BNMU : स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं साक्षरता विषयक सेमिनार का आयोजन

मानव जीवन अद्भूत है। मानव को ही मुक्ति का सौभाग्य मिलता है। इस मुक्ति में स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं साक्षरता की महती भूमिका है। यह बात भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. रमेशचन्द्र सिन्हा ने कही।

वे शुक्रवार को ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में दर्शन परिषद्, बिहार द्वारा प्रायोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन कर रहे थे। इसका विषय था स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं साक्षरता।

उन्होंने कहा कि स्वच्छता देवत्व के समान है। जहाँ स्वच्छता है, वहाँ देवता निवास करते हैं। जहाँ गंदगी है वहां पर देवत्व नहीं हो सकता है।

उन्होंने कहा कि स्वच्छता एवं पवित्रता एक-दूसरे से जुड़े हैं। स्वच्छता पवित्रता का व्यावहारिक एवं भौतिक रूप है। पवित्रता स्वच्छता का आदर्शात्मक एवं आध्यात्मिक रूप है।

उन्होंने कहा कि शिक्षा के जरिये मूल्यों का संघात होता है। शिक्षा हमें स्वतंत्र एवं सशक्त बनाती है। शिक्षा के जरिये स्वच्छता एवं स्वास्थ्य जैसे मूल्यों की प्राप्ति में भी मदद मिलती है।

मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. जटाशंकर ने कहा कि स्वच्छता एवं स्वास्थ्य एक-दूसरे से जुड़े हैं। स्वच्छता का उद्देश्य है कि हम अपने मूल स्वरूप में बनाए रखें।

उन्होंने कहा कि अपने आपमें स्थित होना ही स्वस्थ होना है। वास्तव में स्थितप्रज्ञ व्यक्ति अपने आपने स्थित होता है और वही स्वस्थ होता है।व्यावहारिक अर्थ में हम स्वस्थ शब्द का प्रयोग मन एवं शरीर के स्वास्थ्य के लिए करते हैं। ये दोनों आपस में जुड़े हुए हैं। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है।

उन्होंने कहा कि साक्षरता शिक्षा का आरंभ है। केवल साक्षर होना पर्याप्त नहीं है, लेकिन प्रारंभ तो साक्षरता ही है।

दर्शन परिषद्, बिहार के अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. बी. एन. ओझा ने कहा कि स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं शिक्षा हम सबों की बुनियादी ज़रूरत है। इन तीनों में अन्योन्याश्रय संबंध है। स्वच्छता अभियान को सफल बनाने में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है।

उन्होंने कहा कि केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं साक्षरता के लिए काफी प्रयास किए जा रहे हैं। हमें लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। हरएक नागरिक यदि अपनी जिम्मेदारी निभाए, तो स्वच्छ, स्वस्थ एवं साक्षर भारत का सपना साकार हो जाएगा।

दर्शन परिषद्, बिहार के महामंत्री डॉ. श्यामल किशोर ने कहा कि स्वच्छता जीवन का मूलमंत्र है। धरती पर जीवन की निरंतरता बनाए रखने के लिए सभी चीजों की स्वच्छता जरूरी है। हमारा जीवन मिट्टी, जल, अग्नि, आकाश एवं वायु इन पांच तत्वों से बना है। इन पांचों तत्वों का संतुलन आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के विचारों के आधार पर हम स्वच्छता, स्वास्थ्य एवं साक्षरता की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। गाँधी ने कहा है कि साफ- सफाई देशभक्ति के समान है। यह जीवन के लिए आवश्यक है। हर व्यक्ति को अपनी- अपनी सुरक्षा करनी चाहिए। भारतीय दार्शनिकों ने शरीर, मन व आत्मा तीनों की स्वच्छता पर जोर दिया है। शरीर में ही आत्मा का वास होता है।

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति प्रोफेसर मनोज कुमार ने कहा कि आज संत विनोबा भावे की 125वीं जयंती है। विनोबा ने आचार्य कुल की स्थापना की थी। भारतीय परंपरा में शिक्षक को आचार्य कहा गया है। आचार्य अपने आचरण से शिक्षा देते हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रोफेसर डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने की। उन्होंने कहा कि भारतीय चिंतन परंपरा में स्वच्छता का विशेष महत्व है। हमारे यहां स्वच्छता का अर्थ सिर्फ बाह्य जगत की चमक दमक या भौतिक शरीर का रंग रोगन नहीं है। हमारे लिए स्वच्छता का मतलब आंतरिक एवं बाह्य शुद्धि से है।

उन्होंने कहा कि योग दर्शन में अष्टांगिक योग की चर्चा है यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि यह 8 योग के अंग है इसमें नियम के अंतर्गत 5 बातों का ख्याल रखा जाता है इसमें शौच, संतोष, तपस, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान। इसमें शौच का काफी महत्व है। शौच का अर्थ आंतरिक एवं बाह्य शुद्धि है।

उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में स्वास्थ्य को भी काफी व्यापक अर्थ में लिया गया स्वास्थ्य का मतलब सिर्फ हत्था कथा या मजबूत शरीर की प्राप्ति नहीं है। स्वास्थ्य का अर्थ है स्व में स्थित होना। अपने आप को जानना। अपने मूल स्वरूप में स्थित होना। ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ का भारतीय सूत्र अनुपालनीय है। हम प्रकृति के जितने करीब जाएंगे, उतना ही हम स्वस्थ, प्रसन्न एवं दीर्घायु जीवन जी सकेंगे। हम प्राकृतिक जीवनशैली को अपनाकर स्वस्थ एवं गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सकते हैं।

उन्होंने कहा कि आज कोरोना काल में लोग बीमारी से अधिक, उसके भय से पीड़ित हैं। यह बात निर्विवाद है कि तन्दुरूस्ती के नियमों को न जानने से और उन नियमों के पालन में लापरवाह रहने से ही ज्यादातर रोग होते हैं। अतः, संयम और सादगी आदि गाँधीवादी मूल्यों को अपनाकर पूर्ण स्वास्थ की स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है। यही ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ एवं ‘सर्वे संतु निरामया’ के आदर्शों की भी मूल भावना है, जो न केवल मनुष्य, वरन् मनुष्येतर जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों एवं संपूर्ण चराचर जगत के स्वस्थ एवं प्रसन्न जीवन की कामना करता है।

कार्यक्रम में सीडीआरआई, लखनऊ के पूर्व चीफ साइंटिस्ट डॉ. आरपी त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल की डॉ. कविता भट्ट शैलपुत्री, गांधी विचार विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के पूर्व अध्यक्ष डॉ. पी एन सिंह, स्कॉटिश चर्च महाविद्यालय, कोलकाता में हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. गीता दुबे, प्रोफेसर के. एस. ओझा प्रधानाचार्य बीएनएमवी कॉलेज मधेपुरा, रांची (झारखंड) में कंपनी सेक्रेट्री डॉ. पूजा शुक्ला ने भी अपने विचार व्यक्त किया।

प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर और एमएलटी काॅलेज, सहरसा के डाॅ. आनंद मोहन झा ने किया।

कार्यक्रम की शुरुआत महाविद्यालय के संस्थापक कीर्ति नारायण मंडल और संत विनोबा भावे के चित्र पर पुष्पांजलि के साथ हुई। श्रद्धांजलि दी गई। खुशबू शुक्ला ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। प्रांगण रंगमंच की तनुजा सोनी ने देशभक्ति गीत गाया।

इस अवसर पर एनएसएस समन्वयक डाॅ. अभय कुमार, डाॅ. मिथिलेश कुमार अरिमर्दन, डाॅ. उपेन्द्र प्रसाद यादव, डाॅ. रोहिणी, राहुल यादव, रंजन यादव, सौरभ कुमार चौहान, गौरब कुमार सिंह, अमरेश कुमार अमर, डेविड यादव, बिमल कुमार आदि उपस्थित थे।