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बुजुर्गों का सम्मान, हमारा नैतिक कर्तव्य/ मारूति नंदन मिश्र, खगड़िया, बिहार

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बरिष्ठ नागरिक दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को परिवार और समाज के बड़े- बुजुर्गों के आदर और देखभाल के लिए प्रेरित किया जाना होता है। वर्तमान समाज में बुजुर्गों के मान-सम्मान में कमी आई है, वह हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों के अवमूल्यन को परिलक्षित करती है।

भारतीय संस्कृति में बड़ों का सम्मान और आदर करना आदर्श संस्कार रहा है, लेकिन उपभोक्तावाद, भौतिकवाद और पाश्चात्य संस्कृति को आत्मसात करने में हम इतने मशगूल हैं कि हमें परिवार के बुजुर्गों की फिक्र ही नहीं है।

परिवार में बुजुर्गों का रहना अतिआवश्यक है, कहा भी गया है कि बुजुर्ग परिवार की रीढ़ की हड्डी होती है, परिवार के शान होते हैं। परिवार में इन्हें प्यार और सम्मान मिलना चाहिए।
वर्तमान समय में परिवार के मूल स्वरूपों में बदलाव हुआ है, संयुक्त परिवार एकल परिवार में सिमट कर रह गया है। एकल परिवार बुजुर्गों के प्यार दुलार तथा सामाजिक संस्कारों से दूर होती जा रही है। इस व्यवस्था ने बुजुर्गों को एकाकी जीवन जीने को विवश कर दिया है। बुजुर्ग जिस सम्मान के हकदार हैं, उन्हें वो सम्मान नहीं मिल पा रहा है। अपने प्यार से रिश्तों को सींचने वाले इन बुजुगों को भी बच्चों से प्यार व सम्मान चाहिए अपमान व तिरस्कार नहीं। अपने बच्चों की खातिर अपने जीवन में कई कष्ट झेल चुके इन बुजुर्गों को अब अपनों के प्यार की जरूरत होती है।

प्रायः नये संबंधों के साथ पुराने संबंधों में स्थिलता आ जाती है। यह एक स्वभाविक प्रक्रिया है। लेकिन हमें यथासंभव पुराने संबंधों को बचाने की कोशिश करनी चाहिए। खासकर आजकल के युवाओं को यह सोचना चाहिए कि जैसे उनके लिए उनकी दोस्ती-यारी और नातेदारी प्रिय है, वैसे ही बुजुर्गों के लिए उनके संबंधों का महत्व है। बुजुर्गों से हमें परिवार और समाज से जुड़ी कई पुरानी कहानियां सुनने को मिलती है। जिससे हमलोगों को ज्ञान भी मिलता है। बुजुर्गों के आशीर्वाद से हमारा विकास होता है। इनके चरण स्पर्श से विनम्रता और मन को शांति मिलती है। इनकी सेवा करने वालों की आयु, विद्या, यश और बल में वृद्धि होती हैं।

बुजुर्ग अवस्था, मानव जीवन की संवेदनशील अवस्था होती है। आखिर हमें भी कभी उम्र की उस दहलीज पर कदम रखना है, लिहाजा इस दर्द को हमें समझना होगा। बढ़ती उम्र के साथ, जब तमाम तरह के रोगों से शरीर जीर्ण होने लगता है तथा शारीरिक और मानसिक थकान जीवनशैली पर हावी हो जाती है। परिजनों को उनके प्रति सहयोग और आदर की भावना रखनी चाहिए। बुजुर्गों की भावनाओं एवं संवेदनाओं का सम्मान करना हमारा दायित्व और नैतिक कर्तव्य है।

मारूति नंदन मिश्र
नयागांव, परबत्ता, खगड़िया (बिहार)

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