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स्वराज सिद्धि की आधारशिला है वेदान्त दर्शन : प्रो. शुक्ल

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स्वराज सिद्धि की आधारशिला है वेदान्त दर्शन : प्रो. शुक्ल
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आज जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के सीनेट हॉल में इतिहास विभाग, दर्शनशास्त्र विभाग एवं #इतिहास_संकलन_समिति #उत्तर_बिहार के संयुक्त रूप से “भारतीय ज्ञान परंपरा एवं भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में वेदांत दर्शन की भूमिका” विषयक एक दिवसीय विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया।

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बतौर मुख्य वक्ता, अखिल भारतीय इतिहास-संकलन योजना (Abisy Yojana) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) रजनीश कुमार शुक्ल (Rajaneesh Shukla) पूर्व कुलपति, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा) ने वेदांत दर्शन को केवल ज्ञान की पराकाष्ठा के रूप में ही विश्लेषित नहीं किया, वरन् उसे वेदों का सार और उसकी हृदयस्थली भी बताया, जो सभी सीमाओं से परे है। यूरोपीय दार्शनिक परंपराओं से इसकी तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि जहाँ यूरोपीय दर्शन मानव को संपूर्ण रूप से परिभाषित करने में असफल रहता है, वहीं वेदांत मानव अस्तित्व की पूर्ण परिभाषा प्रदान करता है।

प्रो. शुक्ल ने अद्वैत दर्शन का उल्लेख करते हुए पृथ्वी को एक पोषण देने वाली माँ के रूप में परिभाषित किया और वेदांत के व्यावहारिक पहलुओं को कर्मयोग के माध्यम से समझाया, जो परिणामों से रहित सही कर्म करने की वकालत करता है। उन्होंने “स्वराज सिद्धि” नामक 1862 में लिखित पुस्तक का संदर्भ दिया और इसे वेदांत की व्यावहारिक प्रासंगिकता का अद्भुत उदाहरण बताया। उन्होंने बताया कि यह पुस्तक भारतीयों में आध्यात्मिक जागृति लाने का कार्य करती है और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आंतरिक शक्ति का स्रोत बनी। उन्होंने वेदांत की शिक्षाओं को राष्ट्रीय आंदोलन की आधारशिला बताते हुए कहा कि इनसे क्रांतिकारियों में आत्मनिर्भरता, धैर्य और नैतिक साहस का संचार हुआ, जिसने उन्हें औपनिवेशिक उत्पीड़न के खिलाफ दृढ़ता से खड़े होने में सक्षम बनाया।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इतिहास संकलन समिति, उत्तर बिहार के माननीय अध्यक्ष प्रो. अजीत कुमार (Ajit Kumar) ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में पुराणिक और ब्राह्मण ग्रंथों को कमजोर या अप्रासंगिक मानने की धारणाओं को खारिज किया। उन्होंने इन ग्रंथों का गंभीर अध्ययन किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि ये “आत्मीय चेतना” (आध्यात्मिक चेतना) और “स्वचेतना” (आत्म-जागरूकता) पर आधारित गहन पाठ प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने जाति और धर्म से परे मानव सेवा की शिक्षाओं को रेखांकित किया, जो राष्ट्रीय आंदोलन के आदर्शों के साथ गहराई से जुड़ी हुई थीं।

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धन्यवाद ज्ञापन प्रो. रामनाथ प्रसाद ने किया साथ ही जय प्रकाश विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. (डॉ.) प्रमेंद्र बाजपेई के दूरदर्शी नेतृत्व की सराहना की, जिनकी पहल ने विश्वविद्यालय की शैक्षणिक जीवंतता को बढ़ावा दिया है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने डॉ. रितेश्वर नाथ तिवारी (Riteshwar Nath Tiwari प्रचार एवं संपर्क प्रमुख, इतिहास संकलन समिति उत्तर बिहार) को संगोष्ठी के सफल एवं कुशल आयोजन के लिए विशेष रूप से धन्यवाद दिया।https://www.youtube.com/live/1aQxUzgpN2E?si=NCbgOSLq6hq7MinX
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रपट साभार: आयोजन टोली, इतिहास विभाग, जय प्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, बिहार

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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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