Seminar *एक गुलदस्ता है भारत : रमेशचन्द्र सिन्हा* *राष्ट्रवाद : कल, आज और कल विषयक सेमिनार संपन्न*

*एक गुलदस्ता है भारत : रमेशचन्द्र सिन्हा*

*राष्ट्रवाद : कल, आज और कल विषयक सेमिनार संपन्न*

राष्ट्र मात्र एक भौगोलिक इकाई नहीं है और न ही यह सत्ता का एक केंद्र मात्र है, बल्कि राष्ट्र एक सांस्कृतिक एवं मूल्यात्मक इकाई है। यह इकाई राष्ट्र के सभी नागरिकों से मिलकर बनती है। राष्ट्र के सभी नागरिकों का आपस में भावनात्मक एवं आत्मिक लगाव होता है और यही लगाव राष्ट्रवाद का असली सूत्र है।

यह बात सुप्रसिद्ध दार्शनिक सह भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. रमेशचन्द्र सिन्हा (नई दिल्ली) ने कही। वे राष्ट्रवाद : कल, आज और कल विषयक राष्ट्रीय सेमिनार के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। यह सेमिनार स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में किया गया।

उन्होंने कहा कि भारत सदियों से एक सांस्कृतिक राष्ट्र है। यह एक खूबसूरत गुलदस्ते की तरह है, जिसमें विभिन्न धर्म, जाति एवं संप्रदाय के लोग फूलों की तरह सजे हुए हैं। बहुलता में एकता भारत की अद्भुत विशेषता है।

उन्होंने कहा कि प्रत्येक राष्ट्र की अपनी-अपनी अस्मिता होती है। यह अस्मिता ही राष्ट्र की असली पहचान हैं। इसलिए राष्ट्रीय अस्मिता के लिए किसी राष्ट्र के सभी नागरिकों का राष्ट्र के प्रति भावनात्मक लगाव या राष्ट्रभक्ति जरूरी है। किसी भी समान्य मनुष्य का अपनी राष्ट्रीयता से ऊपर उठना संभव नहीं है। राष्ट्रीयता को छोड़ना किसी वृक्ष के अपनी जड़ों से कटने और शरीर से आत्मा के अलग होने के समान है।

उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक मूल्यों के कारण ही विभिन्न देश की भिन्न-भिन्न राष्ट्रीयता है। किसी भी राष्ट्र का एक चरित्र होता है और उस चरित्र को उसके मूल्यों के द्वारा ही हम जानते हैं। भारतवर्ष में अध्यात्मिकता पर अधिक बल है और पश्चिम में भौतिकता पर अधिक बल है।

उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद पश्चिम के राष्ट्रवाद से काफी भिन्न एवं व्यापक है। भारतीय राष्ट्रवाद में वसुधैव कुटुंबकम् एवं सर्वेभवन्तु सुखिनः की भावना का समावेश है। इसमें हिंसा एवं विस्तारवाद के लिए कोई जगह नहीं है।

*भारत सदियों से एक राष्ट्र है*

भारतीय महिला दार्शनिक परिषद् की अध्यक्ष प्रोफेसर *डाॅ. राजकुमारी सिन्हा* (राँची) ने कहा कि भारत सदियों से एक राष्ट्र है। हमारे देशप्रेम, राष्ट्रप्रेम एवं राष्ट्रीयता की अनुगूँज प्राचीन काल से आज तक कायम है। आज हमारे देश के ऊपर बाह्य एवं आंतरिक दोनों खतरा मौजूद है। हमें दोनों खतरों का डटकर मुकाबला करना है। हम एक रहेंगे, तो हमारा राष्ट्रवाद हमेशा कायम रहेगा।

*सभी नागरिकों से प्रेम है राष्ट्रवाद*

स्वामी भावात्मानंद (मुजफ्फरपुर) ने कहा कि भारतवर्ष ने दुनिया को बाहुबली से नहीं, बल्कि आत्मिक बल से जीता है। भारतवर्ष ने दुनिया को प्रेम का संदेश दिया है और यहाँ का कण-कण पुण्य भूमि है।षभारतीय भूमि पर जन्म लेने के लिए देवता भी तरसते हैं।

उन्होंने कहा कि देश के सभी नागरिकों से प्रेम करना ही सच्चा राष्ट्रवाद है। विवेकाननंद का आह्वान है कि गर्व से कहो प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है, चांडाल, मूर्ख, ब्राह्मण, अज्ञानी सभी मेरे भाई है।

उन्होंने कहा कि
यूरोप तथा अन्य पश्चिमी राष्ट्रों की जो अवधारणा है, उससे भारतीय राष्ट्रवाद अलग रही है। यूरोपियन राष्ट्रवाद की अवधारणा संकीर्ण है। यह एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र से बिल्कुल पृथक करती है और राष्ट्र एवं राष्ट्र के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देती है। इसके विपरीत भारतीय राष्ट्रवाद संपूर्ण चराचर जगत के कल्याण की कामना करता है।

उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा सर्वसमावेशी रही है। हमारा आदर्श सर्वे भवन्तु सुखिनः है। यहाँ सर्वे में केवल भारत के लोग नहीं सम्मिलित है, बल्कि संपूर्ण विश्व समाहित है। इसमें मनुष्य के साथ- साथ संपूर्ण चराचर जगत, समस्त ब्रह्माण्ड सम्मिलित हो जाता है।

भारतीय राष्ट्रवाद अंतरराष्ट्रीयतावाद का पोषक है : मनोज कुमार

महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति प्रोफेसर डाॅ. मनोज कुमार ने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद अंतरराष्ट्रीयतावाद का पोषक है। हमने एक आदर्श राष्ट्रवाद की कल्पना की है। इसमें विश्व-कल्याण के निमित्त अपने राष्ट्रीय हितों की बलि चढ़ाने का भाव निहित है। इसमें व्यक्ति को अपने परिवार के हित में, परिवार को समाज के हित में, समाज को राष्ट्र के हित में और राष्ट्र को विश्व के हित में आहुति देने का आदर्श निहित है।

*दूसरे देश का विरोधी नहीं है राष्ट्रवाद : डाॅ. विजय कुमार*

गाँधी विचार विभाग, तिलकामाँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के अध्यक्ष डाॅ. विजय कुमार ने कहा कि पश्चिमी में राष्ट्रवाद की भौगोलिक एवं राजनीतिक अवधारण है। लेकिन भारत आदिकाल से एक सांस्कृतिक राष्ट्र रहा है। हमारे देश के सभी नागरिकों में हमेशा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना मौजूद रही है।लेकिन हमारा राष्ट्रवाद किसी दूसरे राष्ट्र का विरोधी नहीं है।

*राष्ट्रवाद एवं देशभक्ति में अंतर है*

डाॅ. आलोक टण्डन (उत्तर प्रदेश) ने कहा कि राष्ट्रवाद एवं देशभक्ति मेें अंतर है। देशभक्ति एक उदात्त भावना है, जबकि राष्ट्रवाद एक राजनैतिक परियोजना है। देशभक्ति की भावना प्राचीन काल से रही है, जबकि राष्ट्रवाद की राजनैतिक विचारधारा एवं राष्ट्र-राज्यों की स्थापना आधुनिकता की उपज है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद एकरूप नहीं है। उसके कई संस्करण हैं। लेकिन सभी संस्करणों में राष्ट्र को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।

उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान में राष्ट्रवाद की सर्वसमावेशी अवधारणा है। यह सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है। इसमें देशभक्ति की शर्त अतीत की किसी धर्म-संस्कृति के प्रति वफादारी नहीं, बल्कि संवैधानिक कानूनों का पालन करना है।

उन्होंने कहा कि देशप्रेम का मतलब केवल सीमाओं की सुरक्षा नहीं है। वास्तविक देशप्रेम समस्त देशवासियों के रोटी, कपड़ा, मकान एवं शिक्षा की गारंटी देना है।

समापन समारोह की अध्यक्षता मानविकी संकायाध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. उषा सिन्हा ने की। अतिथियों का स्वागत प्रधानाचार्य प्रोफेसर डाॅ. के. पी. यादव ने किया। संचालन आयोजन सचिव सह जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने किया धन्यवाद ज्ञापन सिंडिकेट सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान ने की।

इस अवसर पर अकादमिक निदेशक प्रोफेसर डॉ. एम. आई. रहमान, डाॅ. अफाक हासमी (दरभंगा), डाॅ. शंभु पासवान (भागलपुर), डाॅ. शंकर कुमार मिश्र, ले. गुड्डू कुमार, डाॅ. खुशबू शुक्ला, डाॅ. प्रियंका सिंह, डाॅ. राजकुमार रजक, रंजन कुमार, सारंग तनय, सौरभ कुमार चौहान, माधव कुमार, गौरब कुमार सिंह, चंदन कुमार, डेविड यादव आदि उपस्थित थे।

*लगी महापुरूषों के चित्रों की प्रदर्शनी*

सेमिनार हाॅल को राष्ट्रभक्ति के रंग में रंगने की कोशिश की गई थी। मुख्य बैनर को तिरंगे के रंग में बनाया गया था।हाॅल के अंदर एवं बाहर राष्ट्रीय महापुरूषों के चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गईं। साथ ही राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े सौ तस्वीरों को विशेष रूप से प्रदर्शित किया गया। योगगुरू राकेश कुमार भारती ने राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् और तेरी शरण में आके, मैं धन्य हो गया गीत की प्रस्तुति की। अंत में राष्ट्रगान जन-गण-मन के सामूहिक गायन एवं वैदिक शांतिपाठ के साथ समारोह संपन्न होगा।