Bihar। शोषित समाज के महानायक : बी. पी. मंडल / डाॅ. रविशंकर कुमार चौधरी

पिछले कई वर्षों से 25 अगस्त को हमलोग “सामाजिक न्याय दिवस” के रूप में मानते हैं। इसे हम “सामाजिक न्याय दिवस” के रूप में इसलिए मानते हैं क्योंकि इसी दिन आज से ठीक 102 वर्ष पहले एक आधुनिक महामानव का जन्म हुआ था, जिन्होंने अपनी लगन, मेहनत, त्याग, तपस्या और बलिदान के बल पर इस देश के बहुसंख्यक आबादी को नर्क के द्वार से खींचकर मुक्ति के पथ पर लाकर खड़ा करने की रूपरेखा खींची थी। मैं बात कर रहा हूँ आधुनिक गीता अथवा “मंडल आयोग” के रचियता स्व. बी.पी.मंडल साहब का जिनका आज जन्मदिवस है, इस अवसर पर आज पहले उनको शत-शत नमन।

हज़ारों सालों से मनुवादी दासता की बेड़ियों में जकड़े भारतवर्ष के बहुसंख्यक समाज को मुक्ति दिलाने के लिए 25 अगस्त, 1918 को उत्तरप्रदेश राज्य के ऐतिहासिक नगरी काशी/वाराणसी, जहां कबीर और रैदास जैसे “मनुवाद विरोधी” क्रांतिकारी संत पैदा हुए थे, वहीं एक और आधुनिक महामानव ने जन्म लिया था, जिसे पूरी दुनियां आज मंडल साहब के नाम से जानती हैं।

“मंडल साहब” को मनुवाद के विरुद्ध लड़ने की क्रांतिकारी विरासत अपने पिताजी से मिली थी, जिससे वो कभी मिल नहीं पाए थे, क्योंकि जिसदिन उनका जन्म हुआ था उसी दिन उनके पिताजी गुजर गए थे।

महान क्रांतिकारी तथा स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री रास विहारी लाल मंडल साहब (जो उनके पिताजी थे) मनुवाद और अंग्रेजी दमन दोनों से आजीवन एक साथ लड़ते रहे। समाज सुधार को लेकर भी उन्होंने कई सारे प्रयत्न किए जिसमें पूरे देश में शिक्षा के प्रचार के लिए न सिर्फ कई सारे स्कूल और कॉलेज खुलवाए बल्कि उसके साथ-साथ पूरे देश में मनुवाद के खिलाफ जन-जागरण अभियान भी चलाये।

बिहार में उनके द्वारा चलाया गया “जनेऊ आंदोलन” हो अथवा 1 महीने तक चलने वाले मृत्युभोज को घटवाकर 13 दिनों में होनेवाला आज का “श्राद्धकर्म” की प्रथा यह उन्हीं की देन है। एक महीने तक चलनेवाला मृत्युभोज लोगों के घोर शोषण और आर्थिक तंगी की सबसे प्रमुख वजहों में से एक थी।

यही नहीं बल्कि भारतवर्ष में अग्रिम जमानत की प्रथा उन्हीं से शुरू हुई थी और मॉर्ले-मिंटो कमिटी के समक्ष उपस्थित होकर उन्होंने 1909 में हीं आरक्षण की मांग की थी जिसे अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया।

1911 में सम्राट जार्ज पंचम के हिंदुस्तान में ताजपोशी के दरबार में जब उनको प्रतिष्ठित जगह मिला तो यह देखकर वे अँगरेज़ अफसरों भी दंग रह गए जिनके विरुद्ध वे वर्षों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे।

1917 में मोंटेग-चेल्म्फोर्ड समिति के समक्ष शोषितों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए, वायसरॉय चेल्म्फोर्ड को परंपरागत ‘सलामी’ देने की बजाय जब उन्होंने, उनसे हाथ मिलाया तो वहां उपस्थित सभी लोग स्तब्ध रह गए।

कांग्रेस के अधिवेशन में वे सबसे पहले “पूर्ण स्वराज्य” की मांग की थी।

कलकत्ता से छपने वाली तत्कालीन सबसे प्रतिष्टित अंग्रेजी दैनिक “अमृता बाज़ार पत्रिका” ने रासबिहारी लाल मंडल की अदम्य साहस और अभूतपूर्व निर्भीकता की प्रशंसा की और अनेक लेख और सम्पादकीय लिखी। दरभंगा महराज उन्हें ”मिथिला का शेर” कहकर संबोधित किया करते थे।

जी हाँ, ऐसे महान देशभक्त क्रांतिकारी पिता के सबसे कनिष्ठ संतान के रूप में जन्में, मंडल साहब का मानो कठिनाइयों से चोली-दामन का रिश्ता था।

जिसदिन पैदा लिए उसी दिन पिताजी चल बसे, जैसे कि उनके पिताजी सिर्फ अपने क्रांतिकारी वारिश के पैदा लेने का वो इंतजार कर रहे थे।

अभी कुछ हीं वक्त और गुजरा था कि माताजी भी उनके शोक में चल बसीं। बिना माता-पिता के जीवन कितना कष्टकर हो सकता है। यह आप सहज हीं महसूस कर सकते हैं।इ स तरह वक्त ने उनकी बचपन से हीं कठिन परीक्षा लेनी शुरू कर दी थी।

जब वो अपनी प्रारंभिक पढ़ाई करने “मनुवाद के गढ़” दरभंगा पहुंचे तो जीवन में पहली बार उनका सामना “छुआछूत” के अमानवीय कीटाणु के साथ हुआ क्योंकि उनके घर तो ब्राह्मण उनके सेवक हुआ करते थे। उनको कक्षा में सवर्ण छात्रों से मेधावी होने के बावजूद पीछे के बेंच पर अलग बिठाया जाता था तथा खाना खाने के लिए भी उनको अलग कतार में खाना खिलाया जाता था, जबकि आर्थिक तौर पर वो शायद वहां पढ़नेवाले सभी सवर्ण बच्चों से सुदृढ़ थे।

इसलिए जो आज यह समझते हैं कि अछूत सिर्फ दलित हीं कहलाते थे तथा पिछड़ी जातियां मनुवादी छुआछूत के शिकार नहीं हुए वो बिलकुल गलत हैं। यही नहीं जो लोग आज आर्थिक आधार पर आरक्षण का बेतुका बकवास करते हैं, उनको समझने की जरूरत है कि जाति इस देश की आज भी कड़वी सच्चाई है। आर्थिक रूप से संपन्न दलित/पिछड़े को भी उतना हीं सामाजिक दृष्टि से निम्न माना जाता है जितना कि आर्थिक रूप से कमजोर इस वर्ग के लोगों को।

उदाहरण के लिए आप आज के राष्ट्रपति महोदय जी को देख सकते हैं जिनके साथ राजस्थान के ब्रम्हा मंदिर से लेकर पुरी के जगन्नाथ मंदिर तक में सिर्फ दलित होने की वजह से हीं अपमान का घूंट पीना पड़ा था, अभी हाल में अयोध्या में राम मंदिर की भूमि पूजन में भी उन को नहीं बुलाया गया जबकि वो इस देश के सर्वोच्च पद पर आसीन थे। इसलिए संविधान में आरक्षण का अधिकार सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन था न कि आर्थिक पिछड़ापन, जिसे EWS आरक्षण लागू करने के लिए गैर-कानूनी ढंग से बदला गया।

मनुवाद के इस क्रूरतम रूप से मंडल साहब का वैसे तो कई बार सामना हुआ परंतु दो सबसे प्रमुख घटनाओं का उल्लेख मैं यहां जरूर करना चाहूंगा।

एक घटना थी जब उनको बिहार के प्रथम पिछड़ा मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेनी थी जिससे रोकने के लिए तत्कालीन मनुवादी राज्यपाल रांची में जाकर बैठ गए थे, जिसको सुलझाने के लिए पहले “सतीश बाबू” को 3 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था।

दूसरी घटना थी जब कि मंडल साहब मुख्यमंत्री थे तब बरौनी के तेल शोधक कारखाने से गंगा में तेल के रिसाव से आग लग गयी जिसपर विधानसभा में एक घोर मनुवादी विनोदानंद झा ने कहा था कि “जब शुद्र राज्य के मुख्यमंत्री होंगे तो गंगा में तो आग लगेगी हीं”, जैसाकि केरल में आई बाढ़ को आज के मनुवादियों ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अयप्पा जी के मंदिर में महिलाओं को पूजा करने देने की छूट से जोड़ डाला था।

इन सब घटनाओं से प्रेरणा पाकर हीं उन्होंने शोषित दल का गठन कर इस देश के 85% शोषित समाज को इकट्ठा कर मनुवाद से लड़ने और उनको न्याय दिलवाने का आजीवन प्रयत्न करते रहे।

भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में वे एकलौते ऐसे व्यक्ति थे जो “दलित अत्याचार” के विरुद्ध न सिर्फ लड़ते थे बल्कि एक बार तो विधान सभा में जब दलितों को न्याय नहीं दिया गया तो वो विधानसभा में अपनी बातों को रखने के बाद उसी वक्त अपने सत्ताधारी दल से त्यागपत्र देकर विपक्ष में जाकर बैठ गए जिसे आज भी हम मशहूर “पामा कांड” के रूप में जानते हैं।

एक दूसरा वाक्या जो मंडल साहब के दलितों के प्रति प्रेम और स्नेह को उभरता है वो है अपने खेतों में में हल चलाने वाले एक दलित को उन्होंने न सिर्फ पहले टिकट दिलवाया बल्कि जी-जान लगाकर उनको चुनाव भी जितवाया था।

जब उनको मोरारजी देसाई के शासनकाल में “पिछड़ा वर्ग आयोग का चेयरमैन” बनने का मौका मिला तो उन्होंने अपने जीवन के कटु अनुभवों से शिक्षा लेते हुए पूरे देश में घूम-घूमकर बहुसंख्यक आबादी के लिए एक ऐसी तथ्यात्मक रिपोर्ट्स तैयार की जिसे अगर मूल रूप में लागू कर दिए जाएं तो इस वर्ग के लोगों का देखते हीं देखते सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और शैक्षणिक रूप से कायाकल्प हो जाएगा।

वी.पी.सिंह जी द्वारा अपनी सरकार बचाने के लिए आनन-फानन में लागू किए गए इनकी एक सिफारिश की वजह से आज इस वर्ग के लाखों व्यक्ति का कल्याण हो रहा है, परंतु दुख की बात यह है कि पिछड़े वर्ग के आरक्षण का लाभ लेकर जीवन में उचाईयों तक पहुंचनेवाले लोग, तुरंत उठाए भूलकर धार्मिक अफीम के नशे में आज मस्त हैं और उल्टे मनुवादियों संग मिलकर आरक्षण को न सिर्फ गालियां देते हैं बल्कि इसे खत्म करने की पुरजोर वकालत भी करते हैं। यही हाल इस देश के राजनीतिज्ञों की भी है जो मंडल की राजनीति करके सत्ता पाते हैं लेकिन कुर्सी पाते हीं न सिर्फ मंडल जी को भूल जाते हैं बल्कि मनुवादी फरसा उठाकर बहुजनों का गला काटने में हीं लग जाते हैं जो उनके राजनीतिक पतन का भी मुख्य कारण बना है।

यही नहीं समाज सुधार के नाम पर 85% की राजनीति करनेवाले ज्यादातर बहुजनवादी सामाजिक संगठनों का भी कमोवेश यही स्थिति दिखती हैं जो नारा तो बहुजन एकता की देते हैं परंतु उनके बैनरों और दिलों से मंडल साहब गायब हीं नजर आते हैं जिसकी वजह से इन संगठनों से भी ज्यादातर लोगों का मोह भंग होता जा रहा है।

ये थी मंडल साहब द्वारा सुझाये गए कुछ प्रमुख उपाय जिसे अगर मूर्त रूप में मान लिए जाएं तो इस देश से सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विषमतायें महज कुछ हीं वर्षों में खत्म हो जाएगी-

1. पिछड़ों को सरकारी सेवाओं में 27% आरक्षण।
2. प्रोन्नति में पिछड़ों को आरक्षण।
3. पिछड़ों का कोटा न भरने पर तीन साल तक खाली रखने की संस्तुति।
4. SC/ST की तरह ही आयु सीमा में छूट देना।
5. SC/ST की तरह ही पदों के प्रत्येक वर्ग के लिए सम्बन्धित पदाधिकारियों द्वारा रोस्टर प्रणाली अपनाने का प्रावधान।
6. वित्तीय सहायता प्राप्त निजी क्षेत्र में पिछ्डों का आरक्षण बाध्यकारी बनाने की सिफारिश।
7. कालेज, विश्वविद्यालयों में आरक्षण योजना लागू करने की सिफारिश।
8. पिछड़े वर्ग को फ़ीस राहत, वजीफा, छात्रावास, मुफ्त भोजन, किताब, कपड़ा उपलब्ध कराने की सिफारिश।
9. वैज्ञानिक, तकनीकी, व्यवसायिक संस्थानों में पिछडों को 27% आरक्षण देने की सिफारिश।
10. पिछड़े वर्ग के छात्रो को विशेष कोचिंग का इंतजाम करने की सिफारिश।
11. पिछड़े वर्ग के भूमिहीन मजदूरों को भूमि देने की सिफारिश।
12. पिछड़ों की तरक्की के लिए पिछड़ा वर्ग विकास निगम बनाने की सिफारिश।
13. राज्य व केंद्र स्तर पर पिछड़ा वर्ग का अलग मंत्रालय बनाने की सिफारिश।
14. पिछड़ा वर्ग आयोग बनाने की सिफारिश।

इन सिफारिशों को एक बार फिर इंदिरा गाँधी एवं राजीव गाँधी ने लागू नहीं किया।

आज शोषण की पराकाष्ठा से गुजर रहे बहुसंख्यक वर्ग अगर इस वक्त एक साथ मिलकर कार्य नहीं किये तो जल्द हीं इस देश में सम्पूर्ण मनुवाद लागू हो जाएगा और ये समाज दासता की जंजीरों में जकड़ दिए जाएंगे।

इसलिए 85% लोगों के सच्चे नायक को आज उनके 102वीं वर्षगांठ पर पुनः नमन करते हुए कसम खानी चाहिए कि वो अपने सभी आपसी मतभेदों को आपस में सुलझाएंगे और संगठित होकर रहे।

आप लोगों से ये भी निवेदन है कि अपने इस नायक के लिए आज अपने आपको पिछड़ा वर्ग का प्रधानमंत्री बताने वाले साहब जी से इस वर्ष का “भारतरत्न” उनको देने, 25 अगस्त और 13 अप्रैल को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने और 2021 में जातिगत जनगणना करवाने की मांग करें।

जय भारत-जय मंडल कमीशन-जय संविधान!

 

डाॅ. रविशंकर कुमार चौधरी,                  असिस्टेंट प्रोफेसर, इतिहास विभाग, टी. एन. बी. काॅलेज, भागलपुर, बिहार