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आलेख/बचें मानसिक तनाव से/मारूति नंदन मिश्र

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आलेख/बचें मानसिक तनाव से/मारूति नंदन मिश्र

भागती-दौड़ती ज़िंदगी में अचानक लगे ब्रेक ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाला है। आधुनिक मानव इतिहास की सबसे बड़ी विभिषिकाओं में से एक ‘कोरोना युग’ है, इसके संकट से भारत सहित पूरी दुनिया जूझ रही है। भय, चिंता, अकेलापन और अनिश्चितता का माहौल बन गया। ‘कोविड-19’ महामारी से बचाव के लिए देश में लॉकडाउन हुआ। रोजगार के साधन कम हुए और सामान्य वर्गों को आर्थिक संकटों से जूझना पड़ा। नौजवान छात्रों में भविष्य की अनिश्चिता को लेकर तनाव व्याप्त रहा। घर से बाहर दिनभर चहलकदमी करने वाले बच्चे घरों में कैद रहे, स्कूल जाना बंद रहा। लोगों के बीच में अवसाद के साथ-साथ घरेलू विवादों और हिंसा के मामले भी बढ़े। कई लोगों का काम-धन्धा महीनों भर से ठप पड़ा हुआ है। ऐसी स्थिति में वर्तमान जीवन जटिल एवं तनावपूर्ण हो गया है। इस कोरोना काल में आत्महत्या की कई घटनाएं हो चुकी है। नये रोग ‘कोरोना’ से लोग अपरिचित थे, लोगों के मन में कहीं न कहीं इसको लेकर एक गंभीर चिंता अभी भी बनी हुई है। लोगों को लॉकडाउन के कारण कई महीनों तक सामाजिक एकांतवास का सामना करना पड़ा। इन सभी कारणों से लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा है।

निरंतर तनाव झेलते रहना गंभीर मानसिक अवस्था है।पारिवारिक, आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का अंत नहीं है। परन्तु कुछ लोग इस समस्या से संघर्ष करते हुए हताश होकर निराश हो जाते हैं। ऐसे में समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। ऐसे तनावग्रस्त और कुंठाग्रस्त जीवन व्यतीत करते हुए व्यक्ति मानसिक विकृति के शिकार हो जाते हैं, जिससे उचित-अनुचित कदम भी उठा लेते हैं।
विषम परिस्थितियों में संयम और आत्मविश्वास के साथ निदान ढूढने की आवश्यकता होती है। निराशा, असफलता एवं हताशा को नकार कर, थोड़ी सी व्यवहारिक सूझ बूझ व वास्तविकता को स्वीकार कर हताशा में कमी लायी जा सकती है। समय और जीवन दोनों अनमोल होता है, अतः इसका दुरुपयोग न करते हुए सदुपयोग करना चाहिए। मानसिक तनाव से मुक्ति के लिए योग करना विशेष लाभदायक होता है। प्राणायाम एवं ध्यान आदि योग का नित्य अभ्यास करना चाहिए। जिसमें व्यक्ति की विशेष रूचि हो उस रचनात्मक एवं मनोरंजक कार्यों में समय बिताना चाहिए।
दूसरे व्यक्ति से विशेष उम्मीद न करके जीवन की वास्तविकता को समझते हुए अपना व्यवहार रखना चाहिए। इस विचार से कुंठित होने से बचा जा सकता है।
जब कोई दूसरे परेशानी में रहता है तो उन्हें सांत्वना देकर उनका हौसला बढ़ाना हमारे लिए आसान होता है। वहीँ अपने साथ ऐसा नहीं कर पाते। ऐसी स्थिति में अपने लिये भी सकारात्मक सोच अपनाना चाहिए। इंसानों की खुशियां सिर्फ बड़ी-बड़ी उपलब्धियों में ही निहित नहीं होती, छोटी-छोटी बातों में भी ढेरों खुशियां मिल सकती हैं। विपरीत परिस्थितियों का सामना अपने सकारात्मक विचारों से अपनी ईच्छाओं के अनुरूप बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। एकांत के क्षणों में स्वयं के बारें में आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है। मारूति नंदन मिश्र, नयागांव, खगड़िया, बिहार

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