ICPR स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत 10वां संवाद आयोजित* *भारतीय दर्शन में भारतीय क्या है विषय पर संवाद एवं परिचर्चा

*स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत 10वां संवाद आयोजित*

*भारतीय दर्शन में भारतीय क्या है विषय पर संवाद एवं परिचर्चा*

भारतीय एवं पाश्चात्य दोनों ही दर्शनों में प्रमाणमीमांसा, तत्त्वमीमांसा एवं आचारमीमांसा विषयक विचार प्राप्त होते हैं। इस रूप में दोनों एक जैसे लगते हैं।

कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जैसे विज्ञान भारतीय एवं पाश्चात्य नहीं होता है, वैसे ही दर्शन भी भारतीय एवं पाश्चात्य नहीं होता है। लेकिन यदि हम मूल विशेषताओं को देखें, तो भारतीय एवं पाश्चात्य दोनों दर्शन को एक जैसा नहीं मान सकते हैं।

यह बात भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली के सदस्य-सचिव प्रो. (डॉ.) सच्चिदानंद मिश्र ने कही।

वे बुधवार को भारतीय दर्शन में भारतीय क्या है विषयक संवाद में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन दर्शनशास्त्र विभाग, बीएनएमयू, मधेपुरा के तत्वावधान में आईसीपीआर, नई दिल्ली की स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत किया गया।

उन्होंने कहा कि भारत के दार्शनिक एवं भारतीय दार्शनिक में अंतर है। किसी व्यक्ति के सिर्फ भारत में जन्म लेने मात्र से उनका दर्शन भारतीय दर्शन नहीं हो जाता है।

वस्तुत: भारतीय दर्शन को भारतीय बनाने वाली मुख्यता दो विशेषताएं हैं। एक यहां पर दर्शन समग्रता में विकसित होता है और दार्शनिक ज्ञान उद्देश्यपूर्ण है। लेकिन पश्चिमी दर्शन में ऐसी बात नहीं है।

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में ज्ञान केवल बौद्धिक विलास नहीं है, बल्कि यह मोक्ष या निर्वाण का साधन है। इसके विपरीत पश्चिमी दर्शन में दर्शन का कोई उद्देश्य नहीं है।

उन्होंने कहा कि भारत में व्यक्ति दर्शन के केन्द्र में नहीं है, अपितु विचार केन्द्रित है और यहां विचार के अनुरूप आचरण पर जोर दिया गया है।

भारत में दर्शन सम्प्रदाय के रूप में विकसित होते हैं। इस कारण दर्शनों में गम्भीरता रहती है और यह अधिक विकसित भी होता है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि दर्शनशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) के पूर्व अध्यक्ष सह अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) जटाशंकर ने कहा कि सत्य को समग्रता में देखता है।

इसमें लौकिक एवं पारलौकिक दोनों सत्यों की चर्चा है और प्रेय एवं श्रेय दोनों की प्राप्ति पर बल दिया गया है। यहां विभिन्न दर्शन भी एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि अनुपुरक हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना के पूर्व अध्यक्ष सह आईसीपीआर, नई दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) रमेशचंद्र सिन्हा ने कहा कि भारतीय दर्शन मात्र तार्किकता पर आधारित नहीं है, बल्कि यह आस्था एवं धर्म प्रधान है।

अतिथियों का स्वागत एवं कार्यक्रम का संचालन दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना की पूर्व अध्यक्ष सह दर्शन परिषद्, बिहार की अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) पूनम सिंह ने किया।

धन्यवाद ज्ञापन दर्शनशास्त्र विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु शेखर ने की।

कार्यक्रम में विशेष रूप से टिप्पणी एवं प्रश्नोत्तर सत्र का आयोजन भी किया गया। इसमें स्वयं प्रिया, अरविंद, प्रताप निर्भय सिंह, अशोक, नोजीउल, डॉ. राजीव कुमार आदि ने प्रश्न पुछकर संवाद को जीवंत बनाया।
तकनीकी पक्ष शोधार्थी द्वय सौरभ कुमार चौहान एवं सारंग तनय ने संभाला।

इस अवसर पर पूर्व कुलपति प्रो. कुसुम कुमारी, प्रो. आशा मुदगल, डॉ. नीरज प्रकाश, निशा, अभिनंदन कुमार, निरंजन कुमार, आभा मिश्रा, अभिनंदन कुमार, अक्षय सिद्धांत, अहमद अर्चना कुमारी, अली अहमद, अशोक कुमार, अवनीश, शंकर, विनोदानंदन ठाकुर, देवेंद्र कुमार, दिलीप कुमार दिल, माधव कुमार, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. अरुण कुमार सिन्हा, डॉ. प्रमोद कुमार सिंह, प्रतिभा झा, डॉ. राजीव, रंजन झा, यशवंत कुमार झा, गौतम कुमार, गौरव कुमार सिंह, संजय दुबे, आनंद, सागर प्रकाश कुमार, हिना, डॉ. हेमकांत पंडित, डॉ. हिमांशु शेखर सिंह, रंजन कुमार, जयप्रकाश कुमार, जूही कुमारी, ज्योति कुमारी, मीना कुमार, केशव कुमार, वैष्णव, आरती कुमारी, ललित कुमार, मनीष पाठक, मनोज कुमार, राजकिशोर सिंह, नवीन कुमार आदि उपस्थित थे।

*जानेमाने दार्शनिक हैं डॉ. सच्चिदानंद मिश्र*
डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि संवाद के मुख्य वक्ता भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली के सदस्य-सचिव प्रो. (डॉ.) सच्चिदानंद मिश्र का नाम देश के जानेमाने दार्शनिकों में शूमार हैं। इन्हें 2009 के लिए महर्षि बादरायण व्यास सम्मान (राष्ट्रपति पुरस्कार) और 2012 में सोरबोन नोबेल विश्वविद्यालय, पेरिस में प्रतिष्ठित संस्कृत चेयर के लिए आईसीसीआर द्वारा चुने जा चुके हैं।

उन्होंने बताया कि डॉ. मिश्रा वर्ष 2010 से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में दर्शनशास्त्र एवं धर्म के प्रोफेसर हैं। इन्होंने भारतीय तर्कशास्त्र एवं ज्ञानमीमांसा, नव्य-न्याय एवं अद्वैत वेदांत, शुद्धा-द्वैत वेदांत, कश्मीरी शैव दर्शन एवं भारतीय सौंदर्य-शास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

इन्होंने लगभग एक दर्जन पुस्तकों का लेखन एवं संपादन किया है।‌ विभिन्न पत्रिकाओं में इनके 50 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हैं। इन्होंने दर्जनों सेमिनार, सम्मेलनों, कार्यशालाओं एवं विशेष व्याख्यान कार्यक्रमों में विशेषज्ञ वक्ता के रूप में भाग लिया है।

*हो चुके हैं नौ संवाद*
आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि बीएनएमयू, मधेपुरा में अप्रैल 2022 से स्टडी सर्किल कार्यक्रम की शुरुआत हुई है। इसके अंतर्गत सांस्कृतिक स्वराज, गीता का दर्शन, मानवता के लिए योग, भारतीय दर्शन में जीवन-प्रबंधन, प्रौद्योगिकी एवं समाज, समाज- परिवर्तन का दर्शन, गांधीवाद : सिद्धांत एवं प्रयोग, युवाओं के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का संदेश एवं वैदिक दर्शन का मानवतावादी दृष्टिकोण विषयक संवाद हो चुके हैं। इन संवादों के वक्ता क्रमशः प्रो. रमेशचन्द्र सिन्हा (नई दिल्ली), प्रो. जटाशंकर, (प्रयागराज), प्रो. एन. पी. तिवारी (पटना), प्रो. इंदु पांडेय खंडुरी (गढ़वाल), डॉ. आलोक टंडन (हरदोई), प्रो. पूनम सिंह (पटना), डॉ. मनोज कुमार (वर्धा), माधव तुरूमेला (लंदन) एवं डॉ. गोविन्द शरण उपाध्याय (नेपाल) थे। इसी कड़ी में दसवां (इस वर्ष का पहला) संवाद बुधवार को सुनिश्चित है।

*मार्च 2023 तक चलेगा कार्यक्रम*
उन्होंने बताया कि आगे स्टडी सर्किल के अंतर्गत 28 फरवरी, 2023 को सुप्रसिद्ध दार्शनिक एवं पूर्व प्रति कुलपति प्रो. (डॉ.) सभाजीत मिश्र (गोरखपुर) का और मार्च में सुप्रसिद्ध लेखिका एवं पूर्व कुलपति प्रो. (डॉ.) नीलिमा सिन्हा (बोधगया) का व्याख्यान होगा। विषयों का निर्धारण दोनों वक्ताओं की सहमति से किया जाएगा।