाना आसान नहीं था.
पर, कर्पूरी जी का ध्येय अलग था. उनकी एक कविता का स्मरण होता है. आजादी की लड़ाई के दिनों में उन्होंने एक कविता लिखी थी-

‘हम सोए वतन को जगाने चले हैं,
हम मुर्दा दिलों को जिलाने चले हैं…’

आजीवन चंदे से ही चुनाव लड़ते रहे. चंदे के एक-एक पैसे का हिसाब खुद रखते रहे. यह उनका स्व-अनुशासन था. आर्थिक अभावों के बावजूद उन्होंने अपने कामों से अपनी छवि ऐसी बनायी कि वे राजनीति के सहारे नहीं चलते थे, बल्कि राजनीति उनके सहारे चलने लगी थी.

सत्ता में रहे तो कलम से बदलाव की नयी लकीर खींची. एक बार मुख्यमंत्री की हैसियत से बिहार के सात हजार बेरोजगार इंजीनियरों को एकमुश्त गांधी मैदान में नियुक्ति पत्र बांटा. 20 वर्षों से बंद भरती प्रक्रिया के दरवाजे खोल दिये. लगभग दस वर्ष नेता प्रतिपक्ष रहे. तत्कालीन ताकतवर दल के राज में वह असंवैधानिक तरीके से इस पद से हटाये गये थे.

2014 से पहले केंद्र में जो सरकार रही और जिसके सहयोगी लंबे समय से बिहार के भी राजनीतिक दल हैं, उन्होंने कभी पहल नहीं की कि कर्पूरी जी को वह सम्मान मिले, जिसके वे हकदार हैं. पर, प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी की नेतृत्व वाली वर्तमान केंद्र सरकार ने कर्पूरी जी को भारत रत्न सम्मान दिया.

कर्पूरी जी के राजनीतिक सपनों-कार्यक्रमों को आदरणीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने 2005 के बाद व्यावहारिक धरातल पर उतारा.

कर्पूरी जी के बनाये रास्ते पर चलते हुए समाजवादी कड़ी के अंतिम नेता के रूप में आदरणीय नीतीश कुमार जी हैं. अपने समय में अपने परिवार के लोगों को राजनीति से दूर रखना, सार्वजनिक जीवन व महत्वपूर्ण पद पर लंबे समय से रहते भी बेदाग रहना, सबको साथ लेकर चलना, महिलाओं को पंचायतों में आरक्षण देकर संभावनाओं के नये द्वार खोलने की दिशा में किये गये उनके प्रयास, अति पिछड़े से लेकर हाशिये के समाज के लोगों के राजनीतिक उभार की दिशा में किये गये उनके प्रयास, कर्पूरी जी के ही सामाजिक और लैंगिक न्याय के सपनों का संपूर्ण विस्तार है.

इस ऐतिहासिक आयोजन में आमंत्रित करने के लिए माननीय केंद्रीय मंत्री भाई रामनाथ ठाकुर जी का धन्यवाद, हार्दिक आभार.

राज्यसभा के माननीय उपसभापति हरिवंश जी के फेसबुक वॉल से साभार।

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मीडिया के सभी साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद युवा संसद से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों की रिपोर्ट प्रमुखता से प्रकाशित। मीडिया के सभी साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद। प्रो. बी. एस. झा, माननीय कुलपति, बीएनएमयू, मधेपुरा और प्रो. कैलाश प्रसाद यादव, प्रधानाचार्य, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के प्रति बहुत-बहुत आभार।

मीडिया के सभी साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद। कीर्ति कुम्भ (स्मरण एवं संवाद) कार्यक्रम की रिपोर्ट प्रमुखता से प्रकाशित। उद्घाटनकर्ता सह मुख्य अतिथि प्रो. बी. एस. झा, माननीय कुलपति, बीएनएमयू, मधेपुरा और मुख्य वक्ता प्रो. विनय कुमार चौधरी, पूर्व अध्यक्ष, मानविकी संकाय, बीएनएमयू, मधेपुरा के प्रति बहुत-बहुत आभार।