Bihar। “डॉ. राजेन्द्र प्रसाद एवं भारतीय संविधान का निर्माण” विषयक राष्ट्रीय सेमिनार का समापन

नव नालंदा महाविहार, सम विश्वविद्यालय, नालंदा द्वारा भारत रत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद की जयंती पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद: संगोष्ठी – “डॉ. राजेन्द्र प्रसाद एवं भारतीय संविधान का निर्माण” के समापन सत्र (4 दिसंबर, 2020 ) की अध्यक्षता करते हुए नव नालंदा महाविहार के प्रो. बैद्यनाथ लाभ ने कहा कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी की दृष्टि व सोच अखिल भारतीय रही है। इतिहास व राजनीति में डॉ राजेंद्र प्रसाद जी के प्रति हुए भेदभाव को लेकर मेरे मन में सर्वदा छटपटाहट रही थी। इसीलिए मैंने डॉ. प्रसाद जी के प्रति इस आयोजन का यह उपक्रम किया ताकि उनकी वास्तविक स्थिति सब के समक्ष लाई जा सके। डॉ. राजेंद्र प्रसाद के घर को देखकर लगता है कि प्राचीन काल में ऋषि मुनि कैसे रहते होंगे। उनकी अन्तिम विदाई में लाखों लोग आए, यह समाज का गहरा प्रेम था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद एक समृद्ध भारत के स्वप्नदर्शी व लोकहृदय के नायक थे। आज घोटालों के समय में निष्पृह व्यक्ति की याद सुखकर है। उनकी पौर्वात्य दृष्टि भारत के संविधान में दिखाई देती है । मैं उनके जन्मदिन को “राष्ट्रीय मेधा दिवस” के रूप में मनाने की मांग करता हूँ। मुख्य अतिथि के रूप में आईसीपीआर (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) के अध्यक्ष प्रोफेसर रमेश चंद्र सिन्हा जी पधारे थे, जिन्होंने कहा कि डॉ राजेंद्र प्रसाद शासन में रहने के बाद भी कालांतर में हाशिए पर थे जब कि शासन में न रहने के बावजूद बहुत दिनों तक जयप्रकाश नारायण हाशिए पर रहे थे, यह समाज का दुर्भाग्य है। डॉ. प्रसाद ने अपनी पुस्तक “इंडिया डिवाइडेड” में कम्युनल ट्रैंगल की बात की है । राष्ट्रीय ध्वज के रंगों की बात उन्होंने अपनी आत्मकथा में की है। उनकी कल्पना ‘अखंड भारत’ की रही है। उनकी तरलता में अध्यात्म था। डॉ. राजीव रंजन ने कहा कि प्रसाद के परिजनों में कोई भी राजनीति नहीं है । उनके घर के लोग आज भी सामान्य जीवन जीते हैं । प्रसाद जी की सादगी जीवन की मूल प्रस्तावना मानी जा सकती है। कार्यक्रम का संचालन प्रो. राणा पुरुषोत्तम कुमार ने किया। अपने संचालन में उन्होंने कहा कि बिहार की भूमि मनस्वियों की भूमि रही है । डॉ. राजेंद्र प्रसाद आधुनिक भारत के तपस्वी संत थे। कृतज्ञ राष्ट्र एवं नालंदा महाविहार उन्हें आज याद कर रहा है। भिक्षु जगदीश काश्यप महाविहार के वास्तविक पुरोहित थे जिन्होंने इसका स्वप्न देखा। डॉ. राजेंद्र प्रसाद सार्वजनिक जीवन के मानदंड थे।
धन्यवाद ज्ञापन में प्रो सुशिम दुबे ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी की जयंती पर आयोजित इस कार्यक्रम को ज्ञान यज्ञ बताया । उन्होंने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी के कार्यों एवं कृतित्व पर महाविहार में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद चेयर स्थापित होने के आगामी उपक्रम की चर्चा की जो कि वि.वि. अनुदान आयोग की ऐसी योजना में होने समन्वित है।
समापन सत्र के पूर्व, आज के तकनीकि तृतीय सत्र की अध्यक्षता प्रो. रवींद्र नाथ श्रीवास्तव “परिचय दास” ने की। संचालन डॉ सुरेश कुमार ने किया । इस सत्र में डॉ मुकेश वर्मा ने कहा कि भुखमरी , भय, भ्रष्टाचार आदि के प्रति निषेध का जो भाव डॉ. राजेंद्र प्रसाद के मन में था, वही संविधान में भी सकारात्मक रूप में परिलक्षित होता है। डॉ. राजेश मिश्र ने डॉ राजेंद्र प्रसाद के सादा जीवन उच्च विचार की चर्चा की जबकि श्री भीष्म कुमार ने उनके पत्रकारीय जीवन के बारे में बताया।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए हिन्दी विभाग के प्रो. रवींद्र नाथ श्रीवास्तव ” परिचय दास” ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि डॉ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्र की एकता को समूहों की एकजुटता भर नहीं मानते थे , उनकी व्याख्या के अनुसार यह व्यक्ति गरिमा का प्रतीक भी था। डॉ. प्रसाद के लिए भारतीय संविधान की उद्देशिका लिबर्टी का एक चार्टर है। इसकी संरचना का प्रगतिशील स्वरूप डॉ प्रसाद की वजह से ही संभव हुआ था।
पहले व दूसरे सत्र का कुशल संचालन डॉ सुरेश कुमार ने किया। अपने संचालन में उन्होंने डॉ राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व के विविध पहलुओं का उल्लेख किया।
चौथे सत्र की अध्यक्षता प्रो. विजय कर्ण ने की। डॉ. शुक्ला मुखर्जी ने इस सत्र में भाग लेते हुए डॉ. प्रसाद के बांग्ला व कोलकाता के संबंधों को लेकर बात की। सुश्री बॉबी कुमारी ने उनकी नारी दृष्टि पर संवाद रखा तथा उनकी पत्नी राजवंशी देवी से उनके लगाव को बताया । डॉ. मुकेश कुमार ने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद द्वारा व्यक्त दो खेदों के बारे में बताया: पहला, एमएलए के लिए कोई शैक्षिक योग्यता का निर्धारण नहीं हो पाना और दूसरा : संविधान का मूल भारतीय भाषा में नहीं बनना। डॉ. नृपेंद्र श्रीवास्तव ने राजेंद्र बाबू को गांधी का प्रिय व्यक्ति बताया और कई मामलों में संकट के समय उनका कुशल सहायक। प्रोफेसर विजय कर्ण ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि आज हमने डॉ. प्रसाद के विचारों को पुनर्व्याख्यायित किया तथा उन्हें ठीक से समझ पाए। हमें पूर्वजों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।
द्वितीय दिन पर अवसर पर मैडम कुलपति डॉ निहारिका लाभ, कुलसचिव डॉ. एस. पी.सिन्हा, ननम, श्री सुदामा सिंह, वित्त अधिकारी डॉ. रूबी कुमारी, डॉ. विश्वजीत कुमार, डॉ. विनोद कुमार चौधरी, डॉ श्रीकांत सिंह एवं अन्य विभागों के फैकल्टी के सदस्य एवं गैर शैक्षकीय एवं प्रशासकीय सदस्यों के साथ महाविहार के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों ने सक्रिय सहभागिता की। महाविहार में इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के दो दिवसीय आयोजन में 14 शोध-पत्रों की प्रस्तुति की गई