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Poem। कविता। सिरजने का सुख
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Poem। कविता। सिरजने का सुख

सिरजने का सुख **************** खेत मेरा है, मेहनत मेरी है , पसीना मेरा बहा, मेहनत मैंने किया. बारिश में भींगते हुए, लू में तपते हुए, जाड़े में ठिठुरते हुए, बाढ़ में फंसते हुए, जीवन मैंने जिया, मेहनत मैंने किया। बीज के लिए, खाद के लिए, जुताई के लिए, बुआई के लिए, हमने साझा काम किया। हर क्षण हमने गीत गाया, कुदाल चलाते हुए, धान रोंपते हुए, फसल काटते हुए, फसल ओसाते हुए। खुश हैं हम, सिरजने के सुख से. लेकिन हमारी हर खुशी को हमसे छीनी जा रही है। हमारे आधार को हमसे दरकाया जा रहा है। अब हम किसके भरोसे रहेंगे ? ना तो खेत मेरी है, ना खाद मेरा है, ना पानी मेरा रहा, ना तो समाज मेरा रहा। आहिस्ता-आहिस्ता,                                                              हर हमारी चीज तुम्हारी हुई, पहले हमारी मेहनत गई,                                                      फिर हमारी एकता गई, ...