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Bihar सुशील कुमार मोदी के निधन पर शोक

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सुशील कुमार मोदी के निधन पर शोक
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अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के नेताओं ने बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी (05 जनवरी, 1952 से 13 मई, 2024) के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।

प्रदेश कार्यसमिति सदस्य प्रो. ललन प्रसाद अद्री ने बताया कि सुशील कुमार मोदी का नाम भारतीय राजनीति के इतिहास में अविस्मरणीय रहेगा। वे उन गिने-चुने लोगों में थे, जिन्हें लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा एवं विधान परिषद् चारों सदनों का प्रतिनिधित्व करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।

*जेपी के सच्चे सिपाही थे सुशील*
नगर अध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने कहा कि सुशील कुमार मोदी लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जे. पी.) के सच्चे सिपाही थे। वे जीवनभर जेपी के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के मूल उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संघर्षरत रहे। उन्होंने अपने सुदीर्घ राजनीतिक जीवन में कभी भी आदर्शों से समझौता नहीं किया।
*काफी सराहनीय कार्य किया*
सीनेटर सह प्रदेश कार्यसमिति सदस्य डॉ. रंजन यादव ने कहा कि सुशील कुमार मोदी ने बिहार में विपक्ष के नेता और उप मुख्‍यमंत्री-सह वित्त मंत्री के रूप में काफी उल्लेखनीय कार्य किया। वे देश भर के वित्त मंत्रियों की प्राधिकृत समिति के अध्‍यक्ष भी रहे। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय मंत्री, राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष एवं प्रदेश अध्‍यक्ष की भी जिम्मेदारी निभाई।

*योगदान रहेगा हमेशा याद*
प्रदेश मंत्री अभिषेक यादव ने कहा कि सुशील कुमार मोदी परिषद् के परिषद् के प्रदेश मंत्री एवं प्रदेश संगठन मंत्री, उत्तर प्रदेश-बिहार के क्षेत्रीय संगठन मंत्री एवं राष्ट्रीय महामंत्री भी रहे थे। उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।

शोक व्यक्त करने वालों में नगर उपाध्यक्ष डॉ. उपेन्द्र प्रसाद यादव, डॉ. शंकर कुमार मिश्र एवं डॉ. प्रफुल्ल कुमार, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य आमोद आनंद, नीतीश सिंह यादव एवं समीक्षा यदुवंशी, नगर मंत्री अंकित आनंद, नगर संगठन मंत्री शंकर कुमार, जिला प्रमुख दिलीप कुमार दिल, जिला संयोजक नवनीत सम्राट, विभाग संयोजक सौरभ यादव आदि के नाम शामिल हैं।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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