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Kabir। अद्वितीय हैं कबीर : डाॅ. रवि

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कबीर अद्वितीय हैं। उनके समान कोई दूसरा उदाहरण ढूंढना मुश्किल है। वे जन-जीवन के सबसे सार्थक कवि हैं।

यह बात पूर्व सांसद (लोकसभा एवं राज्यसभा) और बीएनएमयू, मधेपुरा के संस्थापक कुलपति प्रोफेसर डॉ. रमेन्द्र कुमार यादव ‘रवि’ ने कही।

वे गुरूवार को यू-ट्यूब चैनल बीएनएमयू संवाद पर कबीर का दर्शन विषयक व्याख्यान दे रहे थे। इस व्याख्यान का आयोजन डॉ. रवि की पाठशाला के अंतर्गत किया गया।

उन्होंने बताया कि कबीर कहते हैं, “कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ, जो घर जारे आपना चलो हमारे साथ।” लेकिन आज हमें अपना घर-परिवार छोड़कर कुछ नहीं दिखता है। अतः कबीर को जानने के लिए निजता की परिधि से ऊपर उठना होगा।

उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि यह संसार काजल की कोठरी है। इसमें आकर भी कबीर जैसे लोग बेदाग रहे। कबीर ने काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष एवं स्वार्थ से ऊपर उठकर सत्य साहित्य की रचना की। निर्भिक साहित्य की रचना की और जन-जीवन को एक अमूल्य उपहार दिया।

उन्होंने कहा कि कुछ लोग कबीर को हिंदू मानते हैं, जबकि कुछ लोग उन्हें मुसलमान मांगते हैं। लेकिन वे पूर्ण मानव और सच्चे कवि थे। कबीर ने जातिवाद, सांप्रदायिकता, धर्मांधता आदि के खिलाफ आवाज उठाई।

उन्होंने बताया कि कबीर ने हिंदुओं एवं मुसलमानों दोनों की रूढियों को चुनौती दीं। उन्होंने हिंदुओं को कहा किपत्थर के पूजने से हरि मिले, तो मैं पहाड़ की पूजा करूँ। इससे अच्छा तो चक्की है, जिसे पीस कर संसार खाता है। मुसलमानों से कहा कि कंकड़-पत्थर जोड़ कर मस्जिद बना लिए और वहां से आवाज दे रहे हो। क्या खुदा बहरा हो गया है ?

उन्होंने कहा कि कबीर के विचार, लेखन एवं कर्म में एकरूपता थी। वे जो सोचते थे, वही करते थे। जो सोचते थे एवं करते थे, वही लिखते थे। आज लोग सोचते कुछ हैं, बोलते कुछ हैं, लिखता कुछ है और करते कुछ और हैं।

उन्होंने बताया कि कबीर ने कहा है कि “साईं इतना दीजिए जामे कुटुम्ब समाय। मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाए।” इसमें कबीर के विचारों में समाजवाद के बीज मौजूद हैं। डाॅ. राम मनोहर लोहिया, आचार्य नरेंद्रदेव, राज नारायण, मधु लिभये आदि के समाजवादी विचारों पर कबीर की छाप है।

जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने बताया कि शुक्रवार को डाॅ. रवि की पाठशाला में स्वतंत्रता दिवस के विभिन्न पहलुओं पर संवाद होगा।

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