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BNMU ‘प्रभात खबर’ ‘प्रतिभा सम्मान समारोह’ के बहाने … (टूटेंगे सारे भ्रम धीरे-धीरे …)

‘प्रभात खबर’ ‘प्रतिभा सम्मान समारोह’ के बहाने …
(टूटेंगे सारे भ्रम धीरे-धीरे …)
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18 जुलाई, 2019 को ‘प्रभात खबर’ ‘प्रतिभा सम्मान समारोह’ में भाग लेने का अवसर मिला। इसके लिए मधेपुरा कार्यालय प्रभारी आशीष भाई, वरीय संवाददाता चंदन भाई और विश्वविद्यालय संवाददाता अमित अंशु जी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। विलंब से लिख पाया, इसके लिए क्षमाप्रार्थना है।
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‘प्रभात खबर’ से मेरा जुड़ाव काफी पुराना है। यह बात अगस्त 2003 की है। मैं अपने ‘कादम्बिनी क्लब’, लाल कोठी भागलपुर के उद्घाटन समारोह से संबंधित विज्ञप्ति लेकर ‘प्रभात खबर’ के पटल बाबू रोड, भागलपुर स्थित कार्यालय गया। वहाँ मेरी मुलाकात ‘प्रभात खबर’ के कार्यकाल संवाददाता कमलेश पांडेय से हुई। शायद उन्होंने मेरी विज्ञप्ति को देखकर यह अंदाजा लगा लिया कि मेरे अंदर पत्रकारिता का ‘कीड़ा’ है और उन्होंने मुझे पत्रकार बनने का ‘आॅफर’ दे दिया। … और अगले ही दिन से मैं ‘प्रभात खबर’ का ‘पत्रकार’ बन गया।

मैंने इस अखबार में काफी लिखा। इसमें मेरी कई ‘बाईलाइन’ रिपोर्टें और कई फीचर भी प्रकाशित हुए। मैंने कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के कवरेज किए। इनमें ‘लोकसभा चुनाव-2004’ एवं ‘अंग महोत्सव’ आदि प्रमुख हैं। मुझे कई महत्वपूर्ण लोगों का साक्षात्कार लेने का अवसर मिला। इनमें गोविन्दाचार्य, सिस्टर निर्मला, राजनाथ सिंह, सी. पी. ठाकुर, रामचंद्र पासवान, रामजी सिंह, दिग्विजय सिंह, गुलाम रसुल बलियावी, अनुराधा प्रीतम आदि के नाम शामिल हैं।

यहाँ यह विशेष रूप से उल्लेखनीय मैं ‘फिल्ड’ से अधिक कार्यालय में समय देता था। जब कोई कम्प्यूटर आॅपरेटर नहीं था, तो हम हाथ से लिखकर फैक्स से रिपोर्ट भेजते थे। थोड़ी अच्छी ‘हेंडराइटिंग’ होने के कारण मुझे कुछ दूसरे साथियों की रिपोर्टें भी लिखनी पड़ती थीं। हम मोमबत्ती की रोशनी में और दिनभर भूखे रहकर या भूंजा फांककर भी काम करते थे। विज्ञापन जुटाने और अखबार बेचने में भी यथासंभव सहयोग करते थे।

मुझे ‘प्रभात खबर’ का स्लोगन ‘अखबार नहीं आंदोलन’ काफी आकर्षित करता था। साथ ही मैं इसके प्रधान संपादक हरिवंश जी (संप्रति माननीय उपसभापति, राज्यसभा) के आलेख और उससे भी अधिक उनके सहज-सरल व्यक्तित्व से प्रभावित था और अभी भी हूँ। इधर, अप्रैल 2017 में ‘ज्ञान भवन’, पटना में आयोजित ‘गाँधी-विमर्श’ कार्यक्रम में भी मेरी हरिवंश जी से मुलाकात हुई। उन्हें मैंने अपनी पुस्तक ‘गाँधी-विमर्श’ भेंट की और हरिवंश जी एवं गुरूवर डाॅ. विजय सर के साथ फोटो भी खिंचवाया। हरिवंश जी के शिष्य अविनाश सर (संप्रति फिल्म निर्माता-निर्देशक), जो तब ‘प्रभात खबर’, देवघर कार्यालय में संपादक थे की सहृदयता भी हमें इस अखबार से जोड़ती थी। अन्य लोगों की तरह मैं भी उनसे मिलकर प्रभावित हुए बिना, नहीं रह पाया था।

‘प्रभात खबर’ में अपने सहकर्मियों के साथ मेरी ढ़ेर सारी खट्टी-मीठी यादें हैं। मुझे आज भी याद है कि किसी एक रविवार के दिन ब्यूरो चीफ आदित्यनाथ भैया ने मुझसे कहा था कि मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान दूँ। यदि उन्होंने ऐसा नहीं कहा होता, तो शायद मैं पढ़ाई पर और कम ध्यान देता। दूसरा, आज अश्वनी जी से मेरी जो प्रगाढ़ मित्रता है, वह काॅलेज के सहपाठी से अधिक अखबार में संघर्ष का साथी होने के कारण ही है। इसी तरह बड़े भाई समीर सिंह, राजेश कुमार सिंह, सुधीर तिवारी, अजीत कुमार सिंह, अजीत कुमार और मित्र सुजीत कुमार, पंकज ठाकुर, कुमार नित्यगोपाल, राहुल कुमार, मिहिर सिन्हा, परवेज अहमद, रंजीत कुमार, मंटू कुमार आदि के साथ बिताए संस्मरणों की लंबी फेहरिश्त है-“क्या भूलूँ, क्या याद करूँ।”

बहरहाल, ‘प्रभात खबर’ में समय देने के कारण मैं कुछ लिखना-घिसना एवं काटना-जोड़ना तो सीख गया, लेकिन मेरी पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हुई। यदि वह समय पढ़ाई में देता एवं किसी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करता, तो स्नातक परीक्षा में और अच्छे अंक आते एवं कहीं समय पर नौकरी भी लगती। लेकिन मैंने ‘पत्रकार’ बनने के जुनून में पढ़ाई और सेहत की परवाह नहीं की।

फिर, अचानक एक ऐसा मोड़ आया कि मेरा सक्रिय पत्रकारिता से मोहभंग हो गया और मैंने धीरे-धीरे इससे किनारा कर लिया। इसकी पूरी कहानी मैंने ‘युवा संवाद’, नई दिल्ली, फरवरी 2005 में ‘चलो सुहाना भ्रम तो टूटा’ शीर्षक से लिखी है।

इधर, ‘पत्रकारिता’ के ‘सुहाने भ्रम’ के टूटने के बाद मैंने शिक्षक बनने की ठान ली। फिर बारह वर्षों तक काफी जद्दोजहद के बाद जून 2017 में मेरी नियुक्ति ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में असिस्टेंट प्रोफेसर (दर्शनशास्त्र) के रूप में हुई।

फिर, कुछ ही दिनों बाद मुझे चाहे-अनचाहे भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के जनसंपर्क पदाधिकारी की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी स्वीकार करनी पड़ी। तब से मैं यथासंभव इस जिम्मेदारी के सम्यक् निर्वहन का प्रयास कर रहा हूँ। यहाँ भी मुझे ‘प्रभात खबर’ की तरह ही काफी कुछ सीखने को मिल रहा है और कुछ-कुछ ‘झूठी लोकप्रियता’ भी। लेकिन सच्चाई यह है है कि मैं एक नए ‘भ्रम’ में फंस गया हूँ। अतः, धीरे-धीरे इससे निकल कर अध्ययन-अध्यापन, लेखन एवं शोध की ओर लौटने का प्रयास कर रहा हूँ। “टूटेंगे सारे भ्रम धीरे-धीरे …।”

28.07.2019 का फेसबुक पोस्ट