पहले ही दिन बिक गई सारी पुस्तकें।
खुशखबरी और कृतज्ञता। वरिष्ठ पत्रकार लेखक और पद्मश्री से सम्मानित आदरणीय श्री सुरेन्द्र किशोर जी की पहली पुस्तक।
पटना पुस्तक मेले में। प्रख्यात प्रभात प्रकाशन स्टॉल पर। कबीर की तरह आंखों देखी। तथ्य और सत्य की कसौटी। तर्क अकाट्य। पढ़ने और संजो कर रखनेवाली पुस्तक। परीक्षा के लिए भी। जानकारी के लिए। संदर्भ के लिए।
राज्यसभा के उप सभापति लेखक और वरिष्ठ संपादक रहे श्री हरिवंश जी ने भूमिका लिखी है। शीर्षक है. इतिहास के अनजाने.अनसुने प्रसंग। जरूरी है श्री सुरेन्द्र किशोर जी को जानने के लिए। खास कर नई पीढ़ी को।
82 अध्याय हैं। यानी 82 राजनीतिक सत्य।
किस्सागोई अंदाज में।
सहज सरल भाषा।
शैली सीखने योग्य।
साफगोई चरित्र और नैतिकता की सीख।
229 पन्ने की पुस्तक है।
पेपरबैक सह हार्डबाउंड।
मूल्य 500 है। छपाई साज सज्जा आकर्षक है।
पुस्तक का दायरा बड़ा है।
विशाल।
बिहार से बर्ट्रेंड रसेल तक।
बहुत सारी नई जानकारी।
जैसे 60 के दशक में अमन फिल्म आई थी।
राजेंद्र कुमार हीरो थे। इस फिल्म में वे शांतिदूत बर्ट्रेंड रसेल से बातचीत करते हैं।
रसेल इसमें अमन व शांति का संदेश दे रहे हैं।
रसेल के पिता अपनी पत्नी को बेटे के ट्यूटर से सहवास करने की अनुमति देते हैं।
रसेल ने अपनी आत्मकथा में इसका निर्लिप्त भाव और तटस्थ पर्यवेक्षक के रूप में वर्णन किया है।
रसेल अभी 16 साल के भी नहीं हुए थे तब तक कई बार वे आत्महत्या करना चाहते थे
पर गणित के प्यार ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।
श्रीबाबू ;डॉ श्रीकृष्ण सिंहद्ध चुनाव में कभी वोट मांगने नहीं गए। पराजित पति के लिए महारानी ने बंद करा दिया था किले का द्वार। महारानी ने चिता जलवायी और उसमें कूद गईं।
पटना में छपी थी भारतेंदु हरिश्चंद्र की पुस्तकें ।
खड्ग विलास प्रेस में।
बांकीपुर में।
जब बेनजीर भुट्टो ने लव मैरिज का सपना छोड़ा।
एक नेता ऐसा भी गुलज़ारी लाल नंदा के निधन के समय उनके पास न तो मकान था और न आय का कोई जरिया।
नंदा ने सरकारी मकान लेने से इनकार कर दिया था।
उनका मानना था कि बिना श्रम किए जनता से टैक्स में मिले पैसा लेना पाप है।
प्रशासनिक पद्धति से असंतुष्ट थे 77 के जेपी।
जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर को लिखा था लंबा पत्र। राजनीति में युवाओं के आने पर जोर दिया था। भ्रष्टाचार पर भी चिंता व्यक्त किया था। लिखा था इसका निराकरण जरूरी है।
1991 में अपने अभिभाषण में राष्ट्रपति की आलोचना करने के कारण हटाए गए थे बिहार के राज्यपाल।
जब चंद्रशेखर ने कर्पूरी कुर्ता फंड के लिए चंदा मांगा।
अटल और लिमये आमने सामने।
महलों के लिए नहीं कभी झोपडी के लिए लड़े थे दो दल। झोपडी चुनाव चिह्न था।
समाजवादियों के एक न होने की कहानी वाया संसोपा और प्रसोपा। आपातकाल में चुनाव की भविष्यवाणी। कुलदीप नैयर ने कमलनाथ से बात कर निकाली थी ख़बर। जोखिम लेकर।
23 जनवरी 77 को घोषणा हुई। मार्च में होंगे लोकसभा चुनाव। फिल्म किस्सा कुरसी का।
बलराज साहनी के साथ काम करना चाहते थे सत्यजित राय। साहनी शांति निकेतन में अध्यापक रहे। बीबीसी के उद्घोषक भी। लेख व कहानियां भी लिखते थे। अंग्रेजीए हिंदी और पंजाबी में भी।
चारु मजूमदार लाइलाज मरे। वे संपन्न परिवार के थे। उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। चारु पहले कांग्रेस में थे।
आतंक से निपटने का इजरायली तरीका। जब 1972 में म्यूनिख में 11 इजरायली ओलम्पिक खिलाड़ियों को अरब आतंकवादियों ने मार डाला। मोसाद ने 20 सालों में बदला लिया। हत्यारों को बारी बारी से इटली फ्रांस ब्रिटेन लेबनान एथेंस और साइप्रस में मारा। नाटकीय ऑपरेशन में।
जब राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट में हाजिर हुए। वीवी गिरि।
सिर्फ आरोप लगने पर कट गये थे टिकट। बिहार विधानसभा चुनाव 1969। पुर्तगाली जेल में 14 साल। ये थे स्वतंत्रता सेनानी मोहन रानाडे। 1955 में गिरफ्तार। 1969 में रिहाई। पोप ने किया था हस्तक्षेप। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री सी एन अन्नादुरै ने पोप से मिल कर किया था आग्रह।
सिद्धांतों पर अडिग लोहिया। मामला बिहार का है। लोहिया से संसोपा के बड़े नेता ने कहाए मुझे एम एल सी बना कर मंत्री पद पर बने रहने दिया जाए अन्यथा सरकार गिरा देंगे। डॉ लोहिया ने कहाए चाहे सरकार गिरा दोए लेकिन हम अपने ही बनाए नियम को आपके लिए नहीं तोड़ेंगे। नहीं माने लोहिया। और पहली बिहार की गैर कांग्रेसी सरकार 10 महीनों में ही गिर गई। महामाया प्रसाद सिन्हा की सरकार 5 मार्च 67 से 28 जनवरी 68 तक ही रही। जनसंघ और कम्युनिस्ट सहित कई दल इस सरकार में थे। बी पी मंडल और धनिक लाल मंडल महत्वपूर्ण किरदार थे इसके।
रहस्य के घेरे में दीनदयाल उपाध्याय की हत्या। जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष बलराज मधुक ने जनसंघ के ही कुछ बड़े नेताओं पर अंगुली उठा कर इस हत्याकांड को रहस्यमय बना दिया था। राजमाता सिंधिया ने गिराई थी सरकार। आचार्य जे बी कृपलानी के घर वी के कृष्ण मेनन। दोबारा राष्ट्रपति नहीं बने राधाकृष्णन। राजनीतिक चंदा विदेश से। 1967 की बात। चुनाव में बिड़ला बनाम मोरारका। मामला राजस्थान के झुंझुनू का।
स्टालिन की बेटी को शरण नहीं। स्वेतलाना भारत की बहू थीं। वे कालाकांकर राजघराने के ब्रजेश सिंह की पत्नी थीं। भारत में भ्रष्टाचार पर अमरीकी शोध। अमरीकी समाजशास्त्री पॉल आर ब्रास ने 1966 में किया था शोध। पुस्तक भी है। त्याग का प्रतीक था त्यागी का त्याग पत्र। केंद्रीय मंत्री महावीर त्यागी। वे 65 के युद्ध में पाकिस्तान से छीनी भूमि किसी भी शर्त पर लौटने के पक्ष में नहीं थे।
क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त की उपेक्षा। शहीद ए आजम भगत सिंह के साथी। दोनों ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंका था। कुछ दिनों के लिए उप चुनाव में एम एल सी बनाया गया था। बाद में बिहार के मुख्यमंत्री के बी सहाय ने अगले कार्यकाल के लिए मना कर दिया। कामराज योजना का लाभ नहीं। सोवियत संघ और भारत।
मोरारजी देसाई ने अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी को किया निरुत्तर। देसाई ने 1930 में राज्य प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया था। माउंटबेटन की सलाह पर शुरू हुआ था पद्म सम्मान।
जब बिहार के मुख्यमंत्री पद का ऑफर डॉ लक्ष्मी नारायण सुधांशु ने ठुकराया। वह भी जब ऑफर नेहरू ने दिया था। पत्रकार को नेहरू सरकार में मंत्री पद मंजूर नहीं था। डॉ लोहिया की गिरफ्तारी पर नेहरू पटेल आमने सामने। बात 1949 की। आखिर बिना शर्त रिहा हुए लोहिया।
कांग्रेस ने 1948 में किया था चुनाव में धर्म का इस्तेमाल। आचार्य नरेंद्र देव और बाबा राघव दास का फैजाबाद से उप चुनाव। अगस्त क्रांति के असहयोगी भी नेहरू सरकार में। अगस्त क्रांति में पटना के अंग्रेज कलेक्टर आर्चर ने राजेंद्र से की थी शांति की गुहार। सरकार बनाने से 1937 में कांग्रेस ने कर दिया था इन्कार।
मधुबनी से कैसे उप चुनाव जीते मुख्यमंत्री गफूर। महान समाजवादी सूरज नारायण सिंह की हत्या से खाली हुई थी सीट। 1982 में रंगा और बिल्ला की फांसी की कहानी। शालीन हंसी और चुटीले व्यंग्यों से संसद को जीवंत बनाए रखते थे पीलू मोदी। उन्हीं के भाई रूसी मोदी टिस्को के चेयरमैन थे। पीलू जुल्फिकार अली भुट्टो के मित्र थे। कैलीफोर्निया से आर्किटेक्ट की पढ़ाई की थी।
एक बार कर्पूरी जी ने पीलू मोदी से कहा कि एक हेलीकॉप्टर का प्रबंध कर दें तो हम बिहार की आधी सीटें जीत जाएंगे। इस पर बिना देर किए मोदी ने कहाए दो का प्रबंध कर देता हूं। पूरी सीटें जीत जाओ। अरे भाईए चुनाव हेलिकाप्टर से नहीं जीते जाते।
14 वीं सदी में एक स्त्री को सती होते देख बेहोश हो गया था इब्न बतूता। भारी राजनीतिक कशमकश के बाद ही हो सका था प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का चुनाव। प बंगाल विधानसभा में जो कुछ हुआए वह न भूतो न भविष्यति। क्या हुआ यदि गांधी ने मरते समय हे राम नहीं कहा। दो बार तो खुद ही ठुकरायाए तीसरी बार पार्टी ने ज्योति बसु को नहीं बनने दिया प्रधानमंत्री।
बेहतर इलाज के लिए थोड़े पैसे जुट जाते तो नहीं जाती डॉ लोहिया की जान। नटवर लालरू इसके जैसा न कोई थाए न होगा। चीन युद्ध के बाद अगर नेहरू लंबी जिंदगी जीते तो बदल जाती भारत की विदेश नीति। जिन्नाए सावरकरए आंबेडकर राजाजीए कम्युनिस्ट और रजवाड़ों के विरोध के बावजूद भारत छोड़ो आंदोलन रहा सफल।
नानाजी देशमुख ने रोकी थी 74 में जे पी पर चली लाठी। जान हथेली पर लेकर इमर्जेंसी का मुकाबला किया था जॉर्ज फर्नांडिस ने। जब अंग्रेजी अखबारों की होली जलाने से माखनलाल चतुर्वेदी ने रोक दिया था डॉ लोहिया को। स्थायित्व के मामले में इस देश में मिली जुली सरकारों का रहा है मिला जुला रिकॉर्ड।
चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने की मांग 1967 में अस्वीकार कर दी थी केंद्र सरकार ने। चुनावों में नेहरू ने ही डाल दी थी वायुसेना के इस्तेमाल की परंपरा।
ऐसे कई ऐसे प्रसंग हैंए जिसका आनंद पुस्तक पढ़ कर ही लिया जा सकता है। फेसबुक से नहीं। रोचक। प्रेरक। जानकारीपरक। साथ ही सवाल खड़ा करता हुआ प्रसंग। सोचने को बाध्य करता है सवाल। पठनीय और संग्रहणीय भी।
प्रार्थना रू इसे जरूर पढ़ें। अद्भुत और अद्वितीय। जानकारी बढ़ेगी। अतीत से दरस परस होगा। यह मेरा अनुभव है।

-Swayam Prakash जी के फेसबुक वॉल से साभार।















