Search
Close this search box.

Yoga अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

*अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन*
अकाट्य है योग : प्रति कुलपति
—-
योग विश्व को भारत की बहुमूल्य देन है। दुनिया के कल्याण में इसकी उपयोगिता अकाट्य है। यह बात बीएनएमयू प्रति कुलपति प्रोफेसर डाॅ. आभा सिंह ने कही।
वे मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में मधेपुरा काॅलेज, मधेपुरा के राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) के तत्वावधान में आयोजित योगाभ्यास कार्यक्रम का उद्घाटन कर रही थीं। कार्यक्रम में 17 बिहार बटालियन एनसीसी अंतर्गत मधेपुरा जिलेके विभिन्न महाविद्यालयों एवं विद्यालयों के कैडेट एवं राष्ट्रीय सेवा योजना मधेपुरा, कॉलेज मधेपुरा के स्वयंसेवकों ने भाग लिया।

उन्होंने बताया कि योग के आठ अंग माने गए हैं ।
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि। इसमें पाँच योग की पहली कड़ी है। ये पांच हैं यथा- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं और अपरिग्रह। महात्मा गांधी ने भी इन सदगुणों का पालन आवश्यक माना है।

उन्होंने कहा कि योग हमारे शरीर, मन एवं आत्मा के बीच समन्वय स्थापित करता है। यह शरीर को मन से, आत्मा को परमात्मा से और व्यष्टि को समष्टि से जोड़ता है।

उन्होंने कहा कि योग भारतीय दर्शन, संस्कृति एवं परंपरा में आदिकाल से शामिल है। महर्षि पतंजलि के हजारों वर्ष पूर्व भी भारत में योग की विभिन्न पद्धतियों का उल्लेख है।

उन्होंने कहा कि ही योग संपूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति का श्रेयष्कर मार्ग है, जो पहले से ही रोग को आने से रोकने का उपाय सुझाता है। हमारे ॠषि-मुनि योग के इस महात्म्य को जानते थे और वे योगशक्ति के बल पर दीर्घजीवी होते थे। आज भी हम योग को अपनाकर दीर्घकाल तक निरोगी जीवन जी सकते हैं और भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के शिखर पर पहुंच सकते है।

उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा नैतिक नियम यही है कि हम दूसरों के साथ वही व्यवहार करें, जो हम चाहते हैं कि दूसरे हमारे साथ करें। हमें आत्मानुशासित रहना चाहिए। दूसरा हमें देख रहा हो या ना देख रहा हो, सर्वप्रथम हम अपने आप को देख रहे होते हैं। सबसे बड़ा निर्णायक व्यक्ति स्वयं होता है। मुझे कोई देखे या ना देखे मैं वहीं काम करूँ, जो सही है।

प्रधानाचार्य डाॅ. अशोक कुमार ने कहा कि वर्ष 2015 से वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की शुरूआत हुई है। उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया योग की ओर आकर्षित है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस योग की वैश्विक महत्ता का प्रमाण है।

एनसीसी पदाधिकारी कै. गौतम कुमार ने कहा कि योग को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए भारत सरकार और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बधाई एवं प्रशंसा के पात्र हैं।

उप कुलसचिव (अकादमिक) डाॅ. सुधांशु शेखर ने कहा कि विश्वविद्यालय स्तर पर भी प्रत्येक वर्ष योग दिवस मनाया जाता रहा है। विश्वविद्यालय में पीजी डिप्लोमा इन योग कोर्स भी शुरू करने के लिए कमिटी का गठन किया गया है।

योग शिक्षिक डाॅ. एन. के. निराला ने कहा कि योग करेंगे, तो सभी बीमारियों से बच सकते हैं।

 

इसके पूर्व दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरूआत की गई। योग शिक्षिक के मार्गदर्शन में सबों ने योगाभ्यास किया। विभिन्न योगासनों के अलावा कपालभाति, भ्रामरी आदि प्राणायामों का अभ्यास किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. अशोक कुमार ने की। संचालन कैप्टन गौतम कुमार और धन्यवाद ज्ञापन मनोज भटनागर ने किया

इस अवसर पर डॉ. आरती झा, मोहम्मद सुएब आलम, डॉ. रत्नाकर भारती, डॉ. रूपा कुमारी, डॉ. सच्चिदानंद, चंदेश्वरी यादव, दिनेश प्रसाद, विवेक कुमार, गजेंद्र प्रसाद यादव, जय नारायण, डॉ. महेश्वर यादव, शंकर आर्य, लीला कुमारी, किरण कुमारी, शंभु कुमार, शंकर कुमार सहित मधेपुरा काॅलेज, मधेपुरा, टी. पी. काॅलेज, मधेपुरा एवं रास बिहारी महाविद्यालय आदि के विद्यार्थी उपस्थित थे।

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

[the_ad id="32069"]

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।