Poem। कविता/ मेरा स्वप्न मुझसे कहता है/ शिखा कुमारी

मेरा स्वप्न मुझसे कहता है,
मैं केवल स्वप्न नहीं, नई रीत हूँ,
तुम्हारे धड़कन का गीत हूँ,
अंदर स्वतंत्रता की ज्वाला हूँ,
तुम्हारे हिस्से का प्याला हूँ,
मैं केवल स्वप्न नहीं, नई रीत हूँ,
तुम्हारे धड़कन का गीत हूँ।

मेरा स्वप्न मुझसे कहता है,
मैं तुम्हारे पिता की नाज हूँ,
तुम्हारे माँ की दुआ हूँ,
प्यारी बहन की हँसी हूँ,
नटखट भाई का बचपन हूँ,
तुम्हारे सर का ताज हूँ,
मैं केवल स्वप्न नहीं, नई रीत हूँ,
तुम्हारे धड़कन का गीत हूँ।

मेरा स्वप्न मुझसे कहता है,
मैं आरंभ हूँ, तुम्हारे प्रचण्ड ‘तेज’ की,
आवाज हूँ, बेबश किसान की,
शिक्षा हूँ, लाचार बच्चे की,
पुकार हूँ, गरीब महिला के चरित्र की,
फर्ज हूँ, निःस्वार्थ प्रकृति प्रेम की,
मैं केवल स्वप्न नहीं, नई रीत हूँ,
तुम्हारे धड़कन का गीत हूँ।

मेरा स्वप्न मुझसे कहता है,
मैं सागर हूँ, तुम्हारे उमंग की,
धुप हूँ, तुम्हारे मन की
तपस्या हूँ, तुम्हारे कण की,
हिस्सा हूँ, तुम्हारे विचारों की,
मैं केवल स्वप्न नहीं, नई रीत हूँ
तुम्हारे धड़कन का गीत हूँ।

मेरा स्वप्न मुझसे कहता है,
मैं समानता हूँ, समाज की,
रोटी हूँ, भूखे इंसान की,
नूर हूँ, तुम्हारे चेहरे की
अधिकार हूँ, मुस्कान की,
हकीकत हूँ, तुम्हारे कल्पनाओं की,
मैं केवल स्वप्न नहीं, नई रीत हूँ,
तुम्हारे धड़कन का गीत हूँ।
-शिखा कुमारी, सिंघेश्वर, मधेपुरा, बिहार