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Hindi विश्व हिंदी दिवस की बधाई एवं शुभकामनाएं।

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विश्व हिंदी दिवस

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प्रस्ताव-६ : सातवां विश्व हिन्दी सम्मेलन यह प्रस्ताव करता है कि किसी एक विषय की ओर संपूर्ण विश्व का ध्यान समान रूप से आकृष्ट करने के लिए जिस प्रकार ‘विश्व बाल दिवस’, ‘विश्व महिला दिवस’, ‘विश्व साक्षरता दिवस’, ‘विश्व नाट्य दिवस’ आदि मनाए जाते हैं, उसों प्रकार सम्पूर्ण विश्व का ध्यान हिन्दी की ओर आकृष्ट करने के लिए एक ‘विश्व हिन्दी दिवस’ का निर्धारण किया जाए।

चूंकि विश्व भाषा की ओर अग्रसर हिन्दी के प्रसार विस्तार के लिए प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था। अतः उस ऐतिहासिक तिथि, अर्थात 10 जनवरी को ही हम विश्व हिन्दी दिवस की तिथि के रूप में स्वीकार करें और प्रतिवर्ष 10 जनवरी को सम्पूर्ण विश्व हिन्दी दिवस आयोजित किया जाए।

‘विश्व हिन्दी सम्मेलन’ का आयोजन चूकि भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के सहयोग से ही होता है। अत: विश्व हिन्दी दिवस समारोह के आयोजन का भार भी भारत सरकार के विदेश मंत्रालय को ही सौंपा जाए। चूंकि विश्व के सभी देशों में भारतीय दूतावास, उच्चायोग और काउन्सलेट भारत के विदेश मंत्रालय के ही अंतर्गत हैं, अतः उनके माध्यम से विश्व हिन्दी दिवस का आयोजन अत्यंत सुविधाजनक एवं लाभदायक होगा। परिस्थितियों के अनुसार आयोजन एक दिवसीय या बहुदिवसीय हो सकता है। इस अवसर पर भारत के प्रमुख हिन्दी विद्वानों, साहित्यकारों, रंगकर्मियों, कवियों एवं हिन्दी-प्रसार में संलग्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जाए तथा देश के हिन्दी प्रेमियों की सहभागिता सुनिश्चित की जाए। इस आयोजन में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।

निश्चित रूप से ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के माध्यम से हिन्दी अपने अंतरराष्ट्रीय स्वरूप का प्रक्षेपण कर सबका स्नेह-सम्मान प्राप्त कर सकेंगी।

प्रस्तावक- प्रो शैलेन्द्रनाथ श्रीवास्तव। अनुमोदक- डॉ. श्रीभगवान सिंह

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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