BNMU। आपदा प्रबंधन और सामाजिक दायित्व विषयक परिचर्चा का आयोजन

आपदा प्रबंधन और सामाजिक दायित्व विषयक परिचर्चा का आयोजन

दर्शनशास्त्र में आपदा को अशुभ कहते हैं। आपदा या अशुभ दो तरह के हैं-प्राकृतिक अशुभ एवं नैतिक अशुभ। प्राकृतिक अशुभ के लिए भी बहुत हद तक मनुष्य ही जिम्मेदार है। अतः हम सभी मनुष्यों का यह दायित्व है कि हम सदाचरण करें, ताकि आपदाएं आएं ही नहीं और आएं भी तो उसके नुकसान कम-से-कम हों।

यह बात अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष डाॅ. जटाशंकर (प्रयागराज) ने कही। वे सोमवार को आपदा प्रबंधन और सामाजिक दायित्व विषयक ऑनलाइन परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे थे। यह परिचर्चा ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई-I के तत्वावधान में आयोजित सात दिवसीय विशेष शिविर के चौथे दिन किया गया।

उन्होंने कहा कि मनुष्य का आचरण आपदाओं से सीधे-सीधे संबंधित है। हम अपने सदाचरण के द्वारा आपदाओं की तीव्रता एवं उसकी मात्रा को कम कर सकते हैं। हमें अपनी भोग की इच्छा का त्याग करना चाहिए और प्रकृति का विजेता बनने की प्रवृत्ति नहीं रखनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि मनुष्य के लिए दायित्वपूर्ण जीवन जीना आवश्यक है। एक सामाजिक प्राणी के रूप में हमारा दायित्व है कि हम आपदाओं का प्रबंधन करें। सामाजिक दायित्वबोध के बगैर हम मनुष्य होने के लायक नहीं हो सकते हैं।

उन्होंने कहा कि केवल स्वार्थपूर्ण अधिकार हमें अंधा बना देते हैं। इसलिए हमें केवल अपने स्वार्थ तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि अपने दायित्वों का विस्तार करना चाहिए। हमारा दायित्व केवल अपने व्यक्तिगत जीवन या अपने परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज, राष्ट्र एवं चराचर जगत तक है।

उन्होंने कहा कि आज कोरोना एक वैश्विक आपदा के रूप में हमारे सामने आई है। कोरोना काल में भी हमें करूणा, दया एवं सहानुभूति आदि को अपने जीवन से निकालना चाहिए। हम संक्रमण से बचाव के लिए फिज़िकल डिस्टेंशिंग अर्थात् भौतिक दूरी बनाएं, लेकिन सोशल डिस्टेंशिंग अर्थात् सामाजिक दूरी नहीं रखें।

इसके पूर्व परिचर्चा का उद्घाटन करते हुए भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो. (डाॅ.) रमेशचन्द्र सिन्हा ने कहा कि आपदा को अंग्रेज़ी में ‘डिजास्टर’ कहते हैं। यह दो शब्दों के योग से बना है- ‘बेड’ एवं ‘स्टार’। यह मानव जीवन की एक बुरी स्थिति है और इसमें तारे बुरी स्थिति में आ जाते हैं। जब तारे बुरी स्थिति में होते हैं तब बुरी घटनायें होती हैं।आपदा एक प्राकृतिक या मानव निर्मित जोखिम का प्रभाव है, जो समाज या पर्यावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

उन्होंने कहा कि पीड़ितों की सेवा करना हमारा दायित्व है। हम विपत्ति में घिरे लोगों की मदद कर अपना सामाजिक दायित्वों का निर्वहन कर सकते हैं।

मुख्य अतिथि दर्शन परिषद्, बिहार के महामंत्री डॉ. श्यामल किशोर ने कहा कि मनुष्य का अज्ञान ही सभी आपदाओं एवं सभी दुखों का मूल कारण है। जैसे ही हमें वास्तविक ज्ञान होगा, हम स्वार्थ से ऊपर उठ जाएँगे। हमें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, जो हम चाहते हैं कि दूसरे हमारे साथ करें।

उन्होंने कहा कि मनुष्य मूल्यों से युक्त पशु है। मानवीय मूल्य ही हमें पशुओं से अलग करते हैं। अतः हमें हमेशा मानवीय मूल्यों एवं सामाजिक सरोकारों को जीवन में उतारना चाहिए। हम अपने-अपने दायित्वों का सम्यक् निर्वहन करेंगे, तो आपदाओं पर नियंत्रण हो सकेगा। हमें आपदाओं को अवसर में बदलने की कला सीखनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि प्रकृति में आई विकृति के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है। हम अपनी संस्कृति के अनुरूप काम करेंगे, तो प्रकृति की विकृति ठीक हो जाएगी। हमें प्राकृति के साथ जीने की कला सीखनी चाहिए। महात्मा गाँधी ने भी कहा है कि यह पृथ्वी हम सबों की आवश्यक आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है, लेकिन यह हममें से किसी एक के भी लोभ-लालच को पूरा नहीं कर सकती है।

विशिष्ट अतिथि कोलकाता की डाॅ. गीता दुबे ने कहा कि आपदा किसी भी क्षेत्र में प्रकृति या मानवनिर्मित कारणों से हुई अशुभ घटनाएं हैं। पहले मनुष्य प्रकृति के साथ रहता था, तो उसे आपदाओं का पूर्वानुमान हो जाता था। यदि हम प्रकृति के साथ जीने की कला सीखें, तो हम आपदाओं से होने वाली क्षति कम कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि आज हम अपने स्वार्थ पर अत्यधिक ध्यान देते हैं। लेकिन हमें सामूहिकता की ओर लौटने की जरूरत है। आपदाओं के समय आर्थिक क्षति के साथ-साथ मानसिक क्षति को भी कम करने का प्रयास करना चाहिए।

सम्मानित अतिथि राँची की सीएस पूजा शुक्ला ने कहा कि समाज में आपदाओं के संबंध में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। हमें आपदाओं के पूर्व एवं आपदाओं के बाद की तैयारियों की जानकारी होनी चाहिए। हम आपदाओं के समय हम अपनी रक्षा करें और दूसरों की भी रक्षा करें।जब भी आपदाएं आती हैं, उससे निपटने में समाज का दायित्व बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

कार्यक्रम का संचालन कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. सुधांशु शेखर एवं शोधार्थी सारंग तनय ने किया।

इस अवसर पर महाविद्यालय अभिषद् सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान, अधिषद् सदस्य रंजन यादव, अतिथि व्याख्याता डाॅ. सरोज कुमार, शोधार्थी सारंग तनय, शशि कुमार यादव, डेविड यादव, सौरभ कुमार चौहान, मणीष कुमार, शांतनु यदुवंशी, अवधेश कुमार अमन, शिवम कृष्ण, बिमल कुमार, सुनील कुमार, बबलू कुमार, शिवम कृष्णा, अभिषेक कुमार, जयशंकर कुमार, रितिक रोशन, प्रिंस कुमार, राजकुमार राम, राज किशोर कुमार, सुमित कुमार, दीपक कुमार, अमित कुमार, सुमित कुमार, सचिन कुमार, चंद्र किशोर चौपाल, धीरज कुमार, सागर राज, सूरज कुमार, कुमारी शुभम, अभिमन्यु कुमार, नीतीश कुमार, आशीष यादव, रणवीर कुमार, नीतीश कुमार रजक, रूपम कुमारी, स्नेहा, प्रिया ज्योति, कुमारी पुनीता, कुमारी मनीषा, कुमारी सिंपी सिंह, दीपिका आनंद, प्रज्ञा श्री, सुमन कुमार, हिमांशु कुमार, दीपक कुमार, शिव शंकर राम, मिथिलेश कुमार, सरदार सूरज कुमार, सुनील कुमार राम आदि उपस्थित थे।

मालूम हो कि सात दिवसीय विशेष शिविर के दौरान सभी दिन अलग-अलग विषयों पर परिचर्चा का आयोजन होगा। इसके लिए क्रमशः कोरोना : कारण एवं निवारण, मानव और पर्यावरण, पोषण एवं स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन और सामाजिक दायित्व, भारत की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत, मानसिक स्वास्थ्य और युवा वर्ग तथा राष्ट्र-निर्माण में युवाओं की भूमिका विषय निर्धारित किया गया है।