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‘इकोनोमिक्स’-‘मैथमेटिक्स’ एवं ‘फिलॉसफी’

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‘इकोनोमिक्स’-‘मैथमेटिक्स’ एवं ‘फिलॉसफी’

‘इकोनोमिक्स’, ‘मैथमेटिक्स’ एवं ‘फिलॉसफी’ तीनों महत्वपूर्ण विषय है। ‘इकोनोमिक्स’ मुझे कभी भी पसंद नहीं रहा है और मैंने इसकी पढ़ाई नहीं के बराबर की है। लेकिन मैंने इंटरमीडिएट तक ‘मैथ’ की पढ़ाई की है और मैं इसमें अपेक्षाकृत बेहतर भी था।

लेकिन स्नातक में मैंने ‘मैथ’ से किनारा कर लिया और ‘फिलॉसफी’ की ओर बढ़ गया। अब तो ‘फिलॉसफी’ ही मेरे जीवन एवं जीविका का सहारा है। मैं हमेशा अपनी ‘फिलॉसफी’ के अनुसार कार्य करता हूँ और मेरी कोशिश रहती है कि तर्कसंगत ढंग से कार्य करूँ और नैतिक मापदंडों पर खरा उतरूँ।

आज प्रसंगवश ‘फिलॉसफी’ से अधिक ‘इकोनोमिक्स’ एवं ‘मैथमेटिक्स’ की याद आ रही है। जहां तक मुझे जानकारी है ‘इकोनोमिक्स’ में ‘लेबर’ बढ़ाने पर ‘प्रोडक्शन’ बढ़ता है और ‘मैथमेटिक्स’ में किसी भी संख्या में धनात्मक संख्या जोड़ने पर उसका मूल्य बढ़ता है। लेकिन जिंदगी ‘इकोनोमिक्स’ एवं ‘मेथेमेटिक्स’ नहीं है। यहाँ ‘इकोनोमिक्स’ एवं ‘मेथेमेटिक्स का यह नियम उल्टा भी लागू हो सकता है। आसान शब्दों में आपके द्वारा ज्यादा काम करना आपके लिए ‘निगेटिव’ साबित हो सकता है।

खैर, …

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