Tag: डॉ.

BNMU। पीआरओ की पीड़ा/ डॉ. सुधांशु शेखर
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BNMU। पीआरओ की पीड़ा/ डॉ. सुधांशु शेखर

पीआरओ की पीड़ा =================== ---------------------------------------------- मैं मूलतः एक पत्रकार हूँ। मैंने स्नातक के अध्ययन के दौरान ही 'प्रभात खबर', भागलपुर से सक्रिय पत्रकारिता की शुरूआत की थी और उन्हीं दिनों मैं कई सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संगठनों में भी सक्रिय था। उन दिनों पत्रकारिता की पृष्ठभूमि से आने के कारण मुझे विभिन्न संगठनों द्वारा कार्यक्रमों की विज्ञप्ति लिखने का भार दे दिया जाता था। कई संगठनों ने मुझे घोषित एवं अघोषित रूप से अपना अवैतनिक मीडिया प्रभारी बना लिया था। उन दिनों हम हाथ से सादे कागज पर लिखकर 'प्रेस-विज्ञप्ति' भेजते थे और पत्रकारिता की पृष्ठभूमि के साथ-साथ मेरी थोड़ी अच्छी हेंडराइटिंग भी मेरे लिए 'सजा' हो गई थी। अदावतें मुश्किल से मरती हैं... ----------------------------- इधर, बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर बनने के ...
Ambedkar। मेरे जीवन में डॉ. अंबेडकर
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Ambedkar। मेरे जीवन में डॉ. अंबेडकर

मेरे जीवन में डॉ. अंबेडकर -------------------------- मेरी समकालीन भारतीय दार्शनिकों में रूचि है। खासकर स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी, डाॅ. भीमराव अंबेडकर, जे. कृष्णमूर्ति और ओशो रजनीश मेरे प्रिय हैं। मैंने इन सबों की कई पुस्तकें पढ़ी हैं और मेरे जीवन पर इन सबों का प्रभाव भी है। लेकिन मैं सबसे अधिक डाॅ. अंबेडकर से प्रभावित रहा हूँ-न केवल वैचारिक रूप से, बल्कि व्यावहारिक रूप से भी। आज मैं जो कुछ भी हूँ, उसमें डाॅ. अंबेडकर के प्रति मेरे लगाव की बड़ी भूमिका है। मुख्य बातें निम्नवत हैं- ___________ 1. शोध का निर्णय --------- मैंने एम. ए. की पढ़ाई के दौरान ही तय कर लिया था कि मुझे पी-एच. डी. शोध करना है, डाॅ. भीमराव अंबेडकर के दर्शन पर। मैंने इस बात को ध्यान में रखकर मन ही मन शोध-निदेशक का चयन शुरू किया। मुझे ऐसे शिक्षक की तलाश थी, जो विषय के अधिकारिक विद्वान हों, सामाजिक न्याय क...
BNMU प्रथम साक्षी से संवाद/ शिक्षक एवं शिक्षार्थी में तारतम्य आवश्यक : डॉ. रवि
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BNMU प्रथम साक्षी से संवाद/ शिक्षक एवं शिक्षार्थी में तारतम्य आवश्यक : डॉ. रवि

प्रथम साक्षी से संवाद जनवरी 1992 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव की सरकार ने कोसी में विश्वविद्यालय की बहुप्रतीक्षित मांग को पूरा किया और मधेपुरा को इसका मुख्यालय बनाया। इस तरह बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय का जन्म हुआ। इसमें डॉ. रमेन्द्र कुमार यादव 'रवि' की महती भूमिका रही और सौभाग्य से आपको विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति होने का गौरव भी प्राप्त हुआ। इस तरह आप इस विश्वविद्यालय के प्रथम साक्षी हैं। आपने इस विश्वविद्यालय की गर्भावस्था का सुख अनुभूत किया और इसकी प्रसव वेदना भी झेली। इसे घुटने के बल चलते देखा, फिर डगमगाते हुए दौड़ते भी देखा और आज इस मुकाम पर भी देख रहे हैं। आप इस विश्वविद्यालय के अतीत, वर्तमान एवं भविष्य अर्थात् कल, आज एवं कल को एक साथ देख रहे हैं। इस विश्वविद्यालय का वांग्मय चाहे जितना बड़ा हो जाए, इसकी इमारतों की मंजिलें चाहे कितनी भी ऊंची क्यों न...
Bihar। कीर्ति नारायण मंडल : व्यक्तिव एवं कृतित्व / प्रो. (डॉ.)  नरेश कुमार, महासचिव, बीएनमुस्टा, मधेपुरा, बिहार
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Bihar। कीर्ति नारायण मंडल : व्यक्तिव एवं कृतित्व / प्रो. (डॉ.) नरेश कुमार, महासचिव, बीएनमुस्टा, मधेपुरा, बिहार

कीर्ति नारायण मंडल : व्यक्तिव एवं कृतित्व ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय मधेपुरा, मधेपुरा में महामना कीर्ति नारायण मंडल की जयंती कार्यक्रम में आना एक सुखद अनुभव दे रहा है। आज यह कार्यक्रम आनंदित कर रहा है, आहलादित कर रहा है। यह स्थान चेतना जागृत करने का स्थान है। यह पुण्य क्षेत्र है, जिसको एक महात्मा ने स्थापित किया। इसकी विशालता इससे प्रमाणित होती है कि इसके द्वारा एक विश्वविद्यालय का निर्माण होता है। इस विशाल वृक्ष से फलित व्यक्ति के द्वारा आज 50 से उपर महाविद्यालय का निर्माण हुआ। उस महात्मा को आज हमलोग श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे हैं।   मधेपुरा, सिंहेश्वर एवं मनहरा मिलकर एक समबाहु त्रिभुज बनाता है। मधेपुरा अनुमंडल मुख्यालय होता है। सिहेंश्वर शिव का मुख्यालय है। त्रिभुज के एक शीर्ष पर छोटा सा गाँव मनहरा अवस्थित है। जहाॅं कई महापुरुषों का अवतरण होता है। इनमें आजादी के पहले से द...
Culture कारपोरेट कल्चर : मंथरा, कैकई एवं विभीषण की पॉपुलरिटी खतरनाक/ लेखक- डॉ. प्रणय प्रियंवद, जमालपुर, मुंगेर, बिहार
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Culture कारपोरेट कल्चर : मंथरा, कैकई एवं विभीषण की पॉपुलरिटी खतरनाक/ लेखक- डॉ. प्रणय प्रियंवद, जमालपुर, मुंगेर, बिहार

कारपोरेट कल्चर : मंथरा, कैकई एवं विभीषण कीपॉपुलरिटी खतरनाक लेखक- डॉ प्रणय प्रियंवद, जमालपुर, मुंगेर, बिहार रा = राष्ट्रीय म= मन राम कथा का सबसे पसंदीदा पात्र आपके लिए कौन है? किसी को कैकई पसंद नहीं होगी। मंथरा पसंद नहीं होगी। लेकिन समय ऐसा है कि हमारे आस-पास छल-प्रपंच इतना बढ़ गया है कि रामायण के केकई, मंथरा और महाभारत के शकुनी जैसे पात्रों का बोलबाला हो गया है। हर ऑफिस में आपको एक मंथरा मिल जाएगी। जैसे शकुनी भी मिल जाएगा। जैसे वह विभीषण मिल जाएगा जिसका मकसद राम को सही रास्ता दिखाने के बजाय सिर्फ इधर की बात उधर करने वाला है। मंथरा, शकुनी और नए विभीषण जैसे पात्र बॉस के सबसे करीब होते हैं। ये जाति के खेल से लेकर बॉस तक अवैध रम पहुंचाने का भी खेल खेलते हैं। बॉस जैसे भी खुश हो, वह सब करने को तैयार। कोई बॉस राम होने की योग्यता भी नहीं रखता तो उसे सबरी कहां से मिलेगी, लक्ष्मण कहा...
Hindi तदुपरान्त बनाम तदोपरान्त / प्रोफेसर डॉ. बहादुर मिश्र, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार
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Hindi तदुपरान्त बनाम तदोपरान्त / प्रोफेसर डॉ. बहादुर मिश्र, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार

तदुपरान्त बनाम तदोपरान्त मेरे प्राध्यापकीय जीवन के प्रारम्भिक दिन थे। उनदिनों मैं भागलपुर के टी.एन.बी. काॅलेज में पदस्थापित था। बी. ए. के पाठ्यक्रम में हिन्दी की एक पुस्तक लगी थी, जिसका सम्पादन स्थानीय वरिष्ठ प्राध्यापक ने किया था। उस पुस्तक की भूमिका के अतिरिक्त हर पाठ के पूर्व लिखित कवि/लेखक-परिचय में कम-से-कम डेढ़ दर्जन स्थलों पर सम्पादक महोदय ने ‘तदुपरान्त’ की जगह ‘तदोपरान्त’ का प्रयोग कर रखा था। यह मेरे लिए हैरान करने वाली बात थी; क्योंकि अर्थ की दृष्टि से दोनों में स्प ष्ट अन्तर है। चलिए, दोनों के बीच का तात्त्विक अन्तर समझें। तत्+उपरान्त = तदुपरान्त (व्यंजन सन्धि) का शाब्दिक अर्थ होता है-- उसके बाद (आफ़्टर दैट)। आपने ‘तत्’ (वह ) शब्द रूप पढ़ा होगा। पुलिंग में सः (एकवचन)- तौ (द्विवचन)-ते (बहुवचन) स्त्रीलिंग में सा (एक वचन)-ते ( द्विवचन)-ताः(बहुवचन) तथा नपुंसक लिंग में तत्(एकवचन)-ते...
कविता/जिनका बचपन जिनके कंधे पर है/ डॉ. कर्मानंद आर्य
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कविता/जिनका बचपन जिनके कंधे पर है/ डॉ. कर्मानंद आर्य

जिनका बचपन जिनके कंधे पर होता है उनकी जवानी उनके कंधे पर कभी नहीं होती यानी वह किसी और के कंधे पर सवार हो तय करती है शेष यात्रा एक ब्रह्मांड से दूसरे ब्रह्मांड तक एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक एक दुनिया से दूसरी दुनिया तक शेष बची रहती है शरीर में बचे हुए बचपन की तरह वह पहाड़ सी उठ जाती है किसी ऊँची चीज की ही तरह गगनचुंबी बातें करती है उड़ती है आसमानों से ऊपर बनकर चील वह मुर्गे की तरह बांग देती है जगाती है श्रमशीलों को देखती है वहां से लौटकर बचपन के कंधों पर उभरे हुए घाव और मरहम अमरता कुछ नहीं एक शब्द मात्र है एक शब्दकोश में क्योंकि बचपन भी एक शब्द है जो सब डिक्शनरियों में नहीं मिलता जिनका बचपन जिनके कंधे पर कभी नहीं आता जिसके साथ साथ चलता रहता है उनका भाग्य विधाता वे बचपन की कीलों के बारे में क्या जानें वे सधी दलीलों के बारे में क्या जाने मेरा बचपन म...
कविता / मुझे अँधेरों में रखा / डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’ श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड
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कविता / मुझे अँधेरों में रखा / डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’ श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड

मुझे अँधेरों में रखा डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री' श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड मेरी सरलता ने मुझे अंधेरों में रखा, वरना, कोई कमी न थी मुझे उजालों की। उसके मोह ने इस शहर के फेरों में रखा, हवा न लगी मुझे मशहूर होने के ख्यालों की। झिर्रियों की रोशनी को बाँह के डेरों में रखा, जिससे घबरायी वो परछाईं थी मेरे ही बालों की। उसने हमराज़-हमदर्द शब्दों के ढेरों में रखा, नैनों की भाषा हारी, लिपि भावों के उबालों की। चाँद ने उस रात प्यार के घेरों में रखा, सूरज ने हमेशा गवाही दी मेरे पैरों के छालों की। दूर के पर्वत की चोटी को मैंने पैरों में रखा, जानकर 'कविता' अनदेखी करती रही चालों की डॉ. कविता भट्ट लेखिका/साहित्यकार, सम्पादिका तथा योग-दर्शन विशेषज्ञ हैं। आप 'उन्मेष' की राष्ट्रीय महासचिव के रूप में समाज सेवा में निरन्तर निरत हैं। शैक्षणिक एवं साहित्यिक लेखन हेतु आपको अनेक प्रत...