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भारत के सांस्कृतिक उत्कर्ष के सबसे बड़े नायक हैं राम*

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महाकाव्यों का दर्शन विषयक संवाद आयोजित

 

*भारत के सांस्कृतिक उत्कर्ष के सबसे बड़े नायक हैं राम*

 

श्रीराम भारत की ऐतिहासिक गौरव एवं सांस्कृतिक उत्कर्ष के सबसे बड़े नायक हैं। बाल्मिकी ने रामायण में राम के माध्यम से जिस भारत की संकल्पना की है, वह हमारे इतिहास का गौरवपूर्ण अध्याय रहा है। इसी की आधुनिक कड़ी महात्मा गाँधी के चिंतन में रामराज्य के रूप में सामने आई है और यही विकसित भारत का भी आधार है।

 

यह बात दर्शनशास्त्र विभाग, हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर (मध्यप्रदेश) के पूर्व अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के पूर्व महासचिव प्रो. (डॉ.) अम्बिका दत्त शर्मा ने कही।‌ वे शनिवार को बीएनएमयू, मधेपुरा की अंगीभूत इकाई ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के तत्वावधान में आयोजित संवाद में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित संवाद का विषय महाकाव्यों का दर्शन था।

 

उन्होंने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम सत्यव्रती राम सनातन धर्म की मर्यादा के उत्कर्ष हैं। वे मानवीय मूल्यों, नैतिक संस्कारों एवं सामाजिक सरोकारों के सर्वोच्च आदर्श हैं। श्रीराम के आदर्शों पर चलकर ही हम भारत को वैभवशाली एवं विकसित बना पाएंगे।

 

*महाकाव्यों ने डाला है भारत पर गहरा प्रभाव*

मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ महाविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) में दर्शनशास्त्र विभाग की सेवानिवृत्त अध्यक्षा प्रो. शोभा निगम ने कहा कि रामायण एवं महाभारत भारतीय परंपरा के दो महान महाकाव्य हैं। इन दोनों महाकाव्यों ने भारत पर गहरा प्रभाव डाला है और दुनिया की नैतिक समृद्धि में महती भूमिका निभाई।

 

*जीवन जीने का तरीका सीखाते हैं महाकाव्य*

कार्यक्रम में संपूर्ति वक्तव्य दर्शनशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज)उत्तर प्रदेश) के पूर्व अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो. जटाशंकर ने कहा कि हमारे महाकाव्य हमें जीवन जीने का तरीका बताते हैं। रामायण सत्य की और महाभारत धर्म की प्रतिष्ठा कराना चाहता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एवं लीलापुरुषोत्तम श्रीकृष्ण दो अलग-अलग युगों के नायक हैं। लेकिन दोनों के आदर्श एक हैं।

 

*महाकाव्यों में दुनिया के कल्याण की भावना*

कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए आईसीपीआर, नई दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष एवं भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला (हिमाचल प्रदेश) के राष्ट्रीय फेलो प्रो. रमेशचंद्र सिन्हा ने कहा कि हमारे महाकाव्यों में न केवल सभी मनुष्यों, वरन् संपूर्ण चराचर जगत के कल्याण की कामना की गई है।‌ आज युद्धों से घिरी दुनिया में इस कल्याणकारी विचारों की प्रासंगिकता काफी बढ़ गई है।

 

*भजन से हुई कार्यक्रम की शुरुआत*

इसके पूर्व कार्यक्रम की शूरूआत संगीत शिक्षिका शशिप्रभा जायसवाल द्वारा ‘राम आएंगे…’ भजन से किया गया। स्वागत भाषण ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के प्रधानाचार्य प्रो. कैलाश प्रसाद यादव ने दिया। संचालन दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने किया। धन्यवाद ज्ञापन पटना विश्वविद्यालय, पटना में दर्शनशास्त्र विभाग की पूर्व अध्यक्षा एवं दर्शन परिषद्, बिहार की अध्यक्षा प्रो. पूनम सिंह ने किया। तकनीकी पक्ष डॉ. विनय कुमार, भोपाल (मध्य प्रदेश) एवं सौरभ कुमार चौहान, मधेपुरा (बिहार) ने संभाला।

 

इस अवसर पर प्रो. गीता मेहता (मुम्बई), प्रो. राजकुमारी सिन्हा (रांची), प्रो. जे. एस. दुबे (भोपाल), प्रो. पूर्णेन्दु शेखर (भागलपुर), डॉ. सुधा जैन (वाराणसी), प्रो. सुधा सिन्हा (पटना), डॉ. विजय कुमार (मुजफ्फरपुर), प्रो. रजनी सिन्हा (जलगांव), डॉ. आलोक टंडन (हरदोई), प्रो. सुनील कुमार (मुजफ्फरपुर), प्रो. अजीत कुमार ठाकुर (मुंगेर), डॉ. सिद्धेश्वर काश्यप (मधेपुरा), डॉ. दीनानाथ साह आदि उपस्थित थे।

 

*सभी प्रतिभागियों को दिया गया प्रमाण-पत्र*

कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि यह कार्यक्रम देशभर के विद्वानों से संवाद का एक महत्वपूर्ण अवसर रहा। इसमें भाग लेने वाले प्रतिभागी विद्वान वक्ताओं से प्रश्न भी पुछा। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम पूर्णतः नि:शुल्क रहा। इसमें शामिल होने वाले सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र भी दिया गया।

*जनवरी में होगा अगला संवाद*

उन्होंने बताया कि स्टडी सर्किल के तहत आगे दस व्याख्यान होना है। इसकी अगली कड़ी (पंद्रहवां संवाद) जनवरी 2025 में आयोजित किया जाएगा।

कार्यक्रम का यू-ट्यूब लिंक-

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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