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BNMU *डॉ. सुधांशु ने लंबे समय तक विश्वविद्यालय प्रशासन में निभाई कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं। महाविद्यालय में नई पारी की शुरुआत

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*डॉ. सुधांशु ने लंबे समय तक विश्वविद्यालय प्रशासन में निभाई कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं*

महाविद्यालय में नई पारी की शुरुआत
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लगभग सात वर्षों तक लगातार बीएनएमयू प्रशासन में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु शेखर ने अब अपने पैतृक महाविद्यालय ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में नई पारी की शुरुआत की है।उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए उन्हें विश्वविद्यालय के उपकुलसचिव (स्थापना) एवं विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के प्रभारी अध्यक्ष दोनों ही पदों से मुक्त करते हुए उन्हें पूर्णकालिक रुप से महाविद्यालय भेज दिया गया है। इस बावत मंगलवार को कुलपति प्रो. विमलेन्दु शेखर झा के आदेशानुसार कुलसचिव प्रो. मिहिर कुमार ठाकुर ने अधिसूचना जारी कर दी है।

*उपकुलसचिव (स्थापना) के रूप में बनाई नई पहचान*
मालूम हो कि तत्कालीन कुलपति प्रो. आर. के. पी. रमण ने अगस्त 2022 में विश्वविद्यालय के प्रशासनिक कार्यों में गतिशीलता लाने के उद्देश्य से डॉ. शेखर को जनसंपर्क पदाधिकारी एवं उपकुलसचिव (अकादमिक) के दायित्वों से मुक्त कर उपकुलसचिव (स्थापना) की जिम्मेदारी दी थीं।
डॉ. शेखर इस जिम्मेदारी को पूरी सत्यनिष्ठा एवं ईमानदारी के साथ निभाया और अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई। इनके कार्यकाल में स्थापना शाखा बहुत हद तक व्यवस्थित हुआ और इसकी कार्य प्रणाली में भी गुणात्मक परिवर्तन आया।

डॉ. शेखर के कुशल नेतृत्व में शाखा के कर्मियों ने बुनियादी सुविधाओं के अभाव के बीच भी उत्साहपूर्वक कार्य किया। शाखा द्वारा राज्यपाल सचिवालय, राजभवन, बिहार, पटना और शिक्षा विभाग, बिहार सरकार, पटना के द्वारा विहित प्रपत्रों में माँगी गई प्रायः सभी सूचनाओं का ससमय जवाब तैयार कर भेजा गया और सभी बैठकों एवं आयोजनों के सुचारू रूप से संपन्न कराने में महती भूमिका निभाई गई। इसमें राज्यपाल सह कुलाधिपति की अध्यक्षता में आयोजित वर्ष 2024 का अधिषद् अधिवेशन भी शामिल है।

*जून 2017 से हैं असिस्टेंट प्रोफेसर*
यहां यह उल्लेखनीय है कि बीएनएमयू में डॉ. शेखर की नियुक्ति बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की अनुशंसा के आलोक में हुई है। इन्होंने सर्वप्रथम 3 जून, 2017 को ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में अपना योगदान दिया था। इन्होंने योगदान के साथ ही तत्कालीन कुलपति प्रो. अवध किशोर राय से अनुरोध करके अन्य विषयों के असिस्टेंट प्रोफेसरों के योगदान की प्रक्रिया को तेज कराया।

*पीआरओ के रूप में पहचान*

डॉ. शेखर कुछ ही दिनों बाद तत्कालीन कुलपति प्रो. अवध किशोर राय ने इन्हें 13 अगस्त, 2017 को विश्वविद्यालय के जनसंपर्क पदाधिकारी की जिम्मेदारी दी। इस भूमिका में इन्होंने अपनी एक खास पहचान बनाई और विश्वविद्यालय की सकारात्मक छवि बनाने एवं विद्यार्थियों तक ससमय सूचनाएं पहुंचाने में महती भूमिका निभाई। इन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्र संगठनों के बीच भी समन्वयक की भूमिका निभाई। डॉ. राय की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने और उन्हें लोकप्रिय बनाने में इन्होंने महती भूमिका निभाई।

*उपकुलसचिव (अकादमिक) रह चुके हैं*
आगे जुलाई 2020 में तत्कालीन प्रभारी कुलपति प्रो. ज्ञानंजय द्विवेदी ने डॉ. शेखर को जनसंपर्क पदाधिकारी के अतिरिक्त उपकुलसचिव (अकादमिक) की भी जिम्मेदारी दी। इन्होंने इस भूमिका को भी बखूबी निभाया और विश्वविद्यालय के समग्र शैक्षणिक उन्नयन के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किए। इसमें छोटी-छोटी बैठकों से लेकर दीक्षांत समारोह तक शामिल हैं।

*शैक्षणिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने में है महती भूमिका*
डॉ. शेखर ने विभिन्न कार्यालयी व्यस्तताओं के बावजूद शैक्षणिक गतिविधियों के सफल संचालन में सफलता पाई। इन्होंने कई यादगार आयोजन किए और बीएनएमयू में शैक्षणिक आयोजनों को गति देने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाई।

डॉ. शेखर ने ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय में 5-7 मार्च 2021 तक दर्शन परिषद्, बिहार का 42वां राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित कराया था, जो मधेपुरा में अब तक हुए सर्वश्रेष्ठ शैक्षणिक आयोजनों में से एक है।इन्होंने भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएसएसआर), नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार (सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आयाम) एवं भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय सेमिनार (राष्ट्रवाद : कल, आज और कल) का भी सफलतापूर्वक आयोजन किया। लगातार एक वर्षों तक प्रत्येक माह स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत देश-विदेश के विद्वानों का ‘संवाद’ कराया। लेकिन कार्यालयी व्यस्तताओं के कारण ये इन आयोजनों का प्रोसिडिंग अभी तक प्रकाशित नहीं करा सके हैं।

*विद्वानों को बुलाया मधेपुरा*
डॉ. शेखर ने कई बड़े-बड़े विद्वानों को मधेपुरा बुलाकर विद्वतापूर्ण भाषण एवं व्याख्यान कराया। इनमें पूर्व सांसद एवं पूर्व कुलपति पद्मश्री प्रो. (डाॅ.) रामजी सिंह, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के तत्कालीन अध्यक्ष प्रो. ( डाॅ.) रमेशचन्द्र सिन्हा, अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो.( डाॅ.) जटाशंकर आदि प्रमुख हैं।

*सोशल मीडिया में भी दिलाई पहचान*
डॉ. शेखर ने अपने व्यक्तिगत पहल एवं खर्च से सोशल मीडिया में भी बीएनएमयू को अलग पहचान दिलाई। इन्होंने कोरोना काल में बीएनएमयू संवाद यू-ट्यूब चैनल एवं फेसबुक पेज के माध्यम से दर्जनों ऑनलाइन सेमिनारों एवं व्याख्यानों का आयोजन कराया। इसमें भारत के विभिन्न राज्यों के विद्वानों के अलावा लंदन, दक्षिण अफ्रीका एवं नेपाल के विद्वानों का भी व्याख्यान हुआ।

*व्यक्तिगत शोध एवं लेखन बाधित*
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि डॉ. शेखर की शोध एवं लेखन में गहरी रुचि है। असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में योगदान के पूर्व ही इनके दर्जनों आलेख प्रकाशित हुए। इन्होंने इन्होंने ‘भूमंडलीकरण : नीति और नियति’, ‘लोकतंत्र : नीति और नियति’, ‘भूमंडलीकरण और पर्यावरण’, ‘शिक्षा-दर्शन’, ‘गांधी-चिंतन’ आदि आधे दर्जन पुस्तकों का संपादन भी किया और दो स्वतंत्र पुस्तकों यथा- सामाजिक न्याय : आंबेडकर विचार और आधुनिक संदर्भ (2014), गाँधी-विमर्श (2015) की भी रचना की थीं। इसके साथ ही दो शोध-पत्रिकाओं ‘दर्शना’ तथा ‘सफाली जर्नल ऑफ सोशल रिसर्च’ के कई अंकों का संपादन भी किया था।

लेकिन विश्वविद्यालय के कार्यों की व्यस्तताओं के कारण विगत छः-सात वर्षों में लेखन एवं संपादन का कार्य कुप्रभावित हुआ।इस बीच किसी तरह दो पुस्तकें भूमंडलीकरण और मानवाधिकार (2017) एवं गांधी-अंबेडकर और मानवाधिकार (2024) प्रकाशित हुईं। लेकिन दोनों शोध-पत्रिका लगभग बंद हो गईं।

*विभिन्न संगठनों में है भूमिका*
डॉ. शेखर की विभिन्न संगठनों में महती भूमिका है। वे फरवरी 2021 से बीपीएससी सेलेक्टेड टीचर्स फोरम के महासचिव हैं। इन्होंने शिक्षकों की सेवा संपुष्टि एवं मौलिक नियुक्ति की तिथि जारी करने में निर्णायक भूमिका निभाई। ये दर्शन परिषद् , बिहार के प्रदेश संयुक्त सचिव एवं मीडिया प्रभारी और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के नगर अध्यक्ष की जिम्मेदारी को भी बखूबी निभा रहे हैं। कार्यालयी व्यस्तताओं के कम होने से सांगठनिक सक्रियता बढ़ने की उम्मीद है।

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