Search
Close this search box.

Ambedkar *भारतीयता के प्रतीक हैं डॉ. अंबेडकर : प्रो. ललन*

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

*भारतीयता के प्रतीक हैं डॉ. अंबेडकर : प्रो. ललन*

—————–

भारतरत्न डाॅ. अंबेडकर एक प्रखर राष्ट्रभक्त थे। उनका संपूर्ण जीवन-दर्शन भारत एवं भारतीयता के लिए समर्पित था।

 

यह बात बीएनएमयू , मधेपुरा के विकास पदाधिकारी सह परिषद् के विभाग प्रमुख डॉ. ललन प्रसाद अद्री ने कही। वे रविवार को डॉ. अंबेडकर जयंती के अवसर आयोजित पुष्पांजलि सभा सह परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे थे। परिचर्चा का आयोजन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, मधेपुरा नगर इकाई के तत्वावधान में किया गया था।

 

उन्होंने कहा कि डाॅ. अंबेडकर ने विपरीत परिस्थितियों में भी उच्च शिक्षा ग्रहण किया और दुनिया में अपने ज्ञान का लोहा मनवाया। उन्होंने यह साबित किया कि यदि हमारे मन में शिक्षा प्राप्त करने का सच्चा संकल्प हो, तो गरीबी बाधा नहीं हो सकती है।

 

*संपूर्ण मानवता के भाग्य-विधाता थे डॉ. अंबेडकर*

इस अवसर पर नगर अध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने कहा कि डाॅ. अंबेडकर केवल दलित वर्ग के नेता नहीं थे, बल्कि वे संपूर्ण समाज, राष्ट्र एवं पूरी मानवता के भाग्य-विधाता थे। वे सभी मनुष्यों को एक मानते थे और सबको सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय दिलाने के पक्षधर थे।

 

उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर के विचारों में माननवीय गरिमा की रक्षा एवं सामाजिक समरसता की स्थापना का आदर्श निहित है। इनके विचारों को सही संदर्भों में समझने और इनके कारवां को आगे बढ़ाने की जरूरत है।

 

*प्रोरणास्रोत हैं डॉ. अंबेडकर*

उत्तर बिहार प्रदेश मंत्री अभिषेक यादव ने कहा कि डॉ. अंबेडकर हमारे लिए प्रेरणास्रोत हैं और उनका संदेश ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ हमारा आदर्श है। यह इस आदर्श को केंद्र में रखकर डॉ. अंबेडकर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने हेतु प्रतिबद्ध हैं।

 

*ज्ञान के प्रतीक हैं डॉ. अंबेडकर*

बीएनएमयू के सीनेट सदस्य सह परिषद् के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य डॉ. रंजन यादव ने कहा कि डॉ. अंबेडकर दुनिया में ज्ञान के प्रतीक (सिम्बल ऑफ नॉलेज) माने जाते हैं। उन्होंने अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र, धर्मशास्त्र, मानवशास्त्र राजनीति विज्ञान आदि विभिन्न विषयों का गहन अध्ययन किया था।

 

इसके पूर्व सबों ने डाॅ. अंबेडकर के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि की। कार्यक्रम का संचालन विभाग संयोजक सौरभ यादव ने किया। धन्यवाद ज्ञापन जिला प्रमुख दिलीप कुमार दिल ने की।

 

इस अवसर पर प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अमोद आनंद, नीतीश सिंह यादव, विद्यार्थी विस्तारक शंकर कुमार, बालकृष्ण कुमार, अंशु राज, रविरंजन कुमार, रोशन यदुवंशी, विवेक कुमार, ललित कुमार, ज्ञानप्रकाश कुमार, राहुल कुमार, नितीश कुमार, सौरभ कुमार चौहान आदि उपस्थित थे।

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

[the_ad id="32069"]

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।