BNMU। मीडिया रिपोर्ट। भारत की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत विषयक परिचर्चा का आयोजन

भारत की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत विषयक परिचर्चा का आयोजन

संस्कृति वास्तव में निरंतरता का नाम है। यह निरंतरता निश्चित रूप से कुछ परिवर्तनों के साथ ही संभव होती है।इसके अंतर्गत हम उद्दात मूल्यों को बचाते हैं, अनुपयोगी अपमूल्यों को त्यागते हैं और नए मानवीय मूल्यों को जोड़ते हुए हमेशा नए संस्कारों में प्रगट करते हैं।

यह बात अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष डाॅ. जटाशंकर (प्रयागराज) ने कही। वे मंगलवार को भारत की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत विषयक ऑनलाइन परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे थे। यह परिचर्चा ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई-I के तत्वावधान में आयोजित सात दिवसीय विशेष शिविर के चौथे दिन किया गया।

उन्होंने कहा कि संस्कृति कहते ही उसे हैं, जो उद्दात मूल्यों को बचाते हुए एवं अनुपयोगी अपमूल्यों को त्यागते हुए और नए मानवीय मूल्यों को जोड़ते हुए हमेशा नए संस्कारों में प्रगट होती है। संस्कृति वास्तव में निरंतरता का नाम है। यह निरंतरता निश्चित रूप से कुछ परिवर्तनों के साथ ही संभव होती है।

उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की जो विशेषता है, वह इसका यही लचीलापन है। जिस लचीलेपन के कारण नई उपयोगी चीजों को हमने आत्मसात किया और जो अनुपयोगी हुआ, उसको हम त्यागते गए।

उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में, भारतीय सभ्यता में, हमारा अस्तित्व अभी भी निरंतरता के साथ बना हुआ है। हमारी सांस्कृतिक विरासत निरंतरता के साथ बनी हुई है। भारतीय संस्कृति के कुछ जो अत्यंत मूलभूत लक्षण हैं। इनमें त्याग, तप, शौर्य और पाने से अधिक देनी की इच्छा रखना। इन सबके साथ-साथ अपनी परंपरा के प्रति दृढ़निष्ठा का होना। ये कुछ ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से हमारी सांस्कृतिक परंपरा निरंतरता के साथ विद्यमान है। यही कारण है कि मोहम्मद इकबाल ने कहा है कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। यूनान, मिस्र, रोमां, सब मिट गए जहां से। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।’’ इसमें वह कुछ क्या है?

इसके पूर्व परिचर्चा का उद्घाटन करते हुए भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो. (डाॅ.) रमेशचन्द्र सिन्हा ने कहा कि इतिहास मात्र राजा-रानी की कहानी और युद्धों का विवरण नहीं होता है। हमें इतिहास को आम लोगों, हाशिए पर खड़े लोगों या सीमांतकों की दृष्टि से देखने की जरूरत है। इतिहास के पुनर्लेखन की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि इतिहास एवं संस्कृति में बहुत गहरा संबंध है। संस्कृति मूल्यों का संघात है और इतिहास की प्रक्रिया में मूल्यों का निर्वाह होता है। ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक मूल्य हमारे राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करते हैं। ये मूल्य कोई जड़ पदार्थ नहीं हैं, मूल्य गतिशील होते हैं।

उन्होंने कहा कि संस्कृति कोई जड़ पदार्थ या पत्थर नहीं है। संस्कृति तो एक गुलाब के पौधे की तरह है। हम गुलाब के पौधे को जितना काटते- छांटते हैं, उतना ही वह गुलाब पैदा करता है। संस्कृति का भी हम जितना परिमार्जन करते हैं, उतना ही सुंदर फूल खिलता है। जो मूल्य हमारे पुराने हो गए, अवांछनीय हो गए हैं हम उनको त्याग दें और नए मूल्यों को परिमार्जित कर उनको अंगीकार करें।

मुख्य भारतीय महिला दार्शनिक परिषद् की अध्यक्ष डॉ. राजकुमारी सिन्हा ने कहा कि राष्ट्रीय सेवा योजना का लक्ष्य वाक्य है कि नाॅट मी बट यू अर्थात् मैं नहीं आप। यह भारतीय इतिहास एवं संस्कृति की मूल दृष्टि है। यह केवल अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए जीने का संदेश देती है।

उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम् का आदर्श प्रस्तुत करती है। हमारी गतिशीलता कर्तव्य के प्रति अधिक रहती है। हम अपने अधिकारों से अधिक अपने कर्तव्यों पर ध्यान देते हैं। हम संपूर्ण चराचर जगत के प्रति कर्तव्य बोध रखते हैं।

उन्होंने कहा कि युवाओं को भारतीय मूल्यबोध से जोड़ने की जरूरत है। हमें भारत को भारतीय दृष्टि से देखने की जरूरत है। लेकिन दुख की बात है कि हम भारत को विदेशी की दृष्टि से देखते हैं।

विशिष्ट अतिथि कोलकाता की डाॅ. गीता दुबे ने कहा कि हमारी ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत
समाप्त हो रही है। लोककलाएँ, लोकगाथाएँ एवं लोकभाषाएँ लुप्त हो रही हैं। हमें अपने इतिहास एवं संस्कृति को बचाने की जरूरत है। हम इतिहास एवं संस्कृति को जाने बगैर अपने देश को नहीं जान सकते हैं।

उन्होंने कहा कि आज विभिन्न संस्कृतियों के बीच संवाद की जरूरत है। आपसी आदान-प्रदान के क्रम में भी हमें सांस्कृतिक विरासत की मूल भावना अच्छुण्ण रखना है। हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि जो चीजें व्यवहार में नहीं रहती हैं, वो हमारी स्मृति से बाहर हो जाती हैं।

उन्होंने कहा कि इतिहास कई बार भ्रामक भी होता है। मान लीजिए किसी राजा ने कोई युद्ध लड़ा। उसमें उसने सफलता नहीं हासिल की, तो वह मूर्त रूप यह स्वीकार नहीं कर सकता है कि उसकी पराजय इतिहास में उसी रूप में अंकित हो। इसलिए उसके चारण या दरबारी ऐतिहासिक स्तंभों पर उसके पराजय के बाबजूद विजय की गाथाएं अंकित कर देते हैं।

उन्होंने कहा कि इतिहास को पढ़ना-जानना आवश्यक है। हमें इतिहास की घटनाओं से सबक एवं प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए। इतिहास को जानना उस दौर से गुजरना हमारे लिए बहुत जरूरी है। हमारे मन में इतिहास को लेकर सवाल भी उठना चाहिए।

सम्मानित अतिथि राँची की सीएस पूजा शुक्ला ने कहा कि भारत मात्र एक भूमि का टुकड़ा नहीं है। यह जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। यह एक ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक इकाई है। यह वंदना की धरती है। इसका कण-कण हमारे लिए शंकर है। हम जीएंगे भारत के लिए और हम मरेंगे भी भारत के लिए। फिर मरने के बाद भी गंगाजल में बहती हुई हमारी अस्थियों को कोई कान लगाकर सुनेगा, तो आवाज निकलेगी भारत माता की जय।

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव ने की। संचालन कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. सुधांशु शेखर एवं शोधार्थी सारंग तनय ने किया।

इस अवसर पर पटना विश्वविद्यालय, पटना में दर्शनशास्त्र विभाग की पूर्व अध्यक्ष डाॅ. पूनम सिंह, महाविद्यालय अभिषद् सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान, कार्यक्रम पदाधिकारी डाॅ. स्वर्ण मणि, के. पी. काॅलेज, मुरलीगंज के कार्यक्रम पदाधिकारी डाॅ. अमरेन्द्र कुमार, सी. एम. साइंस काॅलेज, मधेपुरा के कार्यक्रम पदाधिकारी डाॅ. संजय कुमार परमार, अधिषद् सदस्य रंजन यादव, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर पूजा शुक्ला, पिंटू यादव, आमोद कुमार आनंद, डेविड यादव, सौरभ कुमार चौहान, मणीष कुमार, शांतनु यदुवंशी, अवधेश कुमार अमन, शिवम कृष्ण, बिमल कुमार, सुनील कुमार, बबलू कुमार, शिवम कृष्णा, अभिषेक कुमार, जयशंकर कुमार, रितिक रोशन, प्रिंस कुमार, राजकुमार राम, राज किशोर कुमार, सुमित कुमार, दीपक कुमार, अमित कुमार, सुमित कुमार, सचिन कुमार, चंद्र किशोर चौपाल, धीरज कुमार, सागर राज, सूरज कुमार, कुमारी शुभम, अभिमन्यु कुमार, नीतीश कुमार, आशीष यादव, रणवीर कुमार, नीतीश कुमार रजक, रूपम कुमारी, स्नेहा, प्रिया ज्योति, कुमारी पुनीता, कुमारी मनीषा, कुमारी सिंपी सिंह, दीपिका आनंद, प्रज्ञा श्री, सुमन कुमार, हिमांशु कुमार, दीपक कुमार, शिव शंकर राम, मिथिलेश कुमार, सरदार सूरज कुमार, सुनील कुमार राम आदि उपस्थित थे।

मालूम हो कि सात दिवसीय विशेष शिविर के दौरान सभी दिन अलग-अलग विषयों पर परिचर्चा का आयोजन होगा। इसके लिए क्रमशः कोरोना : कारण एवं निवारण, मानव और पर्यावरण, पोषण एवं स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन और सामाजिक दायित्व, भारत की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत, मानसिक स्वास्थ्य और युवा वर्ग तथा राष्ट्र-निर्माण में युवाओं की भूमिका विषय निर्धारित किया गया है।