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BNMU याद किए गए डॉ. रवि। कोसी के विश्वकर्मा थे डॉ. रवि : शंभु नारायण यादव 

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याद किए गए डॉ. रवि

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कोसी के विश्वकर्मा थे डॉ. रवि : शंभु नारायण यादव

 

डाॅ. रवि एक सुप्रसिद्ध विद्वान, स्वाभिमानी शिक्षक, कुशल प्रशासक, लोकप्रिय राजनेता एवं सहृदय इंसान थे। उन्होंने कोसी-सीमांचल के शिक्षा, साहित्य एवं राजनीति में अविस्मरणीय योगदान दिया और जन-जन के दिलों में अपनी जगह बनाई। यह बात डॉ. रवि विचार मंच के संयोजक समाजसेवी शंभु नारायण यादव ने कही।

वे मंगलवार को पूर्व सांसद (लोकसभा एवं राज्यसभा) एवं बीएनएमयू, मधेपुरा के संस्थापक कुलपति प्रोफेसर डॉ. रमेन्द्र कुमार यादव रवि की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन विश्वविद्यालय आवासीय परिसर में डॉ. रवि विचार मंच के तत्वावधान में किया गया।

उन्होंने बताया कि डाॅ. रवि कोसी के विश्वकर्मा थे। उनके प्रयासों से ही मई 1981 में मधेपुरा को जिला घोषित किया गया और इस क्षेत्र के चहुंमुखी विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।

 

*देश की राजनीति में था विशिष्ट स्थान*

उन्होंने बताया कि डाॅ. रवि का प्रदेश एवं देश की राजनीति में उनका एक विशिष्ट स्थान था। वे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी, पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल, पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान, पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अत्यंत करीबी रहे।

 

उन्होंने बताया कि डॉ. रवि ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से की थी। वे कांग्रेस के टिकट पर ही पहली बार 1977 में मधेपुरा लोकसभा का चुनाव भी लड़े थे, जिसमें वे बहुत कम वोटों से असफल हो गए थे। बाद में वे जनता दल के प्रत्याशी के रूप में रिकार्ड मतों से विजयी हुए। वे राज्यसभा के भी सदस्य रहे।

 

*बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे डॉ. रवि*

 

मुख्य अतिथि कुलसचिव प्रो. मिहिर कुमार ठाकुर ने कहा कि डाॅ. रवि बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने शैक्षणिक एवं राजनीतिक क्षेत्र के साथ-साथ विभिन्न सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संगठनों में भी कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन किया।

 

उन्होंने बताया कि डॉ. रवि बुद्धिजीवी विचार मंच के अध्यक्ष, राष्ट्र भाषा परिषद् के सदस्य, बिहार मैथिली अकादमी के सदस्य एवं हिन्दी साहित्य सम्मेलन, मधेपुरा के अध्यक्ष रहे।

*विकास में अविस्मरणीय योगदान*

विशिष्ट अतिथि के. पी. कॉलेज, मधेपुरा के प्रधानाचार्य डॉ. जवाहर पासवान ने कहा कि डॉ. रवि ने कोसी-सीमांचल के सर्वांगीण विकास में अविस्मरणीय योगदान दिया। विशेषकर यहां विश्वविद्यालय की स्थापना में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।

 

उन्होंने बताया कि डॉ. रवि ने संस्थापक कुलपति के रूप में मात्र 6 माह के अंदर 122 छोटे-बड़े क्वार्टर एवं प्रशासनिक भवन सहित कोसी प्रोजेक्ट के 22 एकड़ का परिसर विश्वविद्यालय के नाम स्थानांतरित कराया। उन्होंने जाति-धर्म से ऊपर उठकर सुयोग्य लोगों को विभिन्न पदाधिकारियों के रूप में प्रतिनियोजित कराया और 6 माह के अंदर परीक्षा आयोजित करते हुए परिणाम घोषित कर एक रिकार्ड कायम किया।

 

*बढ़ेगी मंच की सक्रियता*

कार्यक्रम का संचालन करते हुए मंच के सह-संयोजक असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि मंच का गठन डॉ. रवि के विचारों एवं कार्यों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया है। इसके माध्यम से इस आदर्श पुरूष की गुण-गाथा, उनकी यश-कीर्ति एवं विचारों के संरक्षण एवं संवर्धन का प्रयास किया जा रहा है। आने वाले दिनों में मंच को और भी सक्रिय करने की योजना है।

 

उन्होंने बताया कि मंच के प्रयास से विश्वविद्यालय में डॉ. रवि की आदमकद प्रतिमा हेतु स्थल चिह्नित हो गया है। आने वाले दिनों में प्रतिमा स्थल को विकसित किया जाएगा और आगामी कार्यक्रम वहीं होंगे।

*लोकप्रिय जननेता थे डॉ. रवि*

ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. शंकर कुमार मिश्र ने कहा कि डॉ. रवि एक लोकप्रिय जननेता थे। लोग उनके भाषण को काफी गंभीरता से सुनते थे और प्रायः लोग उनसे कविताएं भी सुनाने का आग्रह करते थे।

 

*डॉ. रवि ने की कई पुस्तकों की रचना*

यूभीके कॉलेज, कड़ामा-आलमनगर में असिस्टेंट प्रोफेसर नीलू कुमारी ने बताया कि डॉ. रवि ने कई पुस्तकों की रचना की है। इनमें परिवाद, आपातकाल क्यों, लोग बोलते हैं, बातें तेरी कलम मेरी, बढ़ने दो देश को आदि प्रमुख हैं। उनकी कुछ पुस्तकें देश-विदेश के विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल हैं।

इस अवसर पर संजय सत्यार्थी, शैलेन्द्र यादव, बिमल कुमार, बिनोद कुमार सिंह, घनश्याम राय, हामिद राजा, सुधीर कुमार, पवन, शशांक कुमार आदि उपस्थित थे।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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