Teacher’s Day। शिक्षक दिवस पर विशेष/ छुट्टी की घंटी और शिक्षक की घुट्टी

टन… टन… टन…घंटी बजने की आवाज घर तक पहुँच रही थी। जल्दी जल्दी बस्ता समेट कर सहपाठियों के साथ चल पड़ा, गांव के सरकारी प्राथमिक स्कूल। स्कूल प्रार्थना समाप्त हो चुकी थी। स्कूल पहुँचने में देर हो गयी थी। दीदीजी (शिक्षिका) बोली हाथ आगे करो, और लगातार तीन से चार बार छड़ी हाथ पर दे मारी। रोते-रोते जमीन पर बोरा बिछाया और अ.. आ लिखने लगा। पढ़ाई से ज्यादा घण्टी बजने का इंतजार करता रहा। घंटी बजी सभी बच्चे एक पंगत (पंक्ति) में खड़े हो गये और शुरू हो जाता पहाड़ा दो एकम दो.. दो दूनी चार…। फिर उलटी गिनती शुरू-सौ..सैंया..निनॉनबे..अनठांन्वे..सन्तानबे। इस आवाज से वातावरण संगीतमय हो जाता था, जिसकी गूंज दूर-दूर तक सुनाई देती थी। इसके बाद फिर से टन..टन…टन… छूट्टी की घण्टी बजी।
दूसरे दिन डर से स्कूल जाने का हिम्मत नहीं हो रहा था, घर में पेट दर्द का बहाना बना कर रूक गया। स्कूल से दो बच्चे घर पर बुलाने आ गया। चलो जल्दी स्कूल… दीदीजी बुला रही है। यह सुनकर और डर गया, स्कूल जाने का मन बिल्कुल नहीं हो रहा था। इसके बाद बहानेबाजी नहीं चल पाया और फिर बस्ता लेकर स्कूल चल पड़ा। दीदीजी समझ गई थी कि स्कूल क्यूँ नहीं आया। पिटाई नहीं कि और सामने बिठा कर पढ़ाने लगी। फिर स्कूल रोज जाने लगा। स्कूल प्रार्थना के बाद भारत के संविधान की प्रस्तावना- ‘हम भारत के लोग भारत को प्रभुत्व सम्पन्न’ सब छात्र एक साथ पढ़ते तब कक्षा शुरू होती।
कुछ दिनों के बाद एक नये शिक्षक आये उनको कम सुनाई पड़ता था, इसलिए हमलोग बेहरू मास्टर साहब कहते थे। सवाल का गलत जवाब देने पर हथेली को उल्टा कर रखने बोलते और जितना गलत जवाब रहता उसके बदले डस्टर से उलटे हथेली पर पिटाई करते थे। इस डर से गणित में जोड़,घटाव, गुणा भाग गलती करने का हिम्मत नहीं होता था। प्रत्येक शनिवार सब बच्चे मिलकर स्कूल का सफाई करते थे। पांचवीं कक्षा पास कर गये।
घर आते तो दादाजी पढ़ाते। दादाजी अक्षर बनाने पर जोड देते तब रोशनाई की शीशी खरीदकर लकड़ी से कलम बनाकर उससे लिखते थे।
छठी कक्षा में घर से एक किलोमीटर दूर स्कूल में नामांकन हुआ। पहली बार बैंच पर बैठने और डेस्क पर कॉपी रखकर लिखने का सुखद अनुभूति प्राप्त हुई। पहली बार अंग्रेजी विषय से भी पाला पड़ा। हरेराम बाबू अंग्रेजी के शिक्षक थे। उनके पढ़ाने का अनूठा तरीका था। उनके भय से अंग्रेजी विषय तुरंत समझ में आ जाता था। वहीं संस्कृत के शिक्षक गजानंद बाबू अगर कक्षा में किसी छात्र को सोते हुए देख लेते तो दूर से ही छोटा डंडा दे मारते। इस डंडे का नाम गजानंद बाबू ‘दुखहरण’ रखे थे। एक बार इसी तरह किसी छात्र को मारे थे, वो घायल हो गया था, फिर मास्टर साहब डॉक्टर के यहाँ जाकर उसका मरहम पट्टी करवाया। फिर इस तरह से कभी नहीं किसी छात्र को मारे। गणित व विज्ञान के शिक्षक सर्वोदय बाबू गलती करने या पाठ याद नहीं करने पड़ मुर्गा बनाते थे। उनके डांटने मात्र से ही छात्रों का पसीना छूट जाता था। प्रत्येक शुक्रवार को गीत-संगीत का कार्यक्रम आयोजित किया जाता था। इस कार्यक्रम में छात्रों के अलावे शिक्षक भी गाना गाकर सुनाते थे। तुलसी जयंती पर कार्यक्रम में सभी प्रतिभागियों को हनुमान चालीसा, कलम, कॉपी से पुरस्कृत किया जाता था।
मिडिल स्कूल के पास ही हाई स्कूल था। अष्टम वर्ग में ही नामांकन वहाँ करा लिये। नयी कक्षा की शुरूआत में नये कॉपी किताबों का घर आना किसी उत्सव से कम नही होता था। हाथ पर कॉपी-किताब ले जाने का शौक उभर आया। पहले दिन स्कूल शुरू हुआ, ठंड का मौसम था, इसलिए खुले आसमान में घास पर बैठकर पढ़ाई शुरू हुआ। फिर नये-नये दोस्त उस दिन से बनना भी शुरू हुआ। हाई स्कूल में शिक्षक ब्रह्मदेव बाबू सबसे ज्यादा कड़क थे। उनके कारण छात्र शिष्टाचार से रहता था। स्कूल के शिक्षक जनार्दन बाबू, अंगद बाबू, प्रेमसुधा कुंवर, वकील बाबू, रामचन्द्र बाबू, धीर बाबू, रंजीत बाबू, श्यामसुंदर बाबू के पढ़ाने के तरीके को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
बचपन में सोच का दायरा सीमित रहता है, जो बातें बचपन में शिक्षकों से बुरी लगती थी वही बातें समझ आ जाने के बाद सही साबित लगती हैं। और उन बीतें हुये दिनों को याद कर शिक्षकों के प्रति सम्मान की भावना, और उनके बताये हुए मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। शिक्षकों का सम्मान हर पल, हर दिन, हर समय होना चाहिए। उनके द्वारा प्रदान गुणों को ग्रहण कर हम सही मायने में ऋण चुका सकते हैं। सभी शिक्षकों को शिक्षक दिवस पर सादर प्रणाम।

मारूति नंदन मिश्र
नयागांव, परबत्ता, खगड़िया