POEM कविता / सच पूछो तो/ प्रो. . इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी दर्शन विभाग हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड

सच पूछो तो,

कभी तो सच में
लगता है कि मैं ही गलत हूँ।
कुछ तो वजह होगी,
दुनियादारी में मैं ही नासमझ हूँ।
जब तक सामने वाले को,
अपने नहीं, उसके नज़रिये से,
समझे जाओ,
मैं देवत्व से पूर्ण होती जाती हूँ
पर जैसे ही अपने नजरिये से देखने
की सोच भी आई मुझे
मैं अहमक और नासमझ कही जाती हूँ,
और हद तो तब होती
जब झूठ पर पर्दा डालती हूँ,
ताकि झूठ बोलने वाला शर्मिंदा न हो
और वो इस सोच के साथ
मुस्कुरा उठता है कि
मैं उस पर विश्वास से,
उसके झूठ तक पहुँच न सकी।
सच पूछो तो,इसके बाद भी,
मैं बस सामने वाले को
शर्मिंदगी से बचा लेने में खुश हूँ।

प्रो. इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी
दर्शन विभाग
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय
श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड