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Covid-19। कोरोना से जंग, मंजूषा के संग @ प्रेरणास्रोत बनी सविता पाठक/ मारूति नंदन मिश्र

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भारतीय कला और संस्कृति के क्षेत्र में अंग प्रदेश की मंजूषा कला प्रसिद्ध है। यह अपने विभिन्न स्वरूपों में सदा जगमगाती रही है। इस जगमगाहट में नारी शक्ति की महती भूमिका रही है। समय के साथ-साथ नारी शक्ति और सशक्त होती जा रही हैं और कला-संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।

अंग प्रदेश की गौरवशाली मंजूषा कला को नया आयाम देने में भी कई प्रतिभाशाली महिलाएँ समाज में आगे आ रही हैं। अंग के इतिहास की अमिट कला मंजूषा कला के प्रसार के लिए भागलपुर जिलान्तर्गत बरारी निवासी मंजूषा कलाकार सविता पाठक भी तन-मन से समर्पित हैं।

मंजूषा कला को नई पहचान दिलाने वाले मंजूषा गुरु मनोज पंडित से प्रशिक्षण लेकर सविता पाठक ने अंग संस्कृति में रची-बसी लोक कथा बिहुला विषहरी को मंजूषा के माध्यम से जीवंत बनाने का प्रयास कर रही हैं। उनके द्वारा रचित कई पेंटिंगों को खूब सराहा जा रहा है। अंग क्षेत्र की अमूल्य कला-संस्कृति के धरोहर को आत्मसम्मान के साथ आगे बढ़ा रही सविता पाठक आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार कर रही हैं। आपदा के समय को अवसर में बदलकर मंजूषा कला को कोरोना से जंग लड़ने के ढ़ाल बना रही हैं।ये दर्जनों महिलाओं को प्रशिक्षण भी दे रही है, जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। विश्वव्यापी कोरोना महामारी से बचने के लिए मास्क पहनना, हाथ धोना और एक-दूसरे से दूरी बनाए रखना जरूरी है। वर्तमान समय में मास्क की बढ़ती मांग को मद्देनजर रखते हुए सविता पाठक ने मास्क बनाकर उस पर मंजूषा कला की पेंटिंग की शुरुआत की। इनके द्वारा निर्मित मास्क आज चर्चा में है और लोगों को खूब पसंद आ रहा है। लोग मास्क को खरीदकर कलाकार का हौसला बढ़ा रहे हैं। इस कार्य में इनके पति संस्कृत शिक्षक श्री पुण्डरीकाक्ष पाठक का पूर्ण सहयोग रहता है। आज इनकी मंजूषा कला से निर्मित मास्क भागलपुर सहित देश-दुनिया के कोने- कोने में पहुँच रहा है। मास्क पर पक्षियों, कछुए, मछली, मोर, सूर्य, चंद्रमा, फूल, कलश, तीर-धनुष आदि की आकृतियां आकर्षक ढंग से उकेरती हैं। मंजूषा गुरु  मनोज पंडित जी के सान्निध्य में इस कला को सीख कर समाज की कई महिलाएं तथा लड़के-लड़कियाँ आत्मनिर्भर बन रहे हैं।
मंजूषा कला में मुख्यतः तीन रंगों का ही प्रयोग होता है- गुलाबी, हरा और पीला। यह कला रेखाचित्र पर आधारित चित्रकला है। मंजूषा कला में मुख्य बॉर्डर– बेलपत्र, लहरिया, त्रिभुज, मोखा और सर्प की लड़ी होती है।

आज के समय में सविता पाठक की कामयाबी दूसरी महिलाओं के लिए अनुकरणीय हैं।

रिपोर्ट : मारूति नंदन मिश्र, नयागाँव, खगड़िया, बिहार

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