Search
Close this search box.

शोध समस्याओं के चयन में बरतें सतर्कता : डॉ. एम. आई. रहमान

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

जब हम दो या दो से अधिक चरों के बीच संभावित संबंधों के बारे में बनाए गए जांच योग कथन का वर्णन करते हैं, तो वही परिकल्पना कहलाती है। शोधार्थी शोध समस्या के चयन के बाद परिकल्पना का प्रतिपादन करता है। परिकल्पना का कार्य सिद्धांतों की जांच करना नए सिद्धांतों का निष्पादन करना और किसी घटना का वर्णन करना है।

यह बात बीएनएमयू, मधेपुरा के मनोविज्ञान विभाग में वरिष्ठ प्रोफेसर एवं अकादमिक निदेशक डाॅ. एम. आई. रहमान ने कही। वे स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना द्वारा आयोजित ऑनलाइन इंटरएक्टिव क्लास में बोल रहे थे। इसका टाॅपिक क्राइटेरिया फाॅर ए गुड रिसर्च प्रॉब्लम था। इसमें कुल 29 शोधार्थी के साथ-साथ कई शिक्षकों ने भी भाग लिया।

उन्होंने कहा कि हमें वैसी शोध समस्या का चयन करना चाहिए, जो समाजोपयोगी हो और जिसमें हमारी रूचि हो। शोधार्थी की रूचि शोध के लिए आवश्यक होती है। यदि शोध समस्या रुचिकर नहीं होगी, तो शोधार्थी उस पर पर्याप्त ध्यान नहीं देंगे और फिर शोध में सफलता पाना मुश्किल हो जाएगा।

उन्होंने बताया कि कुछ परिकल्पना विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर बनाई जाती हैपरिकल्पनाएं कई प्रकार की होती हैं। इनमें साधारण कल्पना, जटिल परिकल्पना, सार्वत्रिक परिकल्पना, अस्तित्वपरक परिकल्पना, विशिष्ट परिकल्पना, वर्णनात्मक परिकल्पना, कार्यरूप परिकल्पना, नल परिकल्पना सांख्यिकी परिकल्पना आदि मुख्य हैं।

उन्होंने बताया कि शोध समस्या तर्क पर आधारित होनी चाहिए। समस्या का उद्देश्य, उसका अर्थ एवं उसकी उपयोगिता बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए। हमें वैसी समस्या का चयन नहीं करना चाहिए, जिसमें शोध करने पर कठिनाइयों का सामना करना पड़े और जिसमें अत्यधिक खर्च हो। ऐकेडमिक शोध के लिए समय सीमा निर्धारित होती है, इसलिए शोध समस्या ऐसी हो, जिसका समाधान निर्धारित समय में हो सके।

उन्होंने बताया कि शोध किसी घटना का वर्णन, व्याख्या, भविष्यवाणी एवं नियंत्रण के लिए एक व्यवस्थित जाँच है।
शोध के कई प्रकार होते हैं। इन प्रकारों का उपयोग उस समय की माँग के अनुसार किया जाता है। जिस प्रकार का शोध होगी, उसी प्रकार की प्रणाली का उपयोग आवश्यक माना जाता है।

उन्होंने बताया कि समस्या को बनाते समय शोध से संबंधित एक्सपर्ट की सहायता आवश्यक होती है। शोध समस्या प्राप्त करने के लिए विभिन्न स्रोतों का भी जिक्र किया और इस बात पर बल दिया कि स्रोत समस्या सामायिक होना चाहिए।

ज्ञातव्य हो कि पटना विश्वविद्यालय द्वारा डॉ. रहमान से रिसर्च मेथाडोलॉजी की पाँच कक्षाएँ संचालन करने का अनुरोध किया गया था। वर्ग संचालन 2-4 बजे तक गूगल मीट के माध्यम से संचालित किया जाता है। अन्य विद्यार्थी इस कक्षा में यू-ट्यूब चैनल बीएनएमयू संवाद के माध्यम से भाग ले सकते हैं।

पटना विश्वविद्यालय, पटना के मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर इश्तेहार हुसैन ने इस कक्षा की काफी सराहना की। इंटरएक्टिव क्लास में भाग ले रहे शोधार्थियों ने व्याख्यान के अंत में अपनी जिज्ञासा है एवं प्रश्नों को डॉ. रहमान के समक्ष रखा। डॉ. रहमान ने उनका समुचित उत्तर दिया, जिससे सभी प्रतिभागी संतुष्ट हुए।

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

[the_ad id="32069"]

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।