डॉ. रवि, कविता और राजनीति
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(डॉ. रवि की जयंती (3 जनवरी) के अवसर पर उनके पुत्र और बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष डॉ. अमरदीप के द्वारा लिखा गया आलेख)
नई दिल्ली से प्रकाशित अंग्रेजी पत्रिका एलाइव (Alive) ने अपने सितंबर, 1996 के अंक में डॉ. रवि का साक्षात्कार प्रकाशित किया और उसे शीर्षक दिया – एन एमपी विद अ डिफरेंस (An MP with a Difference)। गलत नहीं लिखा था पत्रिका ने। राजनीति की धूप में जो चीज उन्हें भीड़ से अलग करती थी, वो थी उनकी नस-नस में दौड़ती कविता की अविरल धारा। कविता केवल दौड़ती ही नहीं थी बल्कि छलकती भी थी उनके रोम-रोम से। वो भी कुछ इस तरह कि इनकी अधिकांश पुस्तकें एक-एक बैठक में लिखी गई थीं।
ये कविता ही थी कि डॉ. रवि लड़ते रहे धूप, हवा और पानी से और गढ़ते रहे स्वयं को और बुनते रहे इतिहास अपने व्यक्तित्व का और इस विश्वास के साथ कि “मैं छोटा नहीं बन सकता, बड़ा बनने के लिए”। कविता उनके संघर्ष की ताकत रही और उनकी उपलब्धियों की साक्षी भी। इस कविता ने उनके व्यक्तित्व को कई आयाम दिए – संसद के भीतर भी और बाहर भी।
यह सुनकर और जानकर किसी को भी आश्चर्य होगा कि राजनीति में इनकी पहचान की आधारशिला इसी कविता ने रखी थी। सुनकर अटपटा लग सकता है कि खुरदरी-कठोर राजनीति और कोमल-सी, मासूम-सी कविता। लेकिन ये सच है क्योंकि उनकी कविता मे वो ऊर्जा है, आग है, तड़प है – तड़प कुछ कर गुजरने की, तड़प एक लीक खींचने की –
मैं एक लीक खींचना चाहता हूँ –
जो युग की निर्धारित सीमाओं से परे हो
जिसमें संसृति का अवगुंठन हो
युग-जनित पीड़ाओं का क्रमबद्ध दर्शन हो
और हो
धड़कनों के उन्माद के साथ
आने वाली संततियों के निमित्त
एक संबल! एक हंसता हुआ प्रभात!!
उनकी लड़ाई शुरू से ही अलग थी। उन्होंने अपने लिए जो लीक तय किया, जो मापदंड और मानदंड बनाए उसमें कभी विचलन न आने दिया। वे हमेशा राजनीति को नया संस्कार देने की बात करते रहे और आजीवन देते भी रहे।
1977 से 1980 के बीच लिखी इनकी रचनाएं – परिवाद, आपातकाल क्यों, लोग बोलते हैं और बातें तेरी कलम मेरी – चर्चा का विषय हुआ करतीं और इंदिरा गांधी के ड्राइंग रूम और अध्ययन कक्ष का अनिवार्य हिस्सा हुआ करतीं। अपनी व्यस्ततम दिनचर्या के बावजूद इंदिरा जी इनकी रचनाओं को आद्योपांत सुना करतीं। 1980 में जब डॉ. रवि कांग्रेस के टिकट पर मधेपुरा से चुनाव लड़ रहे थे, इंदिरा जी खास तौर से इनके प्रचार के लिए आईं। उस सभा में डॉ. रवि ने अपना पूरा संबोधन कविता में ही किया था। यह संयोग से कुछ अधिक है कि 14 दिसंबर, 1984 को जब डॉ. रवि मधेपुरा में भूतपूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह की उपस्थिति में लोकदल में शामिल हो रहे थे तब चौधरी साहब ने उनसे कविता में ही बोलने की फरमाईश की थी।
कविता ही उनका भाषण थी या भाषण ही उनकी कविता – यह कहना मुश्किल हो जाया करता। उनके ऐसे भाषणों का गवाही बिहार विधानसभा से लेकर संसद के दोनों सदन तक दे सकते हैं। उनके काव्यमय संस्कार, उनकी वक्तृता और अद्भुत प्रतिभा की कायल शख्सियतों में कई बड़े नाम – कर्पूरी ठाकुर, विश्वनाथ प्रताप सिंह, इन्द्र कुमार गुजराल, एच. डी. देवगौड़ा, एस.आर. बोम्मई, मुरली मनोहर जोशी, कर्ण सिंह, जगन्नाथ मिश्र, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव, रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार – शामिल रहे। मधेपुरा के पूर्व सांसद और बीएमएमयू के कुलपति रहे महावीर प्रसाद यादव कहा करते – डॉ. रवि वह पारसमणि है, जो मिट्टी को भी छू दे तो सोना हो जाए।
डॉ. रवि ने अभावों को बनाया अपना गुरु, संघर्षों से ली ऊर्जा और चलते रहे अतीत को सारथि बना वर्तमान के पथ पर भविष्य की ओर। साथ में रही कविता। कविता उनका साध्य थी, साधन थी और साधना भी। कविता ने ही उनके व्यक्तित्व को बनाया था विराट और पारदर्शी। उन्हें उनकी जयंती 3 जनवरी पर स्मृति की अनगिनत मूक रेखाओं और ह्रदय की सम्पूर्ण आस्था और श्रद्धा के साथ नमन करता हूँ।
-डॉ. अमरदीप, अध्यक्ष, बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग का अपने पिता डॉ. रमेन्द्र कुमार यादव रवि के ऊपर लिखा संस्मरणात्मक आलेख।
– ध्यातव्य है कि डॉ. रवि सिंहेश्वर के विधायक, मधेपुरा के सांसद और दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे। वे टी.पी. कॉलेज, मधेपुरा के प्रोफेसर, प्रिंसिपल और बीएमएमयू, मधेपुरा के संस्थापक कुलपति रहे। साथ ही वे सुप्रसिद्ध कवि और दर्जनों पुस्तकों के रचयिता भी थे। उनकी रचनाएं दुनिया के 110 देशों में हैं। शिक्षा, साहित्य, राजनीति, समाजसेवा – हर क्षेत्र में उन्होंने अमिट छाप छोड़ी थी। मधेपुरा, कोसी और बिहार की उन्होंने कई रूपों में सेवा की थी और अपनी अलग पहचान बनाई थी।