Search
Close this search box.

BNMU डाॅ. सीताराम शर्मा सेवानिवृत्त

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

             डाॅ. सीताराम शर्मा सेवानिवृत्त
——————————————————
विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के अध्यक्ष डॉ. सीताराम शर्मा 30 अप्रैल 2020 को सेवानिवृत्त हो गए। इस उपलक्ष्य में कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय ने  उन्हें अंगवस्त्रम् एवं पुस्तक भेंट कर सम्मानित किया। कुलपति ने कहा कि शिक्षक कभी भी सेवानिवृत नहीं होते हैं। इसलिए वे विभाग से जुड़े रहें और शैक्षणिक कार्यों में विश्वविद्यालय का सहयोग करें।

इस अवसर पर कुलपति के अलावा कुलसचिव डाॅ. कपिलदेव प्रसाद, जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर, इतिहास विभाग के अध्यक्ष डाॅ. भावानंद झा, बीएनमुस्टा के महासचिव डाॅ. नरेश  कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. सिद्धेश्वर काश्यप, कुलपति के निजी सचिव शंभू नारायण यादव आदि ने डाॅ. शर्मा के सक्रिय दीर्घायु जीवन की मंगलकामनाएं कीं।

 

डाॅ. शर्मा ने कुलपति सहित सभी पदाधिकारियों, शिक्षकों एवं कर्मचारियों के प्रति आभार व्यक्त किया और सभी विद्यार्थियों को शुभकामनाएँ दीं। उन्होंने  सेवानिवृत्ति  के पश्चात्  भी वर्गाध्यापन की प्रतिबद्धता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हमें  श्रद्धा एवं विश्वास के साथ निरंतर कर्तव्य पथ पर अग्रसर रहना चाहिए। मेहनत ही सर्वोपरि है। जो मेहनत करेगा, वह अवश्य आगे बढ़ेगा।

 

तत्काल विभाग के शिक्षक डाॅ. सिद्धेश्वर काश्यप को विभाग के दैनिक कार्यों के संपादन का प्रभार दिया गया है। डाॅ. काश्यप और विभाग के अन्य कर्मियों एवं विद्यार्थियों ने विभाग की शैक्षणिक प्रगति के लिए डाॅ. शर्मा के योगदान की सराहना की। मालूम हो कि डाॅ. शर्मा के कार्यकाल में कई सेमिनार एवं व्याख्यान आयोजित किए गए।

 

 

डाॅ. शर्मा के अध्यक्षीय कार्यकाल में हिंदी विभाग में पीएटी-2019 में सफल विद्यार्थियों का रिसर्च मेथडलाॅजी कोर्स में नामांकन हुआ। इन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा प्ररस्तावित ‘डिप्लोमा इन जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन’ कोर्स के पाठ्यक्रम निर्माण में भी महती भूमिका निभाई।

 

ज्ञातव्य हो कि डॉ. शर्मा का जन्म अप्रैल 1955 में मधेपुरा जिलान्तर्गत बिहारीगंज प्रखंड के तुलसीया ग्राम में एक कृषक परिवार में हुआ। इन्होंने गाँव के ही बुनियादी विद्यालय से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। आगे इन्होंने ठाकुर प्रसाद, मधेपुरा से इंटरमीडिएट एवं स्नातक और ललित नारायण मिथिला  विश्वविद्यालय, दरभंगा से स्नातकोत्तर (हिंदी) की डिग्री प्राप्ति की।

डाॅ. शर्मा ने 1981-82 में हंसी मंडल महाविद्यालय, बिहारीगंज, मधेपुरा में सहायक प्राध्यापक के रूप में शिक्षण की शुरूआत की। पुनः, इनकी नियुक्ति 23 सितम्बर,1982 को पार्वती सांइस कालेज, मधेपुरा में सहायक प्राध्यापक (असिस्टेंट प्रोफेसर) के रूप में हुई। पुनः वे सह-प्राध्यापक (एसोसिएट प्रोफेसर) के पद पर प्रोन्नति हुए। इन्होंने महाविद्यालय में शिक्षक संघ के कोषाध्यक्ष सहित कई अन्य दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वहन किया। कई वर्षों तक इन्होंने ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में भी अध्ययापन किया है। इन्होंने वर्ष  2006 में ‘मध्यकालीन हिन्दी साहित्य और भारतीय संस्कृति’ विषय पर पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की।

 

अंततः 9 जुलाई, 2018 को  विश्वविद्यालय हिंदी  विभागाध्यक्ष के अध्यक्ष बने। इनकी पहचान एक मृदुभाषी एवं कर्तव्यपरायण शिक्षक  के रूप में है। इनके निर्देशन में कई विद्यार्थियों को पी-एच. डी. की उपाधि मिली है। डाॅ. शर्मा का आचार एवं व्यवहार विद्यार्थियों के साथ-साथ शिक्षकों के लिए भी प्रेरणादायी है।

@ डॉ. सुधांशु शेखर
जनसंपर्क पदाधिकारी, बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा (बिहार)

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

[the_ad id="32069"]

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।