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Philosophy। भविष्य का दार्शनिक चिन्तन

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मानव एक स्वप्नदर्शी प्राणी है | इतिहास को खोजना और अपने भविष्य की और झांकाना इसे प्रिय है। यह बात डा. गोविन्दशरण उपाध्याय ने कही। शुक्रवार को बीएनएमयू संवाद व्याख्यानमाला में व्याख्यान दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि वैदिक ऋषियों ने नासदीय सूक्तों के माध्यम अपने अतीतको जानने का प्रयत्न किया और भविष्य में मानवीय अस्तित्व का अनुमान किया। वैदिक दार्शनिक जिज्ञासा का उत्स उपनिषद काल में ब्रह्म और पौराणिक काल में ईश्वर, कृष्ण राम आदि में रुपान्तरित हो गए।

 

 

उन्होंने कहा कि अपनी और विश्व की अस्मिता को जान लेने की अदम्य इच्छा हमेशा मानव-प्रज्ञा को भविष्यbको जानने की ओर आमन्त्रित करती हैं |
परमसत्य को जानने की तीव्रतर इच्छा हो या परमसुख अर्थात् असीमित आनन्द की चाहना दोनों का गन्तब्य भविष्य का दर्शन ही है।

उन्होंने कहा कि कोविड 19 ने प्रकृति के समक्ष मानवीय बौद्धिक शक्ति और विकासको तुच्छतर साबित कर दिया है। आज मानव समाज के सामने प्राकृतिक जीवनशैली को पुन: अपनाने की जरूरत आ पड़ी है। अन्यथा प्रकृति को बृहद चुनौती देनेवाला अतिप्रकृतिक वैज्ञानिक शक्ति को (यांत्रिकी) विकास करके हम अपना भविष्य सुरक्षित नहीं रख सकते हैं।

उन्होंने कहा कि मानव प्रज्ञा को अभि तक किए गए विभिन्न तत्वों, सत्यों तथा उपलब्धि से सन्तुष्टी नहीं मिली है। इसका अर्थ हैं – मानव प्रज्ञा इस कोविड019 की प्रताड़ना को और भी चुनौती के रुप में लेगा और मानव जाति को प्राकृतिक सीमाओं से मुक्त राखने के लिए और भी आक्रामक तेवरों से अन्वेषणों में प्रविष्ट करेगा |

उन्होंने कहा कि भविष्य की तत्वमीमांसा से सम्भवत: ईश्वर जैसे अतिप्राकृतिक सत्यों से स्वतन्त्र हो जाएगा। विज्ञान के विकास से जन्म, मृत्यु तथा जरा व्याधिका जीवन से लोप हो जाएगा जिस से स्वर्ग, नर्क तथा नैतिकता की परिभाषाएं बदल जाएंगी। तत्व मीमांसा का अर्थ सुदुर ग्रहों, गेलेक्सियों तथा तारामण्डलों के साक्षात्कार करना होगा, नैतिकता का अर्थ अधिकतम सुख और जीवन सुरक्षण, ज्ञान मीमांसा का अर्थ स्व क्षेत्र में अधिकतम चातुर्यता तथा तर्क का प्रयोजन यान्त्रिकी और यन्त्र-मानव के बीच सामन्जस्य स्थापित करने से रहेगा।

उन्होंने कहा कि भविष्य का दर्शनशास्त्र भौतिक सीमाओं से उन्मुक्त, निर्भय स्वतन्त्र भौतिकवाद होगा। महर्षि बशिष्ठ ने जिन अनंत ब्रह्माण्ड की मानसिक यात्राओं की, महर्षि पतंजली ने जिन अष्टसिद्धियों की और आचार्य शङ्कर ने जिस ब्रह्मत्व की स्थापना की हैं, उसका वास्तविक साक्षात्कार होगा।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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