Search
Close this search box.

Bihar। प्रो. जनार्दन मिश्र पंकज जी की 108वीं जयंती

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

प्रो. जनार्दन मिश्र पंकज जी की 108वीं जयंती

-मारुति नंदन मिश्र, नयागांव, खगड़िया

आज नयागांव, खगड़िया के महान व्यक्ति स्व. पंडित प्रो. जनार्दन मिश्र पंकज की 108वीं जयंती है। महर्षियों एवं कर्मवीरों की धरती नयागांव (परबत्ता, खगड़िया) में कई विद्वानों ने जन्म लिया। इस धरती के एक युगपुरुष थे-ब्रह्मलीन पंडित प्रो. जनार्दन मिश्र ‘पंकज’। इनका जन्म 28 जुलाई, 1912 को नयागांव (परबत्ता ) में हुआ था।

हिंदी, संस्कृत, योग और दर्शनशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान पंडित जनार्दन मिश्र ‘पंकज’ साहित्य महोपाध्याय के उपाधि से सम्मानित थे। आप विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांति निकेतन, बंगाल में प्राध्यापक और डी. एस. एस., कॉलेज, मुजफ्फरपुर में प्राध्यापक थे। इसके बाद रानी सरस्वती सनातन धर्म राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, मुंगेर के प्रधानाचार्य पद से सन 1974 ईस्वी में सेवानिवृत्त हुए थे।

इन्होंने 6 विषयों से एम.ए की डिग्री ली थीं, जिसमें 3 विषयों में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। ये 6 विषय थे हिंदी, साहित्याचार्य, न्यायाचार्य, सांख्ययोग्य , योग दर्शनाचार्य, वेदांताचार्य।  इनमें 3 विषयों में स्वर्णपदक प्राप्त किया था। इन्होंने हिंदी की पढ़ाई बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से की थी ।

शांतिनिकेतन बंगाल में डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी के साथ हिंदी के प्रोफेसर थे। सिनेमा जगत के मशहूर अभिनेता बलराज साहिनी भी उन दिनों वहीं प्रोफेसर थे। सिने जगत की अभिनेत्री शर्मीला टैगोर इनकी छात्रा थीं। मुंगेर के बिहार स्कूल आफ योगा से 1964 से ही जुड़े हुए थे। उस समय योग पर इनके दर्जनों शोधपूर्ण आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।

साहित्यिक पत्रिका अरुणोदय और प्राची के संपादक भी थे। इन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं, जिसमें संस्कृत व्याकरण, संस्कृत ज्ञान गंगा, भावदर्श, संस्कृत मंजरी प्रमुख पुस्तकें थीं। संस्कृत और हिंदी की कई पुस्तकें उस समय बिहार बोर्ड के पाठ्यक्रम में शामिल थीं, जिसे प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के बच्चों को पढ़ाया जाता था।

इन्होंने दर्जनों उपन्यास भी लिखें थे जिसका नाम था :-
कलम-कसाई, कलावती भारत, वीरान कोठे, श्मशान की चाँदनी, शेष धारा, कानन वाला।
सेवानिवृति के बाद इन्होंने महर्षि महेश योगी के हरिद्वार आश्रम में योग शिक्षक के तौर पर भी कार्य किया।
आज के युवा पीढ़ी को इनके व्यक्तित्व और कृतित्व से शिक्षा लेनी चाहिए।
आप 6 जून 1977 को समाधि में लीन हो गये थे। उनके निधन की खबर उस वक्त बीबीसी रेडियो समाचार में दिया गया था ।
शत शत नमन

मारुति नंदन मिश्र, नयागांव, खगड़िया

(बीएनएमयू संवाद के लिए आपकी रचनाएं एवं विचार सादर आमंत्रित हैं। आप हमें अपना आलेख, कहानी, कविताएं आदि भेज सकते हैं।
संपर्क वाट्सएप -9934629245)

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

[the_ad id="32069"]

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।