BNMU : प्रणब मुखर्जी के निधन पर कुलपति ने जताया शोक, जनसंपर्क पदाधिकारी का संस्मरण

https://youtu.be/PKyKpZa4kc4                भारत के पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्न प्रणब मुखर्जी का 31 अगस्त, 2020 को निधन हो गया। वे 84 वर्ष के थे। इनके निधन से देश-दुनिया में शोक की लहर दौड़ गई है। भारत के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई गणमान्य लोगों ने प्रणब दा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। पूरे देश में 7 दिनों का राजकीय शोक भी घोषित किया गया है। बी. एन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के कुलपति प्रोफेसर डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि प्रणब मुखर्जी एक आदर्श राजनेता थे। उनके निधन से राजनीति के एक महत्वपूर्ण अध्याय का अंत हो गया है। उनके निधन से समाज एवं राष्ट्र को अपूर्णिय क्षति हुई है। जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि मार्च 2015 में विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में उन्हें प्रणब मुखर्जी को नजदीक से देखने का अवसर मिला था। यह कार्यक्रम गांधी समाधि, राजघाट के द्वारा स्वच्छ एवं समर्थ भारत विषय पर आयोजित था। समारोह में प्रणब मुखर्जी ने काफी प्रेरणादायी भाषण दिया था।उन्होंने बताया कि दो अप्रैल 2017 को राष्ट्रपति के रूप में प्रणव मुखर्जी विक्रमशिला महाविहार का अवशेष देखने कहलगांव आए थे। उन्हें एनटीपीसी के मानसरोवर में ठहराया था। उन्होंने तीन अप्रैल को विक्रमशिला महाविहार व म्यूजियम देखने के बाद अंतिचक में लोगों को संबोधित किया था। इस दौरान उन्होंने प्रो. रमन सिन्हा, शिवशंकर सिंह पारिजात व गौतम सरकार द्वारा संपादित विक्रमशिला महाविहार : कल और आज पुस्तक का विमोचन भी किया था। इसके बाद ने गुरुधाम, बौंसी रवाना हो गए थे। बाद में जब प्रोफ़ेसर रमन सिन्हा विश्वविद्यालय के कार्य से मधेपुरा आए थे, तो उन्होंने 7 अक्टूबर, 2017 को तत्कालीन कुलपति डॉ. अवध किशोर राय, प्रति कुलपति डॉ. फारूक अली एवं जनसंपर्क पदाधिकारी को यह पुस्तक भेंट की थी। यह पुस्तक एक अमूल्य धरोहर है।

प्रणव मुखर्जी का संक्षिप्त परिचय                        प्रणव कुमार मुखर्जी (बांग्ला : প্রণবকুমার মুখোপাধ্যায়, जन्म : 11 दिसम्बर, 1935, ग्राम-मिराती, जिला-बीरभूम, पश्चिम बंगाल निधन : 31 अगस्त, 2020, आर. एंड. आर. हॉस्पिटल, दिल्ली

प्रणव मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में किरनाहर शहर के निकट स्थित मिराती गाँव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। पिता का नाम कामदा किंकर मुखर्जी और माता का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी था।

इनकी जीवनसंगीनी का नाम शुभ्रा मुखर्जी है। बाइस वर्ष की आयु में 13 जुलाई 1957 को दोनों पढ़ने सूत्र में बांधे थे। शुभ्रा मुखर्जी का 2015 में निधन हुआ। उनके दो बेटे और एक बेटी – कुल तीन बच्चे हैं। पढ़ना, बागवानी करना और संगीत सुनना- तीन ही उनके व्यक्तिगत शौक थे।

उनके पिता उनके पिता एक सम्मानित स्वतन्त्रता सेनानी थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन की खिलाफत के परिणामस्वरूप 10 वर्षों से अधिक जेल की सजा भी काटी थीं। वे 1920 से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय रहे। वे पश्चिम बंगाल विधान परिषद् में 1952 से 64 तक सदस्य रहे। वीरभूम (पश्चिम बंगाल) जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे।https://youtu.be/PKyKpZa4kc4

प्रणव मुखर्जी ने सूरी (वीरभूम) के सूरी विद्यासागर कॉलेज में शिक्षा पाई, जो उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था। कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ साथ कानून की डिग्री हासिल की थी। वे एक वकील और कॉलेज प्राध्यापक भी रहे। उन्हें मानद डी.लिट उपाध मिली थी। उन्होंने पहले एक कॉलेज प्राध्यापक के रूप में और बाद में एक पत्रकार के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। वे बाँग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक (मातृभूमि की पुकार) में भी किया। प्रणव मुखर्जी बंगीय साहित्य परिषद् के ट्रस्टी एवं अखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे।प्रणव मुखर्जी का संसदीय कैरियर 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रूप में (उच्च सदन) से शुरू हुआ था। वे 1975, 1981, 1993 और 1999 में फिर से राज्यसभा सदस्य चुने गये। 1973 में वे औद्योगिक विकास विभाग के केंद्रीय उप मन्त्री के रूप में मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए।वे सन 1982 से 1984 तक कई कैबिनेट पदों के लिए चुने जाते रहे और और सन् 1984 में भारत के वित्त मंत्री बने। वित्त मंत्री के रूप में प्रणव के कार्यकाल के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। वे इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव के बाद राजीव गांधी की समर्थक मण्डली के षड्यन्त्र के शिकार हुए जिसने इन्हें मन्त्रिमणडल में शामिल नहीं होने दिया। कुछ समय के लिए उन्हें कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया। उस दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक दल राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया, लेकिन सन 1989 में राजीव गान्धी के साथ समझौता होने के बाद उन्होंने अपने दल का कांग्रेस पार्टी में विलय कर दिया।उनका राजनीतिक कैरियर उस समय पुनर्जीवित हो उठा, जब पी.वी. नरसिंह राव ने पहले उन्हें योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में और बाद में एक केन्द्रीय कैबिनेट मन्त्री के तौर पर नियुक्त करने का फैसला किया। उन्होंने राव के मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक पहली बार विदेश मन्त्री के रूप में कार्य किया। सन 1985 के बाद से वह कांग्रेस की पश्चिम बंगाल राज्य इकाई के भी अध्यक्ष बने। सन 2004 में, जब कांग्रेस ने गठबन्धन सरकार के अगुआ के रूप में सरकार बनायी, तो कांग्रेस के प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह सिर्फ एक राज्यसभा सांसद थे। इसलिए जंगीपुर (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से पहली बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले प्रणव मुखर्जी को लोकसभा में सदन का नेता बनाया गया। उन्हें रक्षा, वित्त, विदेश विषयक मन्त्रालय, राजस्व, नौवहन, परिवहन, संचार, आर्थिक मामले, वाणिज्य और उद्योग, समेत विभिन्न महत्वपूर्ण मन्त्रालयों के मन्त्री होने का गौरव मिला। वे कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मंत्रिपरिषद में केन्द्रीय वित्त मन्त्री भी रहे। 2012 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया। सीधे मुकाबले में उन्होंने अपने प्रतिपक्षी प्रत्याशी पी.ए. संगमा को हराया। उन्होंने 25 जुलाई 2012 को भारत के तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली और अपने 5 वर्षों का सफलतम कार्यकाल पूरा किया। प्रणब मुखर्जी ने किताब ‘द कोलिएशन ईयर्स : 1996-2012’ लिखा है। वे लगभग 40 वर्षों से डायरी लिख रहे थे। जो उन्होंने कहा था कि उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित की जाए।सम्मान : न्यूयॉर्क से प्रकाशित पत्रिका, यूरोमनी के एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 1984 में दुनिया के पाँच सर्वोत्तम वित्त मन्त्रियों में से एक प्रणव मुखर्जी भी थे।उन्हें सन् 1997 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का अवार्ड मिला। उन्हें सन् 2008 के दौरान सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान के लिए भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से नवाजा गया। प्रणव मुखर्जी को 26 जनवरी 2019 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।https://youtu.be/PKyKpZa4kc4