NMM लंबे समय तक उपयोग के लिए पांडुलिपियों का संरक्षण जरूरी

*लंबे समय तक उपयोग के लिए पांडुलिपियों का संरक्षण जरूरी*

संरक्षण वह नीति है, जिसके द्वारा हम किसी जैव विविधता के संघटक को पूर्णता प्रदान कर अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित करते हैं। लंबे समय तक उपयोग में लाने के लिए पांडुलिपियों के संरक्षण की जरूरत पड़ती है।

यह बात ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के मुरारी कुमार झा ने कही। वे मंगलवार को तीस दिवसीय उच्चस्तरीय राष्ट्रीय कार्यशाला में व्याख्यान दे रहे थे। केंद्रीय पुस्तकालय, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में आयोजित हो रही यह कार्यशाला संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन योजना के तहत आयोजित हो रही है।

उन्होंने बताया कि विभिन्न कारकों से पांडुलिपियों को हानि पहुंचती है। वैसे कारकों में सूर्य की सीधी तेज किरण, लगातार तेज गर्मी, आंधी- तूफान, खुले स्थान में पड़े रहना, जलवायुगत परिस्थितियां एवं प्रतिकूल वातावरण से भी पांडुलिपियों को नुकसान होता है। पांडुलिपियों को त्रुटिपूर्ण ढंग से उठाना या पकड़ना और गलत तरीके से भंडारण करना भी उसकी उम्र को कम कर देता है। पांडुलिपियों को आग एवं जल से नुकसान होता है और पांडुलिपियों को दीमक, फुफुंद एवं अन्य कीड़े-मकोडों और चूहों से बचाना आवश्यक होता है। ये सभी संरक्षण के रोधात्मक उपाय हैं।

उन्होंने बताया कि भारत में पांडुलिपियों को संरक्षित करने हेतु प्राकृतिक रूप से उपचारात्मक विधि का उपयोग किया जाता है, जो आज भी सर्वोत्तम है।पांडुलिपियों को कीड़ों से बचाने के लिए नीम, हल्दी, चंदन, पुदिना, काला जीरा, करंच, लौंग, सिनुआर, तेजपात, आजवाइन, कपूर, काली मिर्च, अश्वगंधा आदि जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता था।

*बेहद लोकप्रिय रही है कैथी लिपि : विद्यानंद यादव*

दूसरे विशेषज्ञ वक्ता राजपुर (मधेपुरा) के विद्यानंद यादव ने प्रतिभागियों को कैथी लिपि का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया और इसके उद्भव, विकास एवं इसके संरक्षण की जरूरत पर प्रकाश डाला।

*जन लिपि थी कैथी*
उन्होंने बताया कि कैथी लगभग एक हजार वर्षों तक बिहार और पूरे उत्तर भारत की जन लिपि रही है। यह काफी सरल, अत्यंत लोकप्रिय एवं द्रुत गति से लिखी जाने वाली ऐतिहासिक लिपि है। इसका उपयोग मैथिली, अंगिका, भोजपुरी, मगही, उर्दू एवं हिंदी से संबंधित कई अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को लिखने के लिए किया जाता रहा है। आज भी इस लिपि में काफी दस्तावेज हैं।

*जीवन के हर क्षेत्र में प्रयुक्त होती थी कैथी लिपि*
उन्होंने कहा कि कैथी लिपि हमारे जीवन के हर क्षेत्र में प्रयुक्त होती थीं। इसमें प्रशासनिक आदेश, वाणिज्यिक लेनदेन, न्यायादेश, पत्राचार, व्यक्तिगत रिकॉर्ड एवं साहित्यिक रचनाओं की बहुलता है। लेकिन दुख की बात है कि हमारे बीच इसे जानने-समझने वालों का सर्वथा अभाव है। आज हमें कैथी के दस्तावेजों को पढ़ने के लिए विशेषज्ञों की जरूरत पड़ती है।

*पारंपरिक एवं आधुनिक दोनों विधियों की जानकारी जरुरी*
प्रथम सत्र के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय रसायनशास्त्र विभाग की प्रोफेसर एवं अधिषद्‌ सदस्य डॉ. नरेश कुमार ने कहा कि हमें पांडुलिपियों के संरक्षण की पारंपरिक विधियों के साथ-साथ आधुनिक वैज्ञानिक विधियों की भी जानकारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कार्यशाला विश्वविद्यालय के शैक्षणिक प्रगति एवं इसे नैक से बेहतर ग्रेड दिलाने में वरदान साबित होगी।

*वर्तमान पीढ़ी को कैथी लिपि का ज्ञान देना आवश्यक*
द्वितीय सत्र के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय अर्थशास्त्र विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर एवं विद्वत परिषद् की सदस्या प्रज्ञा प्रसाद ने कहा कि कैथी सल्तनत काल के पूर्व की शासकीय लिपि है। दुर्भाग्य से आज हमें इस लिपि से संबंधित क्रमबद्ध अध्ययन सामग्रियों का अभाव है। अतः आज वर्तमान पीढ़ी को कैथी लिपि का ज्ञान देना आवश्यक है।

इसके पूर्व दोनों विशेषज्ञ वक्ताओं को अंगवस्त्रम्, पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिचिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार, उप कुलसचिव (शै.) डॉ. सुधांशु शेखर, कोषाध्यक्ष सिड्डू कुमार, ओशिन विप्रा सागर, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. संजय कुमार परमार, सारंग तनय, दीपक कुमार, राधेश्याम सिंह, त्रिलोकनाथ झा, सौरभ कुमार चौहान, रवीन्द्र कुमार, ईश्वरचंद विद्यासागर, जयश्री कुमारी, प्रेमलता, शंकर कुमार सिंह, निधि, अरविंद विश्वास, अमोल यादव,‌ नताशा राज, रश्मि, ईशानी, मधु कुमारी, प्रियंका, ब्यूटी कुमारी, खुशबू, डेजी, लूसी कुमारी, श्वेता कुमारी, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. सोनम सिंह, नीरज कुमार सिंह, बालकृष्ण कुमार सिंह, जयप्रकाश भारती आदि उपस्थित थे।

*गुरुवार को होगा समापन समारोह*
उप कुलसचिव (शै.) डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि बुधवार को प्रथम सत्र में हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. उषा सिन्हा और द्वितीय सत्र में भूपेंद्र नारायण यादव मधेपुरी का व्याख्यान निर्धारित है। गुरुवार को कुलपति डॉ. आर. के. पी. रमण की अध्यक्षता में समापन समारोह सुनिश्चित है। इस अवसर पर जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के कुलपति डॉ. फारूक अली मुख्य अतिथि होंगे। प्रति कुलपति डॉ. आभा सिंह विशिष्ट अतिथि और वित्तीय परामर्शी नरेंद्र प्रसाद सिन्हा एवं कुलसचिव डॉ. मिहिर कुमार ठाकुर सम्मानित अतिथि होंगे।