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NMM प्रतिभागियों ने की चार धामों की अध्ययन-यात्रा

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*प्रतिभागियों ने की चार धामों की अध्ययन-यात्रा*

केंद्रीय पुस्तकालय, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के तत्वावधान में पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान पर आयोजित हो रहे तीस दिवसीय उच्चस्तरीय राष्ट्रीय कार्यशाला के अंतर्गत रविवार को प्रतिभागियों की एक टीम ने चार धामों की अध्ययन-यात्रा की।

इसके तहत प्रतिभागियों ने सहरसा जिले में अवस्थित मटेश्वर स्थान, कन्दाहा सूर्य मंदिर, उग्रतारा मंदिर एवं लक्ष्मीनाथ गोसाईं स्थान का अवलोकन किया।

*पाताल से निकला है मटेश्वर महादेव मंदिर*
उप कुलसचिव अकादमिक डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि टीम सर्वप्रथम सहरसा जिले के सिमरी बख्तियारपुर से 10 किमी पश्चिम में अवस्थित बलवाहाट-काठो गाँव में मटेश्वर महादेव मंदिर गई। ऐसी मान्यता है कि यह दुनिया का एक मात्र शिवलिंग जो की पाताल से निकला है। इसके चारों ओर छोटी सी गोलाई मे अनन्त गहराई है, जिसमें सालों भर जल भरा रहता है। इसका लेवेल गर्मी के महीने मे ऊपर रहता है ओर ठंडा के महीने में नीचे चला जाता है। ऐसा माना जाता है कि मुगल बादशाह औरंगज़ेब के शासनकाल में इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था, जिसका भग्नावशेष आज भी परिसर में मौजूद है। इसमें कुछ मूर्तियां और लोहे की किवाड़ है।

*14वीं सदी का है कान्दाहा सूर्य मंदिर*
डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि टीम ने सहरसा से लगभग 12 किमी की दूरी पर कान्दाहा ग्राम में प्राचीन सूर्य मंदिर का अवलोकन किया। यहां ग्रेनाइट स्लैब पर बनाई सात घोड़े रथ पर सवार सूर्य की शानदार मूर्ति है, जो राशियों में प्रथम मेष राशि के साथ है। ऐसी मान्यता है की बैसाख महीने में जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं, तो सूर्य की पहली किरण इसी सूर्य प्रतिमा और उनके रथ पर पड़ती है। यहां सूर्य की दोनों पत्नियां संज्ञा एवं छाया और अष्टभुजी गणेश भी विराजमान हैं। मंदिर (गर्भगृह) के द्वार पर, शिलालेख अंकित है। इसके अनुसार 14 वीं सदी में मिथिला पर शासन करने वाले कर्नाटक वंश के राजा नरसिंह देव की अवधि के दौरान इस सूर्य मंदिर का निर्माण किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि कालापहद नामक एक क्रूर मुगल सम्राट ने मंदिर को नुकसान पहुंचाया था।

*शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है उग्रतारा मंदिर*
डॉ. शेखर ने बताया कि टीम ने सहरसा स्टेशन के करीब 18 किलोमीटर दूर महिषी गांव स्थित शक्तिपीठ मां उग्रतारा मंदिर का अवलोकन किया। इस प्राचीन मंदिर में भगवती उग्रतारा की मूर्ति बहुत पुरानी है। दो छोटी मूर्तियां हैं, जिन्हें एकजटा एवं नील सरस्वती के रूप में पूजा की जाती है। यहां भी कई पुरातत्विक अवशेष इधर-उधर रखे हुए हैं।

*लक्ष्मीनाथ गोसाईं की है महिमा अपरंपार*
डॉ. शेखर ने बताया कि अंत में टीम ने बनगाँव-सहरसा से मात्र 8 किमी की दूरी पर स्थित परमहंस बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाईं बाबाजी (1793-1872) कुटी का अवलोकन किया। बनगाँव की प्राचीनता यहाँ प्राप्त अभिलेख से भी साबित होती है। यहां बाबाजी की कर्मस्थली प्राचीन कालीन उनके कर्म सिद्धि एवं साधना का साक्षात प्रमाण है। बाबाजी की कुटी अब एक विशाल मंदिर के रूप में विकसित हो गई है, जिसमें मूल प्रतिमा राधाकृष्ण की है। लोगों की मान्यता है कि बाबाजी की महिमा अपरंपार है।

इस अवसर पर केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार, उप कुलसचिव (शै.) डॉ. सुधांशु शेखर, शोधार्थी सारंग तनय, पृथ्वीराज यदुवंशी, सिड्डु कुमार, डॉ. राजीव रंजन, देवेन्द्र यादव, दीपक कुमार, डॉ. सोनम सिंह, नीरज कुमार सिंह, बालकृष्ण कुमार सिंह, जयप्रकाश भारती, त्रिलोकनाथ झा, सौरभ कुमार चौहान, ईश्वरचंद विद्यासागर, ब्यूटी कुमारी, जयश्री, खुशबू, डेजी, लूसी कुमारी, श्वेता कुमारी, इशानी, मधु कुमारी, प्रियंका, निधि, अरविंद विश्वास, अमोल यादव,‌ नताशा राज, रश्मि आदि उपस्थित थे।

*गुरुवार को होगा समापन समारोह*
उप कुलसचिव (शै.) डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन योजना के तहत आयोजित यह 18 मई से 16 जून तक आयोजित है। इसका समापन समारोह 16 जून को कुलपति डॉ. आर. के. पी. रमण की अध्यक्षता में सुनिश्चित है। इस अवसर पर जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के कुलपति डॉ. फारूक अली मुख्य अतिथि होंगे। प्रति कुलपति डॉ. आभा सिंह विशिष्ट अतिथि और वित्तीय परामर्शी नरेंद्र प्रसाद सिन्हा एवं कुलसचिव डॉ. मिहिर कुमार ठाकुर सम्मानित अतिथि होंगे।
उन्होंने बताया कि समापन के पूर्व अभी तीन दिनों तक और कक्षाओं का संचालन होगा। इनमें मुख्य रूप से सोमवार को टी. पी. कालेज, मधेपुरा में हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. वीणा कुमारी, मंगलवार को भूपेंद्र नारायण यादव मधेपुर और बुधवार को हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. उषा सिन्हा का व्याख्यान निर्धारित है।

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