मैं राम हूँ
प्रेमकुमार मणि, पटना
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सब की तरह
मैंने भी सोचा कई बार
मैं कौन हूँ
एक नाम
एक विचार
एक राजा
या कि फिर
भगवान.
तय नहीं कर पाता
मैं क्या हूँ
इतिहास
मिथक
कथा
मंत्र
मूरत
या फिर
ध्यान.
आप ही बताओ !
क्या हूँ मैं
अज का पौत्र
दशरथ का पुत्र
सीता का पति
या लव-कुश का पिता.
सोचता हूँ बार-बार
न अच्छा पुत्र बन सका
न अच्छा पति
न अच्छा पिता.
यातनाओं का जीवन रहा
निर्वासित हुआ अपने ही कुनबे से
भटकता रहा पौराणिकता
और इतिहास के जंगलों में
पत्थरों पर सिर पटक-पटक रोया
रा व ण से टकराया
कवियों ने किया श्रृंगार-पटार
काव्य रचे गए
संतों ने मुझे माया-मुक्त कर साँसों पर बिठाया
अपनी धड़कन का हिस्सा बनाया
शिल्पियों ने मूर्तियां गढ़ीं
पुजारियों ने भरी जान
मेरी दुकान सजाई
स्त्रियों ने मुझे गीतों में गूँथा
भक्तों ने अपने भजन में
मेरी रामनामी ओढ़
जाने कितने हुए पार.
बहुत हुआ इस्तेमाल
बहुत हुए मालामाल
अपने-अपने तरीके से
मैं नाथूराम की गोली बना
गांधी की बोली
और अब देखो
बन गया नेताओं की
वोट मांगने वाली झोली.
मैं क्या कर सकता हूँ
विवश हूँ
लाचार हूँ
ना-काम हूँ
मैं राम हूँ .