Search
Close this search box.

याद किए गए कमलेश्वरी प्रसाद यादव

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

याद किए गए कमलेश्वरी प्रसाद यादव

भारतीय संविधान हमारे लिए श्रीमद्भगवद्गीता, कुरान एवं बाइबिल है। हमारा यह सौभाग्य है कि इस धर्मग्रंथ की रचना में हमारे क्षेत्र के मनीषी कमलेश्वरी प्रसाद यादव ने भी इसमें बड़ी भूमिका निभाई है।

यह बात कुलपति प्रोफेसर डाॅ. आर. के. पी. रमण ने कही। वे कमलेश्वरी प्रसाद यादव की जयंती पर आयोजित समारोह में उद्घाटन कर्ता के रूप में बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि यदि कमलेश्वरी बाबू ने इस महाविद्यालय की स्थापना नहीं की होती, तो शायद वे पढ़-लिख भी नहीं पाते। उन्होंने इसी महाविद्यालय से इंटरमीडिएट किया और सौभाग्य से आज विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य कर रहे हैं।

उन्होंने शिक्षकों से अपील की कि एक भी विद्यार्थी कक्षा में आएं, तो भी कक्षाओं का संचालन करें। विद्यार्थियों को सीख दी कि पढ़ाई एवं परीक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दें। हमेशा याद रखें कि कक्षा एवं किताब का कोई विकल्प नहीं है।

प्रति कुलपति प्रोफेसर डाॅ. आभा सिंह ने कहा कमलेश्वरी प्रसाद एक समर्पित राजनेता एवं महान शिक्षाविद् थे। उन्होंने काफी कठिनाइयाँ झेलकर इस सुदूर क्षेत्र में महाविद्यालय की स्थापना की और यहाँ शिक्षा की ज्योति जलाई। उनके कारण हमें बहुत कुछ हासिल हुआ।‌

उन्होंने कहा कि हमारे पुरखों ने तत्कालीन परिस्थितियों का सामना करते हुए समाज एवं राष्ट्र को सर्वोच्च योगदान दिया। लेकिन सवाल यह है कि हम अब क्या कर रहे हैं? हम समाज एवं राष्ट्र में क्या योगदान दे‌ रहे हैं?

बिहिरीगंज के विधायक निरंजन मेहता ने कहा कि शिक्षा ही वह अस्त्र है, जिससे
समाज में बदलाव आता है। इससे जीवन के बंद दरवाजे खुल सकते हैं।

उन्होंने कहा कि शिक्षकों की कमी को दूर किया जाए। सत्र नियमित हो और नियमित कक्षाओं का संचालन सुनिश्चित किया जाए।

उन्होंने कहा कि बिहार सरकार द्वारा शिक्षा में सुधार हेतु काफी सराहनीय कार्य किया जा रहा है और कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। उन्होंने महिविद्यालय में एक हाल बनाने की घोषणा की।

विधान पार्षद डॉ. अजय कुमार सिंह ने कहा
कि ऐसे समय में जब सारे दिए बुझा दिए गए हैं, तब कमलेश्वरी प्रसाद यादव जैसे दीपक से हम सबों को रौशनी मिल रही है। उन्होंने जो बड़ी लकीर खींची, उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता है। उनके मन में कोसी को पिछड़ेपन से मुक्त करने‌ की कसक थी

उन्होंने कहा कि बिहार का इतिहास काफी गौरवशाली है। इस धरती ने दुनिया को प्रेम एवं शांति संदेश दिया है। यहीं से गौतम बुद्ध और गाँधी ने दुनिया को प्रेरित किया। आर्यभट्ट ने शून्य की खोज की। दिनकर, रेणु एवं राजकमल चौधरी ने कालजयी साहित्य की रचना की।

उन्होंने कहा कि बिहार कि शिक्षा व्यवस्था सड़ चुकी है। यदि शिक्षा की स्थिति नहीं बदली, तो बिहार में बदलाव एवं विकास नहीं हो सकेगा। अतः शिक्षा को बचाने के लिए मनीषी की जरूरत है।

मुख्य वार्ड पार्षद सिद्धी सर्जना ने कहा कि युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा देने की जरूरत है।

कुलसचिव डॉ. मिहिर कुमार ठाकुर ने कहा कि मधेपुरा के लिए जनवरी का प्रथम सप्ताह काफी महत्वपूर्ण है। दो जनवरी को डॉ. महावीर प्रसाद यादव, तीन को डॉ. रमेन्द्र कुमार यादव रवि और चार को कमलेश्वरी प्रसाद यादव की जयंती है।

कमलेश्वरी प्रसाद के पौत्र डॉ. आनंद कुमार ने कहा कि कमलेश्वरी बाबू राजेन्द्र प्रसाद एवं अनुग्रह नारायण के करीबी थे। वे एक-एक व्यक्ति को पढ़ने के लिए प्रेरित करते थे।

कुलानुशासक डॉ. विश्वनाथ विवेका ने कहा कि कमलेश्वरी बाबू पर पुस्तक प्रकाशित किया जाए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य डॉ. जवाहर पासवान ने कहा कि कुलपति ने कहा कि यह गौरव की बात है कि कमलेश्वरी यादव राजेंद्र प्रसाद जवाहरलाल नेहरु अंबेडकर के साथ संविधान सभा के सदस्य थे। युवाओं को इनके जीवन से प्रेरणा लेने की जरूरत है।

इस अवसर पर कमलेश्वरी प्रसाद के सुपुत्र सह आजीवन सीनेट सदस्य अभय कुमार, उप कुलसचिव (स्थापना) डाॅ. सुधांशु शेखर, कुलपति के निजी सहायक शंभू नारायण यादव, देव किशोर, डॉ. अतिरथ कुमार, महेंद्र मण्डल, सुशांत सिंह, डॉ. अली अहमद मंसूरी, डॉ.शिवा शर्मा, डॉ. विजय कुमार पटेल, डॉ. त्रिदेव निराला , प्रतीक कुमार,डॉ. चंद्रशेखर आज़ाद, डॉ. अमरेंद्र कुमार, पंकज शर्मा, डॉ. दीपक कुमार, डॉ. कमल कंचन, डॉ. अमित कुमार, डॉ. नज़राना, डॉ. राघवेंद्र, डॉ. नीरज कुमार निराला, देवाशीष देव, अभिषेक कुमार, इंदुभूषण,महेश राम, राजीव, राजेश, सिंटू आदि उपस्थित थे।

इसके पूर्व कार्यक्रम की शुरूआत कमलेश्वरी प्रसाद की प्रतिमा एवं समाधी स्थल पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि के साथ हुई। कमलेश्वरी बाबू के परिजनों सहित सभी अतिथियों का अंगवस्त्रम एवं पुष्पगुच्छ से स्वागत किया गया।

संचालन पृथ्वीराज यदुवंशी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन अर्थपाल डॉ. सज्जाद अख्तर ने की। रौशन कुमार, बीरेन्द्र, अजय आदि ने गीत-संगीत प्रस्तुत किया।

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

[the_ad id="32069"]

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।