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Kavita कविता। फटा जीन्स, निकली नई संस्कृति!  डॉ. सामबे
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Kavita कविता। फटा जीन्स, निकली नई संस्कृति!  डॉ. सामबे

कविता। फटा जीन्स, निकली नई संस्कृति! डॉ. सामबे जब औरतों के जिस्म पर/होता था आंचल/तो बनते थे गीत-/छोड़ दो आंचल जमाना क्या कहेगा!/जब औरतें थी आंचल में/तो आंचल मैला होता था/और उपन्यास लिखा जाता था/मैला आँचल!                                         आंचल के साथ/बहुत समस्या थी! /आंचल लहराता थाऔर लिखने वाले लिखते थे/लहरा के आंचल/ तुझकुो लाए बार-बार/कोई नहीं है/फिर भी है मुझको/ना जाने किसका इंतज़ार! जब आंचल में होती थी नारी/तो निकलती थी पंक्ति-/हाय अबला तेरी यही कहानी/आंचल में है दूध/आंखों में पानी! औरतों ने बदल दी तमाम कहानी/और आंचल को छोड़कर/धारण कर ली है/जीन्स और टाप/सारे गीतकारकवि और उपन्यासकार/हो गए फ्लाप!            एक साथ/मन की बात की तरह लोकप्रिय/हो गए रंग बिरंगे टाप!                                                           चला गया है/छोड़ दो आंचल का जमाना/आ गया है बाजार में/फटा ...
Kavita सफलताएं। प्रेमकुमार मणि।
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Kavita सफलताएं। प्रेमकुमार मणि।

सफलताएं   प्रेमकुमार मणि कहा गया मुझ से /आलस्य छोड़ दो /छोड़ दिया मैंने/नींद पर लगाम लगाई /अल्पाहारी बना।                          संसार में जितनी कमियां थीं, मुझ में थी/दूसरों की निन्दा-आलोचना की फुर्सत नहीं थी मुझे/ फूंक-फूंक कर कदम रखे/ संभव सावधानियां बरतीं।   असर हुए सब के आत्मविश्वास लौटा सफलताएं हासिल की मेरे चारों तरफ अब एक दुनिया थी केन्द्रक मैं था।   मुझे संतुष्ट होना था लेकिन वह संभव नहीं हुआ मुझे अधिक ऊंचाइयां चाहिए थीं सीढ़ियां नाकाफी थीं मेरे लिए पूरा आकाश चाहिए था मुझे चाँद-सितारों से भरा आकाश।   मना किया गया मुझे सफलताओं की भी सीमा होनी चाहिए जिंदगी की भी सीमा है. किन्तु मेरी जिद में चाँद-सितारे थे ब्रह्माण्ड था पूर्ण नहीं,सम्पूर्ण होने की आकांक्षा थी स्वर्ग चाहिए था मुझे उस...