बंद शिक्षा-संस्थान, ऑनलाइन क्लास और बच्चे/विजय लक्ष्मी भट्ट शर्मा

किसी भी शुभ कार्य से पहले सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है तो मै भी उनके चरणो में अपनी पूजा की पंक्तियाँ निवेदित करती हूँ उसके बाद अपने विषय पर आऊँगी।

सुख करता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची सर्वांगी सुन्दर उटीशेंदु राची कंठी झलके माल मुकताफळांची जय देव जय देव जय मंगल मूर्ति दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति जय देव जय देव।h

https//youtu.be/42NDc1a0M60

आज बी एन मंडल विश्वविद्यालय के पेज से आप सबके समक्ष उपस्थित होने का अवसर प्राप्त हुआ है। सर्वप्रथम मेरा दायित्व है की आयोजकों का आभार प्रगट करूँ जिन्होंने मुझे इस काबिल समझा की मै विश्वविद्यालय के पेज पर लाइव आकर अपने अल्पज्ञान से “बंद शिक्षासंस्थान और ऑनलाइन क्लास, बच्चे कैसे राहें तनावमुक्त“ विषय पर प्रकाश डाल सकूँ। मै शिक्षिका नहीं हूँ ना ही कभी किसी को पढ़ाया है, पर एक माँ जरूर हूँ जो अपने बच्चों की प्रथम शिक्षिका होती है उसी तजुर्बे के आधार पर यहाँ उपस्थित हुई हूँ, आप सबका स्नेह और पूजा शुक्ला जी, डेविड यादव जी का स्नेह है जो यहाँ इस पटल पर अपने विचार रखने जा रही हूँ। क्यूँकि विश्वविद्यालय का पेज है इसलिये गुरु शिष्य परम्परा पर अपनी बात रखना मेरा नैतिक दायित्व भी हो जाता है। गुरु शिष्य का सम्बंध बहुत ही मधुर और ज्ञानवर्धक सम्बंध होता है। कबीर जी कहते हैं,”
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है,
गढ़ि – गढ़ि काढ़ै खोट |
अन्तर हाथ सहार दै,
बाहर बाहै चोट ||”
(गुरु कुम्हार है और शिष्य घड़ा है, भीतर से हाथ का सहार देकर, बाहर से चोट मार मारकर और गढ़–गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकलते हैं |)
आगे कहते हैं, गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान |
तीन लोक की सम्पदा,
सो गुरु दीन्ही दान ||”
(गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य के सदृश याचक नहीं | त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान – दान गुरु ने दे दिया )गुरु की महिमा अपरम्पार है। कारोना काल में जब सभी शिक्षा संस्थान बंद हैं तब ग्रूव ही हैं जिन्होंने अपने कार्य को बंद नहीं होने दिया और बच्चे इधर उधर ना भटक जाएँ इसलिये ऑनलाइन क्लास लेकर बच्चों का ज्ञानवर्धन की सोची। हर चीज के अच्छे बुरे दोनो पहलू होते हैं मै दोनो ही पहलुओं को आप सबके सामने लाने की कोशिश करूँगी सर्वप्रथम बच्चों की ऑनलाइन क्लास से क्या परेशनियाँ हो रही हैं बताउँगी फिर समाधान की ओर बड़ेंगे की कैसे बच्चे इन सबसे तनाव मुक्त रहें।

दुनिया भर में लॉकडाउन के चलते सभी स्कूलों को भी बंद कर दिया गयाहै। भारत के स्कूलों में मार्च में परीक्षाएं हो जाती हैं और अप्रैल में फिर नयी कक्षाएं शुरू हो जाती हैं। लेकिन स्कूल बंद होने के कारण इस बार बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाई है और डिजिटल क्लास होने लगीं, जिसमें ऑनलाइन क्लासेज़ वहटसअप ग्रूप या फिर गूगल मीट जो भी साधन उपलब्ध हैं उनसे होने लगी इसमें कई दिक़्क़तें आ रही हैं। सिलेबस पूरा कैसे हो ? साथ ही जो आपस में बातचीत के माध्यम से छात्रों की दुविधा का समाधान होता था वो नहीं हो पा रहा आपस में इंटरेक्शन नहीं हो पा रहा नतीजा टेनशन। नेटवोर्क की समस्या भी काफ़ी ज्यदा है और कभी कभी इस वजह से छात्रों और अध्यापकों के बीच ग़लतफ़हमी भी हो रही है की जानबूझकर क्लास् नहीं ले रहे। आँखों की दिक़्क़त कई घंटे लगातार नेट पर बैठ क्लास् लेने से आँखों की तकलीफ़ जैसे आँखों मे जलन, पानी आना, सुजन आदी से भी तनाव बड़ रहा है। कभी कभी साधनो की कमी भी तनाव का कारण होती है।

याददाश्त कमजोर होना अब हर चीज बच्चे कम्प्यूटर पर पढ़ रहे हैं तो सेव कर लेते हैं किताब खोल पढ़ते ही नहीं। भूलने की एक बड़ी समस्या होती जा रही है। सोसल सर्कल खत्म होता जा रहा है। भावनात्मक जुड़ाव भी नहीं रहा अब। धैर्य और अनुशासन उपस्थिति नया अनुभव है। इसलिये विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिये। अकेलापन, अलगाव, बड़ रहा है कारोंना काल में कहीं आ जा नहीं सकते। जगह की कमी उपयुक्त साधनो का अभाव।

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छोटे बच्चों को दिक़्क़त, अभिभावक ही पढ़ रहे हैं। ऐसे कई कारण है जब अभिभावक और छात्र छात्रायें सभी परेशान हैं परंतु कारोना महामारी के समय कोई विकल्प नहीं है और पढ़ाई का नुक़सान ना हो इसलिये ये ऑनलाइन कक्षाओं का काम हो रहा है। कोई भी नई चीज होती है तो परेशनियाँ आना सम्भाविक हैं। चुनौतियाँ भी आएँगी पर उनका समाधान भी हमे ही खोजना है। सर्वप्रथम तो बच्चों को केवल ऑनलाइन कक्षा पर निर्भर ना रहकर खुद भी किताबें पढ़नी चाहिए। एक दो तीन बार पढ़ेंगे तो खुद ही समझ आने लगेगा।

अपने मित्रों से बात करके आप एक दूसरे की समस्याओं का समाधान ढूँढ सकते हैं,आपस में बात करके मन की भावनाओं को भी व्यक्त कर सकते हैं। आँखों को आराम दें। काफी देर कमप्यूटेर, फोन आदी के सामने बैठने से भी अवसाद घेर लेता है, आँखे शुष्क हो जाती हैं। कुछ देर टहलें छत पर, बालकनी नहीं है तो घर के पास ही टहलें पर मास्क जरूर पहनें। इससे नई ऊर्जा मिलेगी, आँखों को आराम मिलेगा और मश्तिष्क खुलेगा।
मुश्किल कुछ भी नहीं बस सोच का फर्क है अपने आप को हर परिस्थिति के लिये तैयार रखें। आप देश की उन्नति की धरोहर है आपको मजबूत होना ही होगा। आपकी बात कोई नहीं सुनता डायरी लिखें, अपनी मन की सभी बातें उसमें लिखें आपको सुकून मिलेगा की आपने अपनी बात किसी से कह दी साथ ही इस वक्त का सारा वृतांत भी होगा आपके पास। कुछ ना कुछ चित्रकारी करें चाहे आड़ी तिरछी रेखाएँ खिंचे आपको बहुत अच्छा लगेगा आपका दिमाग़ स्थिर हो केवल आकृति पर केंद्रित होगा जो आपको शान्ति के साथ साथ खुशी देगा। अच्छा संगीत सुने। संगीत मन को प्रफ़ुल्लित करता है, चिंताओं को दूर कर हमे खुशी रखता है। ये तो बच्चों की बात हो गई अब बड़ों की ज़िम्मेदारी भी बता दें। अभिभावको की भूमिका यहाँ महत्वपूर्ण हो जाती है की अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत करें, समय व्यतीत का मतलब पूरी तरह से उनके हो कर रहें। उनके साथ खेलें। कैरम खेलें, लूडो खेलें, चेस्स खेलें काफ़ी सारे ऐसे खेल हैं जो घर पर रहकर खेले जा सकते हैं। उनके साथ खिलखिलाएँ, हँसे…बच्चों के मित्र बनकर उनकी बात सुने उनकी समस्याओं का समाधान करें फिर देखिए कैसे घर ख़ुशियों में बदल जाता है।

अध्यापकों की भी ज़िम्मेदारी है कि अगर नेट की समस्या से कोई बच्चा ओफ़ लाइन हो जाता है तों उसको सजा ना दे …उसकी परेशानी बढ़ाने की बजाय उसकी बात सुने उसे दिलासा दें उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाएगी और वो दुगनी गती से पड़ेगा, साथ ही बच्चों क़ी समस्या सुन उसका समाधान भी खोजेंगे तो बच्चों को कुछ राहत मिलेगी।

परिवर्तन सृष्टि का नियम है, जब जब भी परिवर्तन हुए हैं तब तब कुछ अच्छा ही हुआ है इसलिये इस ऑनलाइन क्लास से घबराना नहीं चाहिये अपितु इसे एक चुनौती के तौर पर ले इसे जीवन का एक और सबक़ समझें।शिक्षा अपने मूल में सामाजीकरण की एक प्रक्रिया है. जब-जब समाज कास्वरूप बदला शिक्षा के स्वरूप में भी परिवर्तन की बात हुई. आज कोरोनासंकट के दौर में ऑनलाइन शिक्षा के जरिये शिक्षा के स्वरूप में बदलाव का प्रस्ताव नीति निर्धारकों के द्वारा रखा जा रहा है और इसके स्वरूप में सुधार हेतु प्रशिक्षण का भी विचार एक सुझाव है क्यूँकि किसी को अभी पता नहीं कब तक ये कारोना काल रहेगा ऐसे में सुधार और सुझाव दोनो की ही बड़ी भूमिका है।
अंत में सिर्फ़ इतना परिवार को समय दें, एक दूसरे के सारथी बने, बाहर निकलें तो मास्क पहने, उचित नियमों का पालन करें, हो सके तो अनावश्यक बाहर ना जायँ। मेरी इन पंक्तियों के साथ आप सबका धन्यवाद करते हुए विदा लूँगी-

तख्तियों की लिखावट में
खो गयी जिंदगी कहीं
लगता है डिजिटल की होड़ में
कलम गुम हो गई है कहीं।

चिकनी मिट्टी की वो चमक
काली स्याही के रंग भर
कलम का उजले रंग पर बलखाना
नहीं भूलता है मुझे अभी तक।

जुनून सवार बस तो एक ही
कैसा हो शब्दों का आकार
छोटे बड़े ना हो जायें कहीं
समानता का कैसे करें विचार।

एक दवात दस दस कलम
सहेजकर उकेरते आकृति
अपनी अपनी तख्ती पर सभी
दाग ना लगे कोई इसका भी था ख्याल।

काली स्याही से लबरेज़
बनती बिगड़ती सूरतों में
नहीं था दर्द कुछ खोने का
रोज मिटती थीं वो नए सपने बुनने को।

अब लिखते हैं कुछ तो
बन जाता जी का जंजाल यहां
मिटती नहीं रेखाएं यहां अब
बस सपने टूटते रहते रोज।

मिटाते लिखते थे कभी
चाह थी सुन्दर लिखने की
अब खुद ही मिटते जाते हैं
लिखने की चाह ना अब कोई।

तख्तियों की लिखावट सी
खो गई है जिन्दगी कहीं।
अब ढूंढते तलाशते हैं रोज उसे
मिल ही जाए पुरानी लिखावटों में कहीं…।
धन्यवाद, जय हिंद।
विजय लक्ष्मी भट्ट शर्मा
भारतीय संसद

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