NMM पांडुलिपियां को पूजने से अधिक उस पर शोध करने की जरूरत : डॉ. भवनाथ झा

*इतिहास का स्रोत हैं पांडुलिपियां : डॉ. भवनाथ झा*

*पांडुलिपियां को पूजने से अधिक उस पर शोध करने की जरूरत : डॉ. भवनाथ झा*

भारत में पांडुलिपियों के प्रति हमारी उच्च आध्यात्मिक भावना रही है। आम भारतीय पांडुलिपियों को देवमूर्ति का स्वरूप मानते हैं और उसके प्रति गहरी आस्था रखते हैं।आज भी लोगों घरों में जो पांडुलिपियां बची हुई हैं, लोग उसकी पूजा करते हैं। लेकिन वास्तव में पांडुलिपियां को पूजने से अधिक उस पर शोध करने की जरूरत है।

यह बात विशेषज्ञ वक्ता सह महावीर मंदिर, पटना से प्रकाशित पत्रिका धर्मायण के संपादक डॉ. भवनाथ झा (पटना) ने कही। वे ‘पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान’ पर आयोजित तीस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे। यह कार्यशाला राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के सौजन्य से केन्द्रीय पुस्तकालय, बीएनएमयू, मधेपुरा में आयोजित हो रही है।

*पाण्डुलिपियों को नष्ट होने से बचाना हमारा कर्तव्य*
उन्होंने कहा कि अधिकांश घरों में उनके पूर्वजों के द्वारा लिखी पाण्डुलिपियां रखी हुई नष्ट हो रही हैं। उन्हें नष्ट होने से बचाना और समाज के सामने लाना हमारा कर्तव्य है। आज हमारी जिम्मेदारी है कि यदि किन्हीं के घर में ऐसी पाण्डुलिपियां हैं, तो उनकी सूचना पांडुलिपि संरक्षण केंद्र या शिक्षण संस्थानों को दें। इससे उन पांडुलिपियों को संरक्षित किया जा सकेगा और उसे पढ़कर एवं संपादित कर उसमें निहित ज्ञान को प्रकाशित किया जा सकेगा।

*पाण्डुलिपियां इतिहास के महत्त्वपूर्ण स्रोत*
उन्होंने कहा कि पाण्डुलिपियां साहित्य, संस्कृति, समाज, दर्शन एवं इतिहास की महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। पांडुलिपियों को ऐतिहासिक प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाता है। इनकी पुष्पिकाओं में यानी पाण्डुलिपियों के अंत में लिपिकारों के द्वारा जो सूचनाएँ दी जाती हैं, वे इतिहास के महत्वपूर्ण साक्ष्य होते हैं।

*प्रशिक्षण, जागरूकता तथा आर्थिक सहायता प्रदान करता है मिशन*

उन्होंने बताया कि भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत संचालित राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन वर्ष 2003 से पांडुलिपियों के संरक्षण की दिशा में व्यवस्थित रूप से कार्य कर रहा है। इसका उद्देश्य देश-विदेश में उपलब्ध भारतीय पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, दस्तावेज़ीकरण तथा सूचीकरण मिशन का उद्देश्य देश-विदेश में उपलब्ध भारतीय पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, दस्तावेज़ीकरण तथा सूचीकरण कर एक राष्ट्रीय पांडुलिपि सूची तैयार करना है। यह पांडुलिपियों के संरक्षण तथा परिरक्षण के लिए प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करता है और आर्थिक सहायता भी प्रदान करता है। साथ ही इसके माध्यम से हम अपनी निजी पांडुलिपियों का भी नि:शुल्क संरक्षण की व्यवस्था करा सकते हैं।

*पांडुलिपियों का हो शोध के क्षेत्र में उपयोग*

उन्होंने बताया कि मिशन विश्‍वविद्यालयों, पुस्‍तकालयों, मंदिरों, मठों, मदरसों, विहारों और निजी संग्रहों में रखी पांडुलिपियों के आंकड़ों का संग्रहण करता है। इसके माध्यम से आठ करोड़ पेज का डिजिटलाइजेशन हो चुका है। लेकिन आज ही अधिकांश शोधार्थी प्रकाशित पुस्तकों के सहारे ही शोध करते हैं और वे पांडुलिपियों का उपयोग करने से बचते हैं। हमें पांडुलिपियों में छुपे ज्ञान के खजाने का शोध के क्षेत्र में उपयोग करने की जरूरत है।

इस अवसर पर केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार, उप कुलसचिव अकादमिक डॉ. सुधांशु शेखर, सिड्डु कुमार, डॉ. राजीव रंजन, जयप्रकाश भारती, पृथ्वीराज यदुवंशी, त्रिलोकनाथ झा, रवींद्र कुमार, बालकृष्ण कुमार सिंह, अमोल यादव, डॉ. संगीत कुमार, अरविंद विश्वास, सौरभ कुमार चौहान, कपिलदेव यादव, शंकर कुमार सिंह, ब्यूटी कुमारी, अंजली कुमारी, रुचि कुमारी, स्नेहा कुमारी, रश्मि कुमारी, मधु कुमारी, लूसी कुमारी आदि उपस्थित थे।

*होगी पांडुलिपि संरक्षण केंद्र की शुरुआत*
आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि मिशन के माध्यम से देश भर में पांडुलिपि-संरक्षण से संबंधित सेमिनारों एवं कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है। इसी कड़ी में भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में 30 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन हो रहा है, जो बिहार का पहला तीस दिवसीय कार्यशाला है। इस कार्यशाला में प्रशिक्षुओं को अप्रकाशित पांडुलिपियों को सम्पादित कर प्रकाशित कराने के संबंध में भी आवश्यक जानकारी दी जा रही है। प्रशिक्षुओं से अपेक्षा है कि वे अप्रकाशित पांडुलिपियों को खोजने और उसे संरक्षित एवं प्रकाशित कराने में रुचि लेंगे। यदि इस क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण अप्रकाशित पांडुलिपियां मिलेंगी, तो यहां पांडुलिपि संरक्षण केंद्र की शुरुआत भी हो सकती है।

*होगी निःशुल्क संरक्षण की व्यवस्था*

उन्होंने क्षेत्र के लोगों से अपील की कि यदि उनके पास कोई महत्वपूर्ण पांडुलिपि है, तो वे केंद्रीय पुस्तकालय से संपर्क करें। उनकी पांडुलिपि का निःशुल्क संरक्षण एवं प्रकाशन की व्यवस्था की जाएगी और पांडुलिपि उनको वापस लौटा दी जाएगी।

*होगा क्षेत्र भ्रमण*
उन्होंने बताया कि कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों को कंदाहा सूर्य मंदिर एवं मटेश्वर स्थान का भ्रमण कराया जाएगा। इसमें व्याख्यान देने के लिए कुलपति डॉ. आर. के. पी. रमण, प्रति कुलपति डॉ. आभा सिंह, पूर्व कुलपति डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी, सिंडिकेट सदस्य डॉ. रामनरेश सिंह, विकास पदाधिकारी डॉ. ललन प्रसाद अद्री एवं ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा की डॉ. वीणा कुमारी से भी अनुरोध किया गया है।